शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

भागवत २२८ जीवन के हर क्षेत्र में कैसे करें उन्नति?

इसके अंदर वेदों की ऋचाएं हैं, वेदों के संदेश है, यह पुराणों का तिलक है। ज्ञानियों का चिंतन है, संतों का मनन है, भक्तों का वंदन है, भारत की धड़कन है। यह ऐसा समन्वयकारी साहित्य है जो हमारे मनभेद और मतभेद दोनों मिटा देता है। इसके पद-पद में, पंक्ति-पंक्ति, शब्द-शब्द में रस घुला हुआ है।
यह ऐसा साहित्य है जिसमें भगवान बार-बार कह रहे हैं कि मैं कौन हूं, तू कौन है यह जान ले। इस साहित्य को ऐसे रचा गया है कि इसमें बीते कल की स्मृति है, आज का शोध है और भविष्य की योजना है। इस अद्भुत साहित्य में हम प्रवेश कर रहे हैं। पूर्व में हम कथा सुन चुके थे भगवान पहुंच गए हैं मथुरा। भगवान की लीला नए रूप में आरंभ होने वाली है। भगवान गोकुल और ब्रज में सबको छोड़कर मथुरा आ गए।
मथुरा में भगवान का जीवन आरंभ हुआ और भगवान ने कल अपना विवाह रचाया। भगवान का दाम्पत्य आरंभ हो रहा है। मैं आपको पुन: दोहरा दूं हम बार-बार यह स्मरण करते आए हैं कि श्रीमद्भागवत परमात्मा का वाङमय स्वरूप है। इसमें शास्त्रों का सार है और जीवन का व्यवहार है।
भागवत हमें मरना सिखा रही है, महाभारत हमें रहना सिखा रही है, रामायण जीना सिखा रही है और गीता करना।
हमने अपने जीवन की चार शैली है जिसमें से सामाजिक जीवन में पारदॢशता, हमारे व्यवसायिक जीवन का परिश्रम और हमारे परिवार का प्रेम और निजी जीवन का पावित्र इसके लगातार प्रसंग देख रहे हैं। अब निजी जीवन के पवित्रता वाले भाग में प्रवेश कर रहे हैं। निजी जीवन कैसे पवित्र हो हमारे भगवान श्रीकृष्ण से हम देखते चलेंगे और चूंकि अब हम अंत समय की ओर बढ़ रहे हैं जीवन का वो काल जिसका एक दिन सबको मुकाबला करना है, भगवान हमको वहां लेकर चल रहे हैं। हमने सात दिन में दाम्पत्य के सात सूत्र देखे थे।
आज हमारा सूत्र है कैसे हम सक्षम बनें। भगवान कहते हैं सक्षम होने का अर्थ उन्नयन करें, प्रगति करें, आगे बढ़ें और हर तरह से तन, मन और धन से सक्षम होना दाम्पत्य की उपलब्धि है। भगवान कहते हैं कि क्या हम करते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है कि क्या हम होते हैं। आखिर अपने आपको पहचानना पड़ेगा। हम लोगों ने कई चीजों में उलझकर अपना जीवन इतना उथला और धुंधला कर लिया है कि हम पहचान नहीं पा रहे हैं और अब अपने ही केंद्र पर विस्फोट करने का समय आ गया है।
अब भीतर हमको एक जाग्रति लानी ही पड़ेगी। भगवान अपने चरित्र से यह घोषणा कर रहे हैं कि बहुत चीजों में उलझकर आराम का जीवन, अपनी सुविधा का जीवन, अपनी निजी पंसद का जीवन बहुत जी लिया अब थोड़ा संघर्ष का जीवन आया है। अब व्यापक दृष्टिकोण रखना पड़ेगा। भगवान कहते हैं कि आपकी समस्याओं का निदान सिर्फ आप ही हो सकते हैं दूसरों से उधार मत लीजिएगा। भगवान हमको सिखा रहे हैं भगवान हमको कह रहे हैं उधार का जीवन, उधार के विचार, उधार की शैली बहुत लंबे नही ले जाएगी।

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