मदिरापान करती काल भैरव की प्रतिमा
क्या मूर्ति मदिरापान कर सकती...आप कहेंगे नहीं, कतई नहीं। भला मूर्ति
कैसे मदिरापान कर सकती है। मूर्ति तो बेजान होती है। बेजान चीजों को
भूख-प्यास का अहसास नहीं होता, इसलिए वह कुछ खाती-पीती भी नहीं है। लेकिन
उज्जैन के काल भैरव के मंदिर में ऐसा नहीं होता। वाम मार्गी संप्रदाय के इस
मंदिर में काल भैरव की मूर्ति को न सिर्फ मदिरा चढ़ाई जाती है, बल्कि बाबा
भी मदिरापान करते हैं ।
आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हमने इसी तथ्य को खंगालने की कोशिश
की। अपनी इस कोशिश के लिए हमने सबसे पहले रुख किया उज्जैन का...महाकाल के
इस नगर को मंदिरों का नगर कहा जाता है। लेकिन हमारी मंजिल थी, एक विशेष
मंदिर- काल भैरव मंदिर। यह मंदिर महाकाल से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर
है। कुछ ही समय बाद हम मंदिर के मुख्य द्वार पर थे।
मंदिर के बाहर सजी दुकानों पर हमें फूल, प्रसाद, श्रीफल के साथ-साथ वाइन
की छोटी-छोटी बोतलें भी सजी नजर आईं। इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, जान
पाते, उससे पहले ही हमारे सामने कुछ श्रद्धालुओं ने प्रसाद के साथ-साथ
मदिरा की बोतलें भी खरीदीं। जब हमने दुकानदार रवि वर्मा से इस बारे में
बातचीत की तो उन्होंने बताया कि बाबा के दर पर आने वाला हर भक्त उनको मदिरा
(देशी मदिरा) जरूर चढ़ाता है। बाबा के मुंह से मदिरा का कटोरा लगाने के
बाद मदिरा धीरे-धीरे गायब हो जाती है।
रवि से जानकारी लेने के बाद हम मंदिर के अंदर गए...
मंदिर
में भक्तों का तांता लगा हुआ था। हर भक्त के हाथ में प्रसाद की टोकरी थी।
इस टोकरी में फूल और श्रीफल के साथ-साथ मदिरा की एक छोटी बोतल भी जरूर नजर आ
जाती थी...हम मंदिर के गर्भ गृह में एक तरफ खड़े हो गए और देखने लगे कि
बाबा कैसे मदिरा का पान करते हैं।अंदर का दृश्य बेहद निराला था। भैरव बाबा की प्रतिमा के पास बैठे पुजारी
गोपाल महाराज कुछ मंत्र बुदबुदा रहे थे। इतने में ही एक भक्त ने प्रसाद और
मदिरा का चढ़ावा चढ़ाया। पंडित जी ने मदिरा को एक छोटी प्लेट में निकाला और
बाबा की मूरत के मुंह से लगा दिया... और यह क्या...भोग लगाने के बाद प्लेट
में मदिरा की एक बूंद भी नहीं बची।
जरूर देखें मदिरापान करते हुए बाबा की चमत्कारिक प्रतिमा को...
यह सिलसिला लगातार चलता रहा...एक-के-बाद-एक भक्त आते
गए और बाबा की मूर्ति मदिरापान करती रही। सब कुछ हमारी आंखों के सामने घट
रहा था। हम काफी देर तक यहीं खड़े रहे। मदिरा पिलाने का सिलसिला भी लगातार
जारी था। पंडित जी भैरव बाबा को लगातार प्रसाद चढ़ाते जा रहे थे...लेकिन
कहीं भी मदिरा की एक बूंद भी नजर नहीं आ रही थी।हमने राजेश चतुर्वेदी नामक एक भक्त से इस बाबत चर्चा की। राजेश ने बताया
'वे उज्जैन के रहने वाले हैं और हर रविवार काल भैरव को मदिरा का भोग लगाने
जरूर आते हैं। राजेश बताते हैं, पहले-पहल वे भी यह जानने की कोशिश करते थे
कि मदिरा आखिर जाती कहां हैं, लेकिन अब उन्हें पक्का विश्वास है कि मदिरा
का भोग भगवान काल भैरव ही लगाते हैं।'
तांत्रिक मंदिर :
काल भैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार
साल पुराना माना जाता है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है। वाम मार्ग
के मंदिरों में मांस, मदिरा, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।
प्राचीन समय में यहां सिर्फ तांत्रिकों को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहां
तांत्रिक क्रियाएं करते थे और कुछ विशेष अवसरों पर काल भैरव को मदिरा का
भोग भी चढ़ाया जाता था। कालान्तर में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया
गया, लेकिन बाबा ने भोग स्वीकारना यूं ही जारी रखा।
अब यहां जितने भी दर्शनार्थी आते हैं, बाबा को भोग जरूर लगाते हैं।
मंदिर के पुजारी गोपाल महाराज बताते हैं कि यहां विशिष्ट मंत्रों के द्वारा
बाबा को अभिमंत्रित कर उन्हें मदिरा का पान कराया जाता है, जिसे वे बहुत
खुशी के साथ स्वीकार भी करते हैं और अपने भक्तों की मुराद पूरी करते हैं।
काल भैरव के मदिरापान के पीछे क्या राज है, इसे लेकर
लंबी-चौड़ी बहस हो चुकी है। पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा करने वाले राजुल
महाराज बताते हैं, उनके दादा के जमाने में एक अंग्रेज अधिकारी ने मंदिर की
खासी जांच करवाई थी। लेकिन कुछ भी उसके हाथ नहीं लगा...उसने प्रतिमा के
आसपास की जगह की खुदाई भी करवाई, लेकिन नतीजा सिफर। उसके बाद वे भी काल
भैरव के भक्त बन गए। उनके बाद से ही यहां देसी मदिरा को वाइन उच्चारित किया
जाने लगा, जो आज तक जारी है।मंदिर में काफी देर तक बैठने और आसपास की जगहों का मुआयना करने के बाद
और तमाम जानकार लोगों से बातें करने के बाद हमें भी पूरा यकीन हो गया कि
जहां आस्था होती है, वहां शक की कोई गुंजाइश नहीं होती।
कब से शुरू हुआ सिलसिलाकाल भैरव को मदिरा पिलाने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। यह कब, कैसे और क्यों शुरू हुआ, यह कोई नहीं जानता। यहां आने वाले लोगों और पंडितों का कहना है कि वे बचपन से भैरव बाबा को भोग लगाते आ रहे हैं, जिसे वे खुशी-खुशी ग्रहण भी करते हैं। उनके बाप-दादा भी उन्हें यही बाताते हैं कि यह एक तांत्रिक मंदिर था, जहां बलि चढ़ाने के बाद बलि के मांस के साथ-साथ भैरव बाबा को मदिरा भी चढ़ाई जाती थी। अब बलि तो बंद हो गई है, लेकिन मदिरा चढ़ाने का सिलसिला वैसे ही जारी है। इस मंदिर की महत्ता को प्रशासन की भी मंजूरी मिली हुई है। खास अवसरों पर प्रशासन की ओर से भी बाबा को मदिरा चढ़ाई जाती है।
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