बुधवार, 13 अप्रैल 2011

पाण्डवों के जाने के बाद नगर में क्या-क्या अपशकुन हुए?


विदुरजी धृतराष्ट्र से बोले- पाण्डव को वन में जाते देख हस्तिनापुर के नागरिक बहुत दु:खी हो रहे हैं और कुरुकुल के वृद्धों को तथा पाण्डवों के साथ अन्याय करने वालों को धिक्कार रहे हैं। उधर पाण्डवों के वन में जाते ही आकाश में बिना बादल के ही बिजली चमकी, पृथ्वी थरथरा गई, बिना अमावस्या के ही सूर्यग्रहण लग गया। नगर की दाहिनी ओर उल्कापात हुआ। इन सभी घटनाओं का एक ही अर्थ है भरतवंश का विनाश।
जब विदुरजी यह बात धृतराष्ट्र से कह रहे थे तभी वहां नारदजी अनेक ऋषियों के साथ आ गए और बोले- दुर्योधन के अपराध के फलस्वरूप आज से चौदहवें वर्ष भीमसेन और अर्जुन के हाथों कुरुवंश का विनाश हो जाएगा। यह सुनकर दुर्योधन, कर्ण और शकुनि ने द्रोणाचार्य को ही अपना प्रधान आश्रय समझकर पाण्डवों का सारा राज्य उन्हें सौंप दिया। तब द्रोणाचार्य ने कहा कि पाण्डव देवताओं की संतान हैं उन्हें कोई मार नहीं सकता। यदि तुम अपनी भलाई चाहते हैं तो बड़े-बड़े यज्ञ करो, ब्राह्मणों को दान दो। सभी सुख भोग लो क्योंकि चौदहवें वर्ष तुम्हें बड़े कष्ट सहना होंगे।

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