रविवार, 1 जुलाई 2012

जब कृष्ण कूद पड़े महाभारत के युद्ध में तो...

श्रीकृष्ण ने कहा अब मैं स्वयं अपना चक्र उठाकर भीष्म और द्रोण के प्राण लूंगा और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूंगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके मैं आज युधिष्ठिर को अजातशत्रु राजा बनाऊंगा इतना कहकर कृष्ण ने घोड़ों की लगाम छोड़ दी और हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर रथ से कूद पड़े। उसके किनारे का भाग छूरे के समान तीक्ष्ण था। भगवान कृष्ण बहुत वेग से भीष्म की ओर झपटे, उनके पैरों की धमक से पृथ्वी कांपने लगी। वे भीष्म की ओर बढ़े। वे हाथ में चक्र उठाए बहुत जोर से गरजे। उन्हें क्रोध में भरा देख कौरवों के संहार का विचार कर सभी प्राणी हाहाकार करने लगे।
उन्हें चक्र लिए अपनी ओर आते देख भीष्मजी बिल्कुल नहीं घबराए। उन्होंने कृष्ण से कहा आइए-आइए मैं आपको नमस्कार करता हूं। भगवान को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी रथ से उतरकर उनके पीछे दौड़े और पास जाकर उन्होंने उनकी दोनों बांहे पकड़ ली। भगवान रोष मे भरे हुए थे, अर्जुन के पकडऩे पर भी वे रूक न सके। जैसे आंधी किसी वृक्ष को खींच लिए चली जाए, उसी प्रकार वे अर्जुन को घसीटते हुए आगे बढऩे लगे।अर्जुन ने जैसे -तैसे उन्हें रोका और कहा केशव आप अपना क्रोध शांत कीजिए , आप ही पांडवों के सहारे हैं। अब मैं भाइयों और पुत्रों की शपथ लेकर कहता हूं कि मैं अपने काम में ढिलाई नहीं करूंगा, प्रतिज्ञा के अनुसार ही युद्ध करूंगा। तब अर्जुन की यह प्रतिज्ञा सुनकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए।

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