बच्चों की मासिक पत्रिका भोपाल से प्रकाशित , सम्पादक -अरुण बंछोर, उपसंपादक -ओमप्रकाश बंछोर
मंगलवार, 12 अगस्त 2014
प्याज़ से निकले आत्मनिर्भरता के आंसू
मैंने जब-जब आत्मनिर्भर होने की कोशिश की, कोई न कोई ट्रैजेडी हो ही जाती है। पिछले महीने मैं अपने गांव गया था, रास्ते में किसी जेबकतरे ने मुझे आत्मनिर्भर होने से रोक दिया। घर पहुंचकर पता चला कि मैं बगैर फोन के हूं। इस कलियुग में बगैर बीवी के जिया जा सकता है, बगैर सेलफोन के नहीं। नई सरकार देश को आत्मनिर्भर बनाने में लगी हुई है। यह प्रयास सनातन काल से चल रहा है। जो भी पार्टी सत्ता में आती है, देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है, पर बदकिस्मती देखिए कि कोई सरकार मंहगाई और भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाती है, तो कोई 'अच्छे दिन' में प्याज़ के आंसू रोने लगती है। नतीजा आत्मनिर्भरता की इस दौड़ में नेता आगे निकल जाता है, देश पीछे छूट जाता है।
दो दशक में सियासत में भी सब्ज़ी मंडी का बोलबाला रहा। पिछले पचास साल से देश को शिक्षा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास चल रहा है। कुकुरमुत्तों की तरह स्कूल उग आए। शिक्षा मंडी लग गई, नौजवानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिक्षित होना अनिवार्य बता कर सरकार और शिक्षा मंत्री कोमा में चले जाते हैं। अब अभिभावक अपनी औलाद को लेकर इस मंडी में खड़ा है। सरकारी कॉलेज की कट ऑफ लिस्ट में कहीं नाम नहीं और प्राइवेट शिक्षा मंडी में 'एडमिशन' खरीदने की औकात नहीं। जाएं तो जाएं कहां! मन मारकर युवा टैलंट 'हुक्का पार्लर में' आत्मनिर्भर होने लगता है।
पिछली सरकार साठ साल से देश को आत्मनिर्भर बनाने में लगी रही। घोटालों के चक्रवात में जनता गोल-गोल घूमती रही। क्लर्क से लेकर काउन्सलर तक आत्मनिर्भर होते रहे -देश का फिर नंबर नहीं आया। बीजेपी सरकार को और जल्दी है। उनके एक नेता तो 'कुंवारों' को भी आत्मनिर्भर बनाने का वादा कर रहे हैं। आज जनता 'अच्छे दिन' की चपेट में है। महंगाई की सूनामी फिर आहट दे रही है। प्याज़ का प्रेत उठ खड़ा हुआ है। खाद्य मंत्री कह रहे हैं-'देश पूरी तरह (अन्न के मामले में) आत्मनिर्भर हैं-। मंत्री जी! अन्न के बारे में आत्मनिर्भर होने पर बधाई, पर लगे हाथ यह तो बता दो कि उन्हें सुरक्षित रखने के बारे में कब तक आत्मनिर्भर हो जाएंगे? आए दिन खुले आसमान के नीचे लाखों टन अनाज सड़ जाता है। अब मुझे पूरा यकीन है कि देश महंगाई के मामले में 'आत्मनिर्भर' हो चुका है। महंगाई एक शाश्वत सत्य है। इसके पीछे सरकार का तो बिल्कुल हाथ नहीं है। जब-जब जांच हुई जनता ही कुसूरवार पाई गई। पिछली सरकार ने जांच के बाद पाया था कि महंगाई के पीछे जनता का 'खानपान जिम्मेदार है। (जनता चटोरी हो गई या फिर ज्यादा खाने लगी है ) अब नई सरकार ने भी मंहगाई के लिए जनता के खानपान को जिम्मेदार ठहराया है। उम्र के पचास साल पूरे करने के बाद भी मैं अक्ल के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया। एक से एक 'मंगनी लाल' आलू बेचते आए और देखते ही देखते अरबपति हो गए। हम तो-कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे। लाइफ में जितनी बार आत्मनिर्भर होने की कोशिश की, घर की थाली का कद छोटा होता गया।
कल चौधरी मुझसे पूछ बैठा- 'उरे कू सुण भारती! तू आत्मनिर्भर हुआ कि नहीं?'
'पिछले महीने किसी जेबकतरे ने मेरा सेलफोन निकाल लिया। तबसे बड़ा कन्फ्यूज्ड हूं।'
'अरे, मैं तो तब तक आत्मनिर्भर होने की सोच भी नहीं सकता, जिब तक तू कुंडली में बैठो है।'
'आज अचानक तुम्हें आत्मनिर्भर होने की क्या सूझी?'
'कल टीवी पर खबर सुनी, तब मन्ने पतो लग्या-अक-मैं आत्मनिर्भर हो रहा हूं। उतै खबर में एक आत्मनिर्भर नेता नू कह रहो-अक-इस प्रक्षेपण के बाद देश घना आत्मनिर्भर हो गयो-।'
'फिलहाल तो महंगाई की बौछार में जनता का कंबल और भारी हो गया है। सूखी हलक और पथरायी आंखों से जनता कभी प्याज़ की बुलंदी देखती है तो कभी प्रक्षेपित सेटेलाइट्स की। ऐसे कालाहारी में तुझे आत्मनिर्भर होने की पड़ी है?' चौधरी मुझे घूर रहा था।
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