शनिवार, 21 मई 2011

जब सीताजी ने आंखे खोली तो..

जब सीताजी ने अपनी आंखें खोली और रामजी की ओर देखा। उनकी शोभा देखकर सीताजी देखकर मंत्रमुग्ध हो गई। जब सहेलियों ने सीताजी को परवश देखा, तब सब भयभीत होकर कहने लगी। बड़ी देर हो गई। कल इसी समय फिर आयेंगी, ऐसा कहकर एक सहेली हंसी। सहेली की ऐसी बात सुनकर सीताजी सकुचा गई। उन्हें लगा देर हो गई। यह सोचकर उन्हें डर लगा। वे रामजी की सांवली सूरत को भूलाए नहीं भूल पा रही हैं। उनकी छबि जैसे सीताजी के मस्तिष्क से हटने का नाम ही नहीं ले रही है। उसके बाद सीताजी फिर से भवानीजी के मंदिर गई और उनके चरणों की वन्दना करके हाथ जोड़कर बोली- हे मां पार्वती आपका ना आदि है ना अंत है।
आपके महिमा असीम है। मां आप मेरे मनोरथ को अच्छे से जानती हैं ऐसा कहकर सीताजी ने उनके चरण पकड़ लिए तब गिरिजाजी उन पर प्रसन्न होकर बोली- सीता हमारी बात सुनो तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी। जिसे तुम पति रूप में चाहती हो वही तुम्हे मिलेगा। रामजी ने भी अपने गुरु विश्वामित्र को जाकर सबकुछ बोल दिया क्योंकि उनका स्वभाव सरल है। वे अपने मन में कोई छल नहीं रखते। फिर दोनों भाइयों को विश्वामित्रजी ने आर्शीवाद दिया कि तुम अपने मनोरथ में सफल हो। जानकी जी ने शतानन्दजी को बुलाया और उन्हें तुरंत ही विश्वामित्रजी के पास भेजा। उन्होंने आकर सीताजी की बात सुनाई।
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