लूट लो होली का मजा...
देश भर में महँगाई के साथ-साथ पानी की समस्या आम बात बन गई है। आम आदमी को रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए भी पर्याप्त पानी नहीं है। हम सभी रोजाना इसी समस्या से रूबरू होते रहते है। हर रोज के खर्च में पानी भी उसी तरह है जैसे सुबह से शाम तक दो जून की रोटी की जुगाड़ में लगे रहना। पानी को लेकर सुबह से ही आम आदमी की भागदौड़ शुरू हो जाती है। पानी को लेकर झगड़े, मारपीट... और यहाँ तक तक चाकू-छूरे भी चल जाते हैं। यह बहुत ही भयावह किंतु वास्तविक स्थिति है।
होली का त्योहार आ गया है। होली यानी रंगों का रंगबिरंगी त्योहार। लोगों को, खासकर बच्चों को होली खेलने में, एक-दूसरे को कलर लगाने में बहुत मजा आता है। एक-दूसरे के रंग में रंगे चेहरे को देखकर बच्चों की खुशी दोगुनी हो जाती है। आदमी होली खेलने में इतना मशगूल हो जाता है कि उसे कुछ भान ही नहीं रहता कि उसके शरीर पर लगाए गए रंगों को निकालने के लिए उसे कितना पानी खर्च करना पड़ेगा। कितना अनचाहा पानी व्यर्थ बहाकर अपने रंगों को छुड़ाने में कामयाब हो पाएगा। लेकिन क्या इस तरह पानी का दुरुपयोग सही है।
आम आदमी को जहाँ पीने के लिए ठीक से पानी नहीं मिलता, रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए दूर-दूर से पानी लाकर उसकी व्यवस्था करनी पड़ती है। ऐसे में क्या पानी का दुरुपयोग कितना सही है।
इस पानी के दुरुपयोग की बात को शायद ही कोई 'हाँ' कहें। लेकिन दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें होली का त्योहार बहुत अच्छा लगता है। उन्हें होली खेलना, एक-दूसरे को कलर लगाना, रंगों से पट जाना, घर भर को तरह-तरह के रंगों से भर देना बहुत अच्छा लगता है। लेकिन यहाँ समस्या होली खेलने की नहीं, 'पानी' की है।
आज महँगाई भरे युग में बिजली, पेट्रोल, खाने-पीने की चीजें और पानी सभी पर महँगाई की भरपूर मार पड़ रही है। रंग भी सस्ते आते हैं ऐसी बात नहीं है। पानी भी सस्ता मिलता है यह भी बात नहीं है। जो बात है वह यह कि होली तो खेलें लेकिन ऐसी कि हमें रंगों को छुड़ाने के लिए ज्यादा पानी खर्च ना करना पड़े। तो ही हम असली होली का आनंद ले पाएँगे।
अगर आपके यहाँ पीने को पर्याप्त पानी, रोजमर्रा की सारी जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी नहीं है तो ऐसे में रंगों से रंगी इसी होली को खेलने के बाद उसे छुड़ाने के लिए कितने पानी को बर्बाद करना पड़ेगा। यह बात तो सोचने वाली है।
बिना रंगों के होली का पर्व अधूरा है, लेकिन केमिकल वाले रंगों से कई लोगों को स्किन में एलर्जी हो जाती है, जिसके चलते कई लोग गुलाल और रंग खेलना पसंद नहीं करते हैं। ऐसे ही लोगों का ध्यान रखकर बनाए गए हैं हर्बल कलर्स, जो खास कर प्राकृतिक पदार्थों से बनाए जाते हैं। जिसके उपयोग से त्वचा में कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होता है।
