शनिवार, 23 जुलाई 2011

इन्द्र उन्हें सोमपान से रोकना चाहता था क्योंकि...

ऋषि च्यवन ने अश्विनीकुमारों से कहा मैं वृद्ध था तुमने जो यौवन मुझे दिया। मैं इसलिए तुम्हे सोमपान का अधिकार दिलवाऊंगा।
यह सुनकर अश्विनीकुमार प्रसन्न होकर स्वर्ग को चले गए। च्यवन और सुकन्या उस आश्रम में देवताओं के समान विहार करने लगे। जब शर्याति ने सुना कि च्यवन मुनि युवा हो गए हैं तो उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। वह अपनी सेना सहित आश्रम पहुंचे। राजा और रानी को ऐसा लगा मानों उन्हें पूरी पृथ्वी का राज्य मिल गया हो। फिर च्यवन मुनि ने राजा से कहा मैं आपसे यज्ञ करवाऊंगा। आप सारी सामग्री तैयार करवाइए। राजा ने बहुत प्रसन्नता से उनकी बात मान ली। जब यज्ञ का दिन आया। ें महर्षि च्यवन ने यज्ञ की शुरूआत की। उन्होंने अपनी यज्ञ का कुछ भाग अश्विनी कुमारों को दे दिया। तब इन्द्र ने उन्हें रोकते हुए। ये चिकित्साकार्य करते हैं और मनमाना रूप धारण कर मृत्युलोक में भी विचरते रहते हैं। इन्हें सोमपान का अधिकार कैसे हो सकता है। जब च्यवन ऋषि देखा कि देवराज बार-बार उसी बात पर जोर दे रहे हैं। उन्होंने उनकी उपेक्षा कर अश्विनीकुमारों को देने के लिए उत्तम सोमरस लिया। उन्हें इस प्रकार अश्विनीकुमारों के लिए सोमरस लेते देख इन्द्र को भयंकर क्रोध आया। इन्द्र उन पर वज्र छोडऩे को उद्धत हुआ। वो जैसे ही प्रहार करने लगे कि च्यवन ने उनकी भुजाओं को स्तंभित कर दिया। उन्होंने अपने तपोबल से मद नामक एक राक्षस उत्पन्न किया। इससे इन्द्र को बड़ा ही दुख हुआ। उसके बाद अश्विनीकुमारों ने सोमपान किया। उसके बाद इन्द्र ने च्यवन मुनि से क्षमा मांगी। उसके बाद च्यवन मुनि का कोप शांत हुआ।

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