सोमवार, 11 अप्रैल 2011

जुएं में हारकर क्या हुआ पाण्डवों के साथ ?


जब पाण्डव वन जाने लगे तो दुर्योधन हंस कर उन्हें चिढ़ाने लगे। तब भीम ने अपनी प्रतिज्ञा को फिर दोहराया। अर्जुन ने भी भीम की प्रतिज्ञा का समर्थन किया। इस तरह पाण्डव और भी प्रतिज्ञाएं करके राजा धृतराष्ट्र के पास गए और वन जाने के आज्ञा मांगने लगे। यह देखकर वहां उपस्थित भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, विदुर आदि महात्माओं ने शर्म से सिर झुका लिए। तब विदुरजी ने युधिष्ठिर से कहा कि आपकी माता कुंती वृद्धा है इसलिए उनका वन में जाना उचित नहीं है। वे मेरी माता के समान है। मैं उनकी देख-भाल करुंगा। तब युधिष्ठिर ने विदुर की बात मान ली और माता कुंती को विदुरजी के संरक्षण में छोड़ दिया।
तब युधिष्ठिर सभी से आज्ञा लेकर वन जान के लिए चल पड़े। जब द्रोपदी कुंती से जाने के लिए आज्ञा लेने गई तो कुंती को बहुत दु:ख हुआ। तब कुंती ने द्रोपदी को बहुत से आशीर्वाद दिए। पाण्डवों को वन में जाते देख कुंती विलाप कनरे लगी तो विदुरजी उन्हें समझाकर अपने घर ले आए। यह सब देखकर कौरव कुल की महिलाएं द्यूत सभा में द्रौपदी को ले जाना, उन्हें केश पकड़कर घसीटना आदि अत्याचार देखकर दुर्योधन आदि की निंदा करने लगी।

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