जो गृहस्थ में हैं उन्हें लगता है कि इस दुनियादारी में रहते हुए सच्ची खुशी और मन का सुकून नहीं मिल सकता, लेकिन ऐसी सोच में सच्चाई नहीं है। क्योंकि खुशी और शांति हालातों पर नहीं बल्कि खुद व्यक्ति के सही नजरिये पर निर्भर होती है।
इस बात को समझने के लिये आइए चलते हैं एक सुन्दर कथा की ओर....
प्रसिद्ध राजा अश्वघोष के मन में वैराग्य हो गया यानी संसार और दुनियादारी से उसे अरुचि हो गई। घर-परिवार को छोड़कर वे यहां-वहां ईश्वर और सच्ची शांति की खोज में भटकने लगे। कई दिनों के भूखे प्यासे अश्वघोष एक दिन भटकते हुए एक किसान के खेत पर पहुंचे। अश्वघोष ने देखा कि वह किसान बड़ा ही प्रशन्न, स्वस्थ व चेहरे से बड़ा ही संतुष्ट लग रहा था। अश्वघोष ने किसान से पूछा- ''मित्र तुम्हारी इस प्रशन्नता और संतुष्टि का राज क्या है? देखने में तो तुम थोड़े गरीब या सामान्य ही लगते हो। ''किसान ने जवाब दिया कि-'' सभी जगह ईश्वर के दर्शन और परिश्रम में ही परमात्मा का अनुभव करना ही मेरी इस प्रशन्नता और संतुष्टि का कारण है।''
अश्वघोष ने कहा-''मित्र उस ईश्वर के दर्शन और अनुभव मुझे भी करा दोगे तो मुझपर बड़ी कृपा होगी।'' अश्वघोष की इच्छा जानकर किसान ने कहा- ''ठीक है... पहले आप कुछ खा-पी लें, क्योंकि तुम कई दिनों के भूखे लग रहे हो।''
किसान ने घर से आई हुई रोटियां दो भागों में बांटीं। दोनों ने नमक मिर्ची की चटनी से रोटियां खाईं। फिर किसान ने उन्हें खेत में हल चलाने के लिये कहा। थोड़ी देर में ही श्रम से थके हुए और कई दिनों बाद मिले भोजन की तृप्ति के कारण राजा अश्वघोष को नींद आने लगी। किसान ने आम के पेड़ के नीचे छाया में उन्हें सुला दिया। जब राजा अश्वघोष सो कर उठे, तो उस दिन जो शांति और हलकेपन का अहसास हुआ वह महल की तमाम सुख-सुविधाओं में भी आज तक नहीं हुआ था।
....राजा को किसान से पूछे गए अपने प्रश्र का जवाब खुद ही मिल गया। जिसकी तलाश में राजा दर-दर भटक रहा था वह शांति का रहस्य राजा को मिल गया कि ईश्वर पर अटूट आस्था और परिश्रम ही सारी समस्याओं का हल है।
इस बात को समझने के लिये आइए चलते हैं एक सुन्दर कथा की ओर....
प्रसिद्ध राजा अश्वघोष के मन में वैराग्य हो गया यानी संसार और दुनियादारी से उसे अरुचि हो गई। घर-परिवार को छोड़कर वे यहां-वहां ईश्वर और सच्ची शांति की खोज में भटकने लगे। कई दिनों के भूखे प्यासे अश्वघोष एक दिन भटकते हुए एक किसान के खेत पर पहुंचे। अश्वघोष ने देखा कि वह किसान बड़ा ही प्रशन्न, स्वस्थ व चेहरे से बड़ा ही संतुष्ट लग रहा था। अश्वघोष ने किसान से पूछा- ''मित्र तुम्हारी इस प्रशन्नता और संतुष्टि का राज क्या है? देखने में तो तुम थोड़े गरीब या सामान्य ही लगते हो। ''किसान ने जवाब दिया कि-'' सभी जगह ईश्वर के दर्शन और परिश्रम में ही परमात्मा का अनुभव करना ही मेरी इस प्रशन्नता और संतुष्टि का कारण है।''
अश्वघोष ने कहा-''मित्र उस ईश्वर के दर्शन और अनुभव मुझे भी करा दोगे तो मुझपर बड़ी कृपा होगी।'' अश्वघोष की इच्छा जानकर किसान ने कहा- ''ठीक है... पहले आप कुछ खा-पी लें, क्योंकि तुम कई दिनों के भूखे लग रहे हो।''
किसान ने घर से आई हुई रोटियां दो भागों में बांटीं। दोनों ने नमक मिर्ची की चटनी से रोटियां खाईं। फिर किसान ने उन्हें खेत में हल चलाने के लिये कहा। थोड़ी देर में ही श्रम से थके हुए और कई दिनों बाद मिले भोजन की तृप्ति के कारण राजा अश्वघोष को नींद आने लगी। किसान ने आम के पेड़ के नीचे छाया में उन्हें सुला दिया। जब राजा अश्वघोष सो कर उठे, तो उस दिन जो शांति और हलकेपन का अहसास हुआ वह महल की तमाम सुख-सुविधाओं में भी आज तक नहीं हुआ था।
....राजा को किसान से पूछे गए अपने प्रश्र का जवाब खुद ही मिल गया। जिसकी तलाश में राजा दर-दर भटक रहा था वह शांति का रहस्य राजा को मिल गया कि ईश्वर पर अटूट आस्था और परिश्रम ही सारी समस्याओं का हल है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें