गुरुवार, 25 सितंबर 2014

शेर पर सवार होकर हरदी आती है माँ महामाया

 





सप्तमी की देर रात हरदी के लोग जब भजन-कीर्तन में डूबे रहते हैंउसी वक्त मॉ महामायाशेर पर सवार होकर साक्षात् रूप में मं दिर केगर्भगृह में हुंचती है। शेर पर सवार माता केसाक्षा त् रूप को भले ही आज तक किसीक्त ने नहीं देखा हैलेकिन दोनों पक्ष की नवरात्रि में सप्तमीं की रात मंदिर के भीतर शेर केपंजों के निशान भक्तों को दिखते हैं।
जिला
 मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर ग्राम हरदी की पहाड़ी पर माता महामाया का मंदिर हैयहां वर्ष के दोनों नवरात्रि पर्व पर धूम रहती है। नवरात्रि के हले दिन से ही यहां माता केदर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के भक्त यहांज्योतिकलश प्रज्जवलित कराते हैं। ग्रामीणों की मान्यता है कि रतनपुर के महामाया का एकरूप ग्राम हरदी में विराजित हैजहां मनोकामना लेकर पहुंचने वाले हर भक्त की मुराद पूरीहोती है। साथ ही शारीरिक कष्ट से पीड़ि लोगों का दुख भी माता हरती है। भगवती महामायाके संबंध में लोककथा प्रसिद्ध है कि आज सेलगभग 400 वर् पूर्व छत्तीसगढ़ अंचलकी राजधानी रतनपुर हुआ करता थाजो24 परगनों में बंटा था। रतनपुर राज्य केएक परगना के दीवान श्री मलसाय जी थे,जो सरकारी तौर पर उस परगना केसीमावर्ती ग्राम हरदी के लिए नियुक्त थे। वेइसी क्षेत्र में ही निवास करते थे। उस समयरतनपुर के राजा दशहरा त्योहार परप्रतिवर्ष पशु बलि चढ़ाकर महामाया कापूजन करते थेजिसे उनके दीवान द्वारासंपन्न कराया जाता था। 
एक
 बार बलि पूजन का कार्य राजा द्वारा दीवान मलसाय को सौंपा गया। वे महामाया केअन्यय भक्त एवं अहिंसा के पुजारी थे। अतः पशु बलि पाप के भय से उनका स्वास्थ्य गिरनेलगाऔर वे चिंतित रहने लगे कि राजा के आज्ञा का पाल कैसे होगाक्या वे पशु बलिदेकर बलि पूजा संपन्न कराएंगेएक रात मां महामाया ने दीवान मलसाय जी को स्वप्नदेकर कहा कि यदि मुझ पर तुम्हें विश्वासहैतोचिंता की कोई जरूरत नहीं हैसब ठीकहो जाएगा। पूजा के दिन तुम्हें जो उचितलगे वही करनाइतने में दीवान जी की नींदखुल गई। चूँकि अहिंसा के पुजारी होने कीवजह से मलसाय जीदीवान बनने के पहलेदिन से ही लकड़ी का तलवार रखते थे। पर्की बलि पूजन के अवसर पर दीवान जी नेलकड़ी के उक्त तलवार से यह सोंचकर वारकिया कि राजा के आज्ञा का पालन होजाएगा और पशु की जान भी बच जाएगी।उस दौरान उपस्थित जनसमूह ने मलसाय जी के हाथ को लकड़ी के तलवार सहित ऊपरउठते देखालेकिन पशु के गर्दन पर वार करते और गर्दन कटने किसी ने नहीं देखा। 
बलि
