यहां पक्षी करते हैं सामूहिक आत्महत्या...
असम में जतिंगा नामक एक ऐसा गांव है, जहां की कछार नामक घाटी की तलहटी में कूदकर हजारों पक्षी एक साथ एक खास मौसम में आत्महत्या कर लेते हैं। इसका क्या रहस्य है? वैज्ञानिक इस पर अभी तक कोई खुलासा नहीं कर पाए हैं। यह गांव पक्षियों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं के कारण दुनियाभर में सुर्खियों में बना हुआ है।
जापान के माउंट फूजी तलहटी में आवकिगोहारा का घने जंगल में जिस तरह से लोग आत्महत्या करने आते हैं ठीक उसी तरह जतिंगा में पक्षी आत्महत्या करने जाते हैं। आदमी आत्महत्या अकेले ही करता है और उसके आत्महत्या करने के कारण समझ में आते हैं। लेकिन यहां मामला जरा अलग है, कोई अकेला पक्षी आत्महत्या नहीं करता बल्कि सामूहिक रूप से सभी आत्महत्या कर लेते हैं। आखिर ऐसी कौन-सी शक्ति उनको इसके लिए प्रेरित करती है या ऐसा कौन-सा दुख है, जो सभी को एकसाथ आत्महत्या करने पर मजबूर कर देता है।हालांकि वैज्ञानिक कुछ ठोस बात कह पाने की स्थिति में नहीं हैं। फिर भी कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ऐसा जतिंगा घाटी की विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण होता है, तो कुछ राज्य में होने वाली वर्षा को इससे जोड़कर देखते हैं।वैज्ञानिकों का कहना है कि मरने वाले पक्षियों में अधिकतर पानी के आसपास रहने वाली जातियां हैं। इससे इस बात को बल मिलता है कि इसका संबंध राज्य में होने वाली वर्षा और बाढ़ से है।
वैज्ञानिक कहते हैं कि शोध से यह पता चला है कि जिस साल पक्षियों ने ज्यादा जान दी उस साल राज्य में अधिक मेघ बरसे और बाढ़ का प्रकोप भी अधिक रहा। उदाहरण के लिए वर्ष 1988 में सबसे अधिक पक्षी मरे थे और उस साल राज्य में वर्षा और बाढ़ का प्रकोप अधिक था।ये घटनाएं सितंबर से नवंबर के बीच अंधेरी रात में घटती हैं, जब नम और कोहरे-भरे मौसम में हवाएं दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर बहने लगती हैं। रात के अंधेरे में पक्षी रोशनी के आस-पास उड़ने लगते हैं। इस समय वे मदहोशी जैसी अवस्था में होते हैं जिसके कारण ये आसपास की चीजों से टकराकर मर जाते हैं। इस मौके का यहां के लोग भी खूब फायदा उठाते हैं। ऐसा देखा गया है कि पक्षी शाम 7 से रात 10 बजे के बीच ऐसा व्यवहार ज्यादा करते हैं। अगर इस दौरान हल्की बारिश हो रही हो तो ये पक्षी और ज्यादा उत्तेजित हो जाते हैं। भारत सरकार : भारत सरकार ने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ डॉ. सेन गुप्ता को नियुक्त किया था। डॉ. गुप्ता ने यहां लंबे समय तक अध्ययन करने के बाद कहा कि पक्षियों के इस असामान्य व्यवहार के पीछे मौसम और चुम्बकीय शक्तियों का हाथ है।उन्होंने बताया कि वर्षा के मौसम में जब कोहरा छाया हो और हवा चल रही हो, तब शाम के समय जतिंगा घाटी की चुम्बकीय स्थिति में तेजी से बदलाव आ जाता है। इस परिवर्तन के कारण ही पक्षी असामान्य व्यवहार करते हैं और वे रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं। अपने शोध के बाद उन्होंने यह सलाह दी कि ऐसे समय में रोशनी जलाने से बचा जाए।उनके इस सलाह पर अमल करने से यहां होने वाली पक्षियों की मौत में 40 फीसदी की कमी आई है।जतिंगा में 44 जातियों की स्थानीय चिड़ियाएं आत्महत्या करती हैं। इनमें टाइगर बिट्टर्न, ब्लैक बिट्टर्न, लिटिल इहरेट, पॉन्ड हेरॉन, इंडियन पिट्टा और किंगफिशर जाति की चिड़ियाएं अधिक शामिल होती हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं कि शोध से यह पता चला है कि जिस साल पक्षियों ने ज्यादा जान दी उस साल राज्य में अधिक मेघ बरसे और बाढ़ का प्रकोप भी अधिक रहा। उदाहरण के लिए वर्ष 1988 में सबसे अधिक पक्षी मरे थे और उस साल राज्य में वर्षा और बाढ़ का प्रकोप अधिक था।ये घटनाएं सितंबर से नवंबर के बीच अंधेरी रात में घटती हैं, जब नम और कोहरे-भरे मौसम में हवाएं दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर बहने लगती हैं। रात के अंधेरे में पक्षी रोशनी के आस-पास उड़ने लगते हैं। इस समय वे मदहोशी जैसी अवस्था में होते हैं जिसके कारण ये आसपास की चीजों से टकराकर मर जाते हैं। इस मौके का यहां के लोग भी खूब फायदा उठाते हैं। ऐसा देखा गया है कि पक्षी शाम 7 से रात 10 बजे के बीच ऐसा व्यवहार ज्यादा करते हैं। अगर इस दौरान हल्की बारिश हो रही हो तो ये पक्षी और ज्यादा उत्तेजित हो जाते हैं। भारत सरकार : भारत सरकार ने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ डॉ. सेन गुप्ता को नियुक्त किया था। डॉ. गुप्ता ने यहां लंबे समय तक अध्ययन करने के बाद कहा कि पक्षियों के इस असामान्य व्यवहार के पीछे मौसम और चुम्बकीय शक्तियों का हाथ है।उन्होंने बताया कि वर्षा के मौसम में जब कोहरा छाया हो और हवा चल रही हो, तब शाम के समय जतिंगा घाटी की चुम्बकीय स्थिति में तेजी से बदलाव आ जाता है। इस परिवर्तन के कारण ही पक्षी असामान्य व्यवहार करते हैं और वे रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं। अपने शोध के बाद उन्होंने यह सलाह दी कि ऐसे समय में रोशनी जलाने से बचा जाए।उनके इस सलाह पर अमल करने से यहां होने वाली पक्षियों की मौत में 40 फीसदी की कमी आई है।जतिंगा में 44 जातियों की स्थानीय चिड़ियाएं आत्महत्या करती हैं। इनमें टाइगर बिट्टर्न, ब्लैक बिट्टर्न, लिटिल इहरेट, पॉन्ड हेरॉन, इंडियन पिट्टा और किंगफिशर जाति की चिड़ियाएं अधिक शामिल होती हैं।
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