शनिवार, 23 अप्रैल 2011

चमचम चाचा भीग ही गए...

हमारे मोहल्ले में चमचम चाचा रहते थे। नाम पता नहीं क्या बहुत लंबा चौड़ा था पर हम तो उन्हें चमचम चाचा ही कहते थे। मुँह में पान की लाली हमेशा रहती और कुर्ता तो खुद ही धोकर इस्त्री करके पहनते थे। ये सब उनकी पहचान थी। चाचा की शान अलग ही थी बस भीगने के नाम से उनकी नानी मरती थी।
वे कहीं भी जाएँ तो छतरी साथ लेकर चलते थे। भीगने से उन्हें बड़ा डर लगता था। याद नहीं आता कि कभी वे बारिश में भीगे हो। हम तो क्या हमारे पापा ने भी उन्हें कभी बरसात में भीगते नहीं देखा। बारिश के दिनों ज्यादा तो वे किसी के यहाँ आते-जाते नहीं और आते-जाते तो भी बड़ी-सी छतरी अपने साथ रखते। गर्मियों के दिनों से ही वे अपने साथ छतरी रखना शुरू कर देते थे कि पता नहीं कब बरसात आ जाए। बारिश में बहुत जरूरी काम होने पर बाहर निकलते तो अपने पाजामे को मोड़कर घुटनों तक चढ़ा लेते। ऐसे थे चमचम चाचा।
एक बार क्या हुआ कि चमचम चाचा छतरी लेकर जा रहे थे, बहुत तेज बारिश हो रही थी और तेज हवाएँ भी चल रही थीं। हम बच्चों की टोली चाचा के पीछे-पीछे चल रही थी और उन्हें कह रही थी चाचा आज तो बारिश में नहाना पड़ेगा। चाचा पानी में भीगने से डरते हैं। चाचा कहते- चलो भागो बदमाशो, नहीं तो तुम्हारे घर खबर करता हूँ। तभी बहुत जोर से हवा चली। चाचा की छतरी पलट गई।
पलटी भी क्या कि सीधी होने का नाम ही नहीं लिया। चाचा ने खूब कोशिश की पर तेज बारिश से बच न सके। आखिरकर वे भीग ही गए। भीगने के बाद छतरी का क्या काम तो उन्होंने छतरी बंद करके रख ली और फिर घर को चले। इतनी देर में तो हमने पूरे बाजार में चिल्लाकर ऐलान कर दिया कि चमचम चाचा भीग गए। लोगों के लिए तो यह अजूबा था चमचम चाचा भीग गए। देखने वाले बारिश में बाहर निकल आए। चमचम चाचा भीगे थे भई।
अगले दिन चमचम चाचा किसी को दिखाई नहीं दिए। इस दिन पानी नहीं गिरा। हम बच्चों ने सोचा कि हो सकता है चमचम चाचा को हमारी बात बुरी लगी हो। इसलिए हम उनके घर जाने के बारे में सोचने लगे। इसी बीच जब तीसरे दिन जमकर बारिश हुई तो चमचम चाचा घर से बाहर निकले और देखने वाले सारे लोग हैरत में थे कि चमचम चाचा के हाथों में छतरी नहीं थी। चमचम चाचा भीगने के लिए ही निकले थे। हुर्रे...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें