महाभारत में द्रौपदी एक अहम् किरदार है। द्रौपदी के जीवन और चरित्र को समझना बहुत ही कठिन है। उन्हें तो सिर्फ कृष्ण ही समझ सकते थे। द्रौपदी श्रीकृष्ण की मित्र थी। मित्र ही मित्र को समझ सकता है। दरअसल, ऐसा माना जाता है कि द्रौपदी ने 4 ऐसी गलतियां की थी जिसके चलते महाभारत का युद्ध हुआ था।पहली गलती खुद
के स्वयंवर में कर्ण को सूत पुत्र कहकर उसका अपमान करना, दूसरी गलती दुर्योधन को