पलाश, जासौन, चंदन, गुलाब आदि से तैयार कई तरह के हर्बल कलर मार्केट में आसानी से मिल जाते हैं, जो प्राकृतिक पौधों एवं उनके रस से बनाए जाते हैं। शायद आपको पता न हो कि इन हर्बल कलर्स निर्माण में टेलकम पावडर का उपयोग किया जाता है। इन रंगों की यह विशेषता होती है कि केमिकल रंगों की तरह घंटों बैठकर छु़ड़ाना नहीं पड़ता, यह थोड़े से पानी में ही निकल जाते हैं।
वैसे भी होली के त्योहार में गुलाल लगाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसके चलते बड़े-बुजुर्ग टीका लगाकर गले मिल एक-दूसरे को होली की बधाई देते हैं। प्राकृतिक रूप से तैयार किए जाने वाले गुलाल में अरारोट का बेस लिया जाता है, जिसमें कई तरह के प्राकृतिक तत्वों का समावेश कर गुलाल तैयार होता है। जिनमें हर्बल गुलाल, पीला, गुलाबी, हरा एवं लाल गुलाल ऐसे चार रंगों में आता है। हर्बल गुलाल दो तरह के होते हैं। पहले इत्र वाले गुलाल में चंदन, गुलाब आदि खुशबू मिली होती है, तो वहीं बिना इत्र वाले गुलाल में हर्बल रंग मिलाए जाते हैं।
तो लीजिए आपके सवाल का एक बढि़या जवाब है हमारे पास.... 'वो यह कि होली खेलो, खूब खेलो, जरूर खेलो, प्यार से खेलों, रंगों से खेलों लेकिन सिर्फ उन रंगों से जिसमें आपको पानी व्यर्थ ना बहाना पड़े यानी सूखे रंगों की वह होली जो आपके कपड़ों, आपके तन पर लगे रंगों को आसानी से साफ करने में आपकी मदद करें। ऐसी होली जो हाथ से झटकते ही कलर गायब हो जाएँ।' तो होली के पावन त्योहार पर होली तो खेलों, लेकिन पानी बचाने का संकल्प भी लो और होली का मजा भी लूट लो ऐसी रंगबिरंगे हर्बल सूखे रंगों की होली खेलो और वसंतोत्सव के रंग में रंग जाओ..!
हैप्पी होली....!
देश भर में महँगाई के साथ-साथ पानी की समस्या आम बात बन गई है। आम आदमी को रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए भी पर्याप्त पानी नहीं है। हम सभी रोजाना इसी समस्या से रूबरू होते रहते है। हर रोज के खर्च में पानी भी उसी तरह है जैसे सुबह से शाम तक दो जून की रोटी की जुगाड़ में लगे रहना। पानी को लेकर सुबह से ही आम आदमी की भागदौड़ शुरू हो जाती है। पानी को लेकर झगड़े, मारपीट... और यहाँ तक तक चाकू-छूरे भी चल जाते हैं। यह बहुत ही भयावह किंतु वास्तविक स्थिति है।
होली का त्योहार आ गया है। होली यानी रंगों का रंगबिरंगी त्योहार। लोगों को, खासकर बच्चों को होली खेलने में, एक-दूसरे को कलर लगाने में बहुत मजा आता है। एक-दूसरे के रंग में रंगे चेहरे को देखकर बच्चों की खुशी दोगुनी हो जाती है। आदमी होली खेलने में इतना मशगूल हो जाता है कि उसे कुछ भान ही नहीं रहता कि उसके शरीर पर लगाए गए रंगों को निकालने के लिए उसे कितना पानी खर्च करना पड़ेगा। कितना अनचाहा पानी व्यर्थ बहाकर अपने रंगों को छुड़ाने में कामयाब हो पाएगा। लेकिन क्या इस तरह पानी का दुरुपयोग सही है।
आम आदमी को जहाँ पीने के लिए ठीक से पानी नहीं मिलता, रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए दूर-दूर से पानी लाकर उसकी व्यवस्था करनी पड़ती है। ऐसे में क्या पानी का दुरुपयोग कितना सही है।
