विदेशों में सब्जी चाँवल के लिए तरस जाती हूँ
बेटियों को कमजोर समझना मानव समाज की सबसे बड़ी भूल है ,उसे कमजोर मत समझो क्योकि बेटियां ही अंत तक माँ -बाप की सेवा करती है। यह कहना है मशहूर पंडवानी गायिका पद्मविभूषन डॉ तीजन बाई का । वे कहती है कि जब प्रोग्राम के लिए हम विदेश जाते हैं तो सब्जी चाँवल के लिए तरस जाते है। मैं कहीं भी रहूँ अपनी छत्तीसगढ़ की परम्परा को कभी नहीं भूलती। पेरिस उनका पसंदीदा शहर है ,जहां वे ८ बार कार्यक्रम पेश कर चुकी है। विदेशों में जब उनके ही गीतों से उनका स्वागत होता है तो तीजन बाई बहुत ही गर्व महसूस करती है। तीजन बाई को कौन नहीं जानता। जो तीजन को जानता है वह पंडवानी को भी जानता है। यह दोनों नाम एक दूसरे के पूरक हैं। भिलाई के गाँव गनियारी में जन्मी इस
कलाकार के पिता का नाम छुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। नन्हीं तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते सुनाते देखतीं और धीरे—धीरे उन्हें ये कहानियां याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएं केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया। तीजन बाई को अपनी उपलब्धियों का जरा सा भी गुरूर नहीं है। वह कहती हैं मैं आज भी गांव की औरत हूं। दिल में कुछ नहीं है …ऊंच-नीच, गरीब-अमीर कुछ नहीं, मैं सभी से एक जैसे ही मिलती हूं। बात करती हूं। बच्चों बूढ़ों के बीच बैठ जाती हूं। इससे दुनियादारी की कुछ बातें सीखने तो मिलती है। ऎसे में कोई कुछ-कह बोल भी दे तब भी बुरा नहीं लगता। मैं आज भी एक टेम बोरे बासी (रात में पका चावल पानी में डालकर) और टमामर की चटनी खाती हूं। उनसे हमने हर पहलूओं पर बेवाक बात की है।
0 पंडवानी की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में भी गाये जाएंगे। महाभारत के प्रसंगों और कथानकों पर विकसित यह लोकप्रिय विधा है। छत्तीसगढ़ी बोली इसका लालित्य है।
0 मुख्यरूप से यह कहाँ कहाँ गई जाती है ?
00 कहीं भी कोई बंदिश नहीं है। हर जगह गई जाती है।
0 तो क्या कारण है कि लोकगीत लुप्त होती जा रही है ,युवा पीढ़ी का इस क्षेत्र में कितना भविष्य है?
00 लोकगीतों को जीवित रखने के लिए अपनी परम्परा और संस्कृति से लगाव जरूरी है। साथ ही शास्त्रीय संगीत की तरह इस विधा में भी गुरु शिष्य परम्परा को बढ़ावा देना जरूरी है।यह जिम्मेदारी लोकगीत के साधकों की है।
0 आपने किससे सीखा और आपके कितने शिष्य है ?
00 मेरे गुरु मेरे नाना ब्रजभूषण जी शारदीय है जिससे मैंने सब कुछ सीखा है और इस समय मेरे 200 से ज्यादा शिष्य हैं,जो इस परम्परा को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं।
0 संगीत नाटक अकादमी जैसे संस्थान लोकगीतों के लिए क्या कर रहे हैं?
00 कुछ भी नहीं कर , क्यों ये तो वही जाने। सरकार कुछ कर रही है पर उसे कहा जा सकता।
0 फिल्मो गीतों ने लोकगीतों को कितना नुकसान पंहुचाया है?
00 देखिये फिल्मो के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है और मैं फिल्मो से मतलब भी नहीं रखता। दोनों अलग अलग चीजें है।
0 कोई सुखद अनुभव बताईये ?
00 पदमश्री मिलने का दिन आज भी मोर सुरता में है, वेंकटरमनजी ने दिया था। उसी दिन इंदिरा गांधी से भी मिली थी बहुत अच्छी लगी, उन्होंने मेरी पंडवानी सुनी थी। मुझे बुलाकर बोली- छत्तीसगढ़ की हो ना। मैने हाँ कहा तो इंदिरा बोली महाभारत करती हो तो मैं बोली पंडवानी सुनाती हूं महाभारत नहीं कराती, सुनकर इंदिराजी खुश हुई और मेरी पीठ थपथपाई थीं।
0 सरकार से लोकगीतों को आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार लोकगीतों को मदद करे। बहुत सी लोकगीत है अनेक विधाएँ है सबकी रक्षा सरकार ही कर सकती है।
0 कोई ऐसा अवसर आया हो ,जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
00 पद्मविभूषण लेकर, वह बहुत ही जीवन का असीम क्षण है। और मुझे विदेशों में जब अपने ही गीतों से मेरा स्वागत करते हैं।
0 आप कई देशों में कार्यक्रम पेश करने के लिए जा चुकी है। इन देशो में समानता क्या है।
00 जब प्रोग्राम के लिए हम विदेश जाते हैं तो सब्जी चाँवल के लिए तरस जाते है। विदेशों में उबले हुए आलू से काम चलाना पड़ता है।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00 कभी नहीं। मैं कभी निराश नहीं होती।
0 पाठकों के लिए कोई सन्देश?
