सोमवार, 25 अप्रैल 2011

इसी का नाम जिंदगी है...

पं.विजयशंकर मेहता
द्वारिकाधीश ने नरकासुर को दण्ड दे दिया, वो मारा गया। आप जहां से आई हैं, जिस घर से आई हैं, जिस रिश्तेदारी से आई हैं वहां जा सकती हैं। आप स्वतंत्र हैं। वहां से चलकर एक स्थान पर भगवान विश्राम कर रहे थे। कुछ लोग भगवान से मिलने आए। उद्धव ने कहा-कुछ स्त्रियां आपसे मिलना चाहती हैं। भगवान ने कहा-भेजो। उनमें से कुछ स्त्रियों ने कहा आपने हमें मुक्त तो करा दिया है।

यदि अब हम अपने घर जाएंगी तो हमारे घर वाले हमको स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि हम किसी राजा के कारावास में बंदी रहे हैं। हमें वो पवित्र नहीं मानते। स्त्री यदि एक रात के लिए बिना बताए घर से बाहर चली जाए, सारा घर उसको प्रष्नों के घेरे में खड़ा कर देगा। पुरूष से कोई नहीं पूछता।स्त्री आज भी यदि एक रात कारावास या जेल में चली जाए, सारा समाज उसको हीन दृष्टि से देखता है। भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कहां जाएंगी ये सब। उद्धव, दारूप द्वारिका के सारे लोग कृष्ण की ओर देखने लगे। क्या कृष्ण अब एक-एक को घर छोडऩे जाएंगे।
अब कृष्ण किस-किस को समझाएंगे कि सम्मान दो। तब कृष्ण ने उन स्त्रियों से कहा मैं जानता हूं पर मैं आज आपको आश्वस्त करता हंू। वसुदेव का पुत्र द्वारिका का यह कृष्ण आपको आश्वस्त कर रहा है कि मैं आपको समाज में वो दर्जा दूंगा जो किसी भी स्त्री को प्रतिष्ठित पुरुष से विवाह करने के बाद प्राप्त होता है। मैं आज से आपको अपनी धर्मपत्नी स्वीकार करता हूं और मैं इस पूरी समूची स्त्रीशक्ति को आश्वस्त करता हूं कि आपकी प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आएगी। भगवान् ने सारी स्त्रियों से विवाह किया। तब जो लोग प्रश्न करते हैं न कि कृष्ण सोलह हजार विवाह रचाने की क्या जरूरत थी, किसी की ताकत है जो स्त्रियों को इतना सम्मान दिला सके। पर ये कृष्ण ने किया है।
कृष्ण ने कहा-आज से आप मेरी भार्या हैं। द्वारिका में आप ससम्मान निवास करेंगी।यह कृष्ण का चरित्र है। जिस व्यक्ति की बांसुरी की एक तान पर संसारभर की स्त्रियां मोहित हो जाती हैं, जिसकी एक झलक पाने के लिए संसार का सारा सौंदर्य बेताब हो, जिसके पास रहने के लिए, जिसको जीवन में उतारने के लिए गोप, गोपियां, रानियां, राजकुमारियां बावली हुआ करती थीं। जिसके आसपास स्त्रियों का जमघट घूमता होगा उस कृष्ण का एक भी विवाह शान्ति से नहीं हुआ। आप सोचिए एक भी स्त्री को वो चैन से नहीं ला पाए। जो हुआ उसमें कोई न कोई उपद्रव हुआ पर कृष्ण ने कहा इसी का नाम जीवन है। सबको स्वीकार किया।
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