रविवार, 10 अप्रैल 2011

और भीम ने की भरी सभा में प्रतिज्ञा

जूए में हारकर पाण्डवों ने कृष्णमृगचर्म धारण किया और वन में जाने के लिए तैयार हो गए। उनकी ऐसी स्थिति देखकर दु:शासन कहने लगा कि धन्य है धन्य है। अब महाराज दुर्योधन का शासन प्रारंभ हो गया। पाण्डव मुश्किल में पड़ गए। राजा द्रुपद तो बड़े बुद्धिमान हैं। फिर उन्होंने अपनी कन्या की शादी पांडवों से क्यों कर दी? अरे द्रोपदी ये पांडव गरीबी के साथ वन में अपना जीवन बितायेंगे, तू अब उनके प्रति प्रेम कैसे रखेगी? अब किसी मनचाहे पुरुष से विवाह क्यों नहीं कर लेती। दु:शासन की बात सुनकर भीम को बहुत गुस्सा आया। भीम ने उसे ललकारा और कहा तूने हमें अपने बाहुबल से नहीं जीता। तू अपने छल पर शेखी कैसे बघार सकता है।
ऐसी बात केवल पापी ही कह सकते हैं। तू अभी मेरे घावों को कुरेद कर मुझे परेशान कर ले। मैं मेरा दर्द रणभूमि में तेरे हाथ पैर काटकर तुझे याद दिलाऊंगा। इस समय भीमसेन मर्गचरम धारण किए खड़े थे। धर्म के अनुसार वे दु:शासन जैसे शत्रु का भी नाश नहीं कर सकते हैं। भीमसेन के ऐसा कहने पर पर दु:शासन ने भीम को अपशब्द कहे और भरी सभा में उन्हें बेइज्जत किया। तब भीम गुस्से से भर जाता है और कहता है यदि यह भीम कुन्ती की कोख से जन्मा है तो रणभूमि में यह तेरा कलेजा चीरकर खुन पीएगा। अगर मैं ऐसा ना करूं तो मुझे पुण्यलोक ना मिले। मैं सब के सामने ही धृतराष्ट्र के सारे पुत्रों का सहार करके शांति प्राप्त करूंगा।

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