00 बेटियां अमूल्य धरोहर है उसकी रक्षा करे पढ़ा लिखाकर आगे बढ़ाये। बेटियों को कमजोर समझना मानव समाज की सबसे बड़ी भूल है ,उसे कमजोर मत समझो क्योकि बेटियां ही अंत तक माँ -बाप की सेवा करती है। मै भी तो एक बेटी ही हूँ जिस पर दुनिया नाज करती है।
बेटियों को कमजोर समझना मानव समाज की सबसे बड़ी भूल है ,उसे कमजोर मत समझो क्योकि बेटियां ही अंत तक माँ -बाप की सेवा करती है। यह कहना है मशहूर पंडवानी गायिका पद्मविभूषन डॉ तीजन बाई का । वे कहती है कि जब प्रोग्राम के लिए हम विदेश जाते हैं तो सब्जी चाँवल के लिए तरस जाते है। मैं कहीं भी रहूँ अपनी छत्तीसगढ़ की परम्परा को कभी नहीं भूलती। पेरिस उनका पसंदीदा शहर है ,जहां वे ८ बार कार्यक्रम पेश कर चुकी है। विदेशों में जब उनके ही गीतों से उनका स्वागत होता है तो तीजन बाई बहुत ही गर्व महसूस करती है। तीजन बाई को कौन नहीं जानता। जो तीजन को जानता है वह पंडवानी को भी जानता है। यह दोनों नाम एक दूसरे के पूरक हैं। भिलाई के गाँव गनियारी में जन्मी इस
कलाकार के पिता का नाम छुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। नन्हीं तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते सुनाते देखतीं और धीरे—धीरे उन्हें ये कहानियां याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएं केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया। तीजन बाई को अपनी उपलब्धियों का जरा सा भी गुरूर नहीं है। वह कहती हैं मैं आज भी गांव की औरत हूं। दिल में कुछ नहीं है …ऊंच-नीच, गरीब-अमीर कुछ नहीं, मैं सभी से एक जैसे ही मिलती हूं। बात करती हूं। बच्चों बूढ़ों के बीच बैठ जाती हूं। इससे दुनियादारी की कुछ बातें सीखने तो मिलती है। ऎसे में कोई कुछ-कह बोल भी दे तब भी बुरा नहीं लगता। मैं आज भी एक टेम बोरे बासी (रात में पका चावल पानी में डालकर) और टमामर की चटनी खाती हूं। उनसे हमने हर पहलूओं पर बेवाक बात की है।
0 पंडवानी की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में भी गाये जाएंगे। महाभारत के प्रसंगों और कथानकों पर विकसित यह लोकप्रिय विधा है। छत्तीसगढ़ी बोली इसका लालित्य है।
0 मुख्यरूप से यह कहाँ कहाँ गई जाती है ?
00 कहीं भी कोई बंदिश नहीं है। हर जगह गई जाती है।
0 तो क्या कारण है कि लोकगीत लुप्त होती जा रही है ,युवा पीढ़ी का इस क्षेत्र में कितना भविष्य है?
00 लोकगीतों को जीवित रखने के लिए अपनी परम्परा और संस्कृति से लगाव जरूरी है। साथ ही शास्त्रीय संगीत की तरह इस विधा में भी गुरु शिष्य परम्परा को बढ़ावा देना जरूरी है।यह जिम्मेदारी लोकगीत के साधकों की है।
0 आपने किससे सीखा और आपके कितने शिष्य है ?
00 मेरे गुरु मेरे नाना ब्रजभूषण जी शारदीय है जिससे मैंने सब कुछ सीखा है और इस समय मेरे 200 से ज्यादा शिष्य हैं,जो इस परम्परा को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं।
0 संगीत नाटक अकादमी जैसे संस्थान लोकगीतों के लिए क्या कर रहे हैं?
00 कुछ भी नहीं कर , क्यों ये तो वही जाने। सरकार कुछ कर रही है पर उसे कहा जा सकता।
0 फिल्मो गीतों ने लोकगीतों को कितना नुकसान पंहुचाया है?
00 देखिये फिल्मो के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है और मैं फिल्मो से मतलब भी नहीं रखता। दोनों अलग अलग चीजें है।
0 कोई सुखद अनुभव बताईये ?
00 पदमश्री मिलने का दिन आज भी मोर सुरता में है, वेंकटरमनजी ने दिया था। उसी दिन इंदिरा गांधी से भी मिली थी बहुत अच्छी लगी, उन्होंने मेरी पंडवानी सुनी थी। मुझे बुलाकर बोली- छत्तीसगढ़ की हो ना। मैने हाँ कहा तो इंदिरा बोली महाभारत करती हो तो मैं बोली पंडवानी सुनाती हूं महाभारत नहीं कराती, सुनकर इंदिराजी खुश हुई और मेरी पीठ थपथपाई थीं।
0 सरकार से लोकगीतों को आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार लोकगीतों को मदद करे। बहुत सी लोकगीत है अनेक विधाएँ है सबकी रक्षा सरकार ही कर सकती है।
0 कोई ऐसा अवसर आया हो ,जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
00 पद्मविभूषण लेकर, वह बहुत ही जीवन का असीम क्षण है। और मुझे विदेशों में जब अपने ही गीतों से मेरा स्वागत करते हैं।
0 आप कई देशों में कार्यक्रम पेश करने के लिए जा चुकी है। इन देशो में समानता क्या है।
00 जब प्रोग्राम के लिए हम विदेश जाते हैं तो सब्जी चाँवल के लिए तरस जाते है। विदेशों में उबले हुए आलू से काम चलाना पड़ता है।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00 कभी नहीं। मैं कभी निराश नहीं होती।
0 पाठकों के लिए कोई सन्देश?
00 बेटियां अमूल्य धरोहर है उसकी रक्षा करे पढ़ा लिखाकर आगे बढ़ाये। बेटियों को कमजोर समझना मानव समाज की सबसे बड़ी भूल है ,उसे कमजोर मत समझो क्योकि बेटियां ही अंत तक माँ -बाप की सेवा करती है। मै भी तो एक बेटी ही हूँ जिस पर दुनिया नाज करती है।
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