 पूजन के बाद पशु का सिर धड़ से अलग देवी मां के चरणों में पड़ा हुआ देखकर मलसायचकित हो गए और उन्होंने माता से आर्शीवाद मांगा कि हे मां मैं आपके चरण स्थली रतनपुरसे दूर ग्राम हरदी में निवास करता हूं। अतःमुझे प्रतिदिन आपके दर्शन होऐसाआर्शीवाद प्रदान कीजिए। उसी रात मलसायजी को मां महामाया ने स्वप्न में कहा किवत्स कल सुबह काल में मेरे मंदिर के द्वारपर तुम्हे शिलाखंड प्राप्त होगाजिसे तुम मेरीमूर्ति मानकर ग्राम हरदी में स्थापित करलेना। मूर्ति स्थापना के बाद से तुम्हें औरसभी श्रद्धालुओं को मेरे दर्शन का पूर्ण लाभसदैवमिलता रहेगा। माता जी की आज्ञा केअनुसार मलसाय जी ने दूसरे दिन प्रातःमहामाया के द्वार पर प्राप्त शिलाखंडों कोलाकर ग्राम हरदी के पहाड़ी पर नीम वृक्ष के नीचे विधिवत् पूजा अर्चना कर स्थापित करदिया। इसके बाद से मां महामाया की स्थापना ग्राम हरदी में हुईजो आज ग्राम के अधिष्ठात्रीदेवी के रूप में भक्तों के कृतार्थ कर रही हैं। 
ग्रामीणों
 के अनुसार पिछले कई दशकों से सप्तमी की देररात लोग जब मंदिर के बाहर भजन-कीर्तन में डूबे रहतेहैंउसी वक्त मॉ महामाया शेर पर सवार होकर साक्षात्रूप में मंदिर के गर्भगृह में पहुंचती है। सप्तमी पर मंदिरमें पूजा का सिलसिला रात 11 बजे तक जारी रहता है,इसके बाद कुछ सम के लिए ट्रस्ट द्वारा मंदिर के सभीपट बंद कर दिए जाते हैं। रात 12 बजे के बाद जब मंदिरका पट खोला जाता हैतो माता की प्रतिमा के सामनेफर्श पर शेर के पंजे के निशान दिखते हैं। जिसकी एकझलक पाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ टूट पड़ती है। गाँव के बुजुर्ग बताते है कि सप्तमी की रात 11 बजे माता कीमूर्ति के सामने आटा बिछा दिया जाता है। इसके बादमंदिर के पट कुछ समय के लिए बंद कर सभी बाहरनिकल जाते हैं। वहां बैगा भी नहीं रहता। इस दौरानसभी लोग मंदिर के बाहर भजन-कीर्तन करते हुए माताकी भक्ति में लीन रहते हैं। तभी माता साक्षात् रूप में शेर पर सवार होकर मंदिर के गर्भगृह मेंपहुंचती है और वे कुछ देर विश्राम कर भोग भी ग्रहण करती है। कुछ देर बाद जब मंदिर कापट खोला जाता हैतो माता की मूर्ति के सामनेफर्श पर बिछे आटे में शेर के पंजे के निशानजगह-जगह दिखते हैं। 
मंदिर
 के ही पुजारी जगन्नाथ पाण्डेय तथाजितेन्द्र पाण्डेय ने बताया कि शेर कहां से आताहैइसकी जानकारी आज तक किसी को नहींहुई है। जिस वक्त माता शेर पर सवार होकरमंदिर के गर्भगृह में पहुंचती हैउस समय सभीदरवाजे बंद रहते है। ऐसे में मंदिर के अंदरकिसी व्यक्ति के पहुंचने का कोई रास्ता भी नहींरहता। वे बताते है कि सप्तमीं की रात होने वालायह चमत्कार कब से हो रहा हैतथा इसके पीछे देवी की क्या मंशा हैइस बारे में भी स्पष्ट करपाना संभव नहीं हैलेकिन सच्चाई यह है कि मंदिर में शेर के पदचिन्ह बनने का सिलसिलापिछले कई दशकों से जारी है। महामाया मंदिर परिसर में भोले भंडारीमां दुर्गाराम-जानकी,साईबाबा सहित अन्य देवी देवता स्थापित हैजो अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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