इस पानी के दुरुपयोग की बात को शायद ही कोई 'हाँ' कहें। लेकिन दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें होली का त्योहार बहुत अच्छा लगता है। उन्हें होली खेलना, एक-दूसरे को कलर लगाना, रंगों से पट जाना, घर भर को तरह-तरह के रंगों से भर देना बहुत अच्छा लगता है। लेकिन यहाँ समस्या होली खेलने की नहीं, 'पानी' की है।
आज महँगाई भरे युग में बिजली, पेट्रोल, खाने-पीने की चीजें और पानी सभी पर महँगाई की भरपूर मार पड़ रही है। रंग भी सस्ते आते हैं ऐसी बात नहीं है। पानी भी सस्ता मिलता है यह भी बात नहीं है। जो बात है वह यह कि होली तो खेलें लेकिन ऐसी कि हमें रंगों को छुड़ाने के लिए ज्यादा पानी खर्च ना करना पड़े। तो ही हम असली होली का आनंद ले पाएँगे।
अगर आपके यहाँ पीने को पर्याप्त पानी, रोजमर्रा की सारी जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी नहीं है तो ऐसे में रंगों से रंगी इसी होली को खेलने के बाद उसे छुड़ाने के लिए कितने पानी को बर्बाद करना पड़ेगा। यह बात तो सोचने वाली है।
बिना रंगों के होली का पर्व अधूरा है, लेकिन केमिकल वाले रंगों से कई लोगों को स्किन में एलर्जी हो जाती है, जिसके चलते कई लोग गुलाल और रंग खेलना पसंद नहीं करते हैं। ऐसे ही लोगों का ध्यान रखकर बनाए गए हैं हर्बल कलर्स, जो खास कर प्राकृतिक पदार्थों से बनाए जाते हैं। जिसके उपयोग से त्वचा में कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होता है।
पलाश, जासौन, चंदन, गुलाब आदि से तैयार कई तरह के हर्बल कलर मार्केट में आसानी से मिल जाते हैं, जो प्राकृतिक पौधों एवं उनके रस से बनाए जाते हैं। शायद आपको पता न हो कि इन हर्बल कलर्स निर्माण में टेलकम पावडर का उपयोग किया जाता है। इन रंगों की यह विशेषता होती है कि केमिकल रंगों की तरह घंटों बैठकर छु़ड़ाना नहीं पड़ता, यह थोड़े से पानी में ही निकल जाते हैं।
वैसे भी होली के त्योहार में गुलाल लगाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसके चलते बड़े-बुजुर्ग टीका लगाकर गले मिल एक-दूसरे को होली की बधाई देते हैं। प्राकृतिक रूप से तैयार किए जाने वाले गुलाल में अरारोट का बेस लिया जाता है, जिसमें कई तरह के प्राकृतिक तत्वों का समावेश कर गुलाल तैयार होता है। जिनमें हर्बल गुलाल, पीला, गुलाबी, हरा एवं लाल गुलाल ऐसे चार रंगों में आता है। हर्बल गुलाल दो तरह के होते हैं। पहले इत्र वाले गुलाल में चंदन, गुलाब आदि खुशबू मिली होती है, तो वहीं बिना इत्र वाले गुलाल में हर्बल रंग मिलाए जाते हैं।
तो लीजिए आपके सवाल का एक बढि़या जवाब है हमारे पास.... 'वो यह कि होली खेलो, खूब खेलो, जरूर खेलो, प्यार से खेलों, रंगों से खेलों लेकिन सिर्फ उन रंगों से जिसमें आपको पानी व्यर्थ ना बहाना पड़े यानी सूखे रंगों की वह होली जो आपके कपड़ों, आपके तन पर लगे रंगों को आसानी से साफ करने में आपकी मदद करें। ऐसी होली जो हाथ से झटकते ही कलर गायब हो जाएँ।' तो होली के पावन त्योहार पर होली तो खेलों, लेकिन पानी बचाने का संकल्प भी लो और होली का मजा भी लूट लो ऐसी रंगबिरंगे हर्बल सूखे रंगों की होली खेलो और वसंतोत्सव के रंग में रंग जाओ..!
हैप्पी होली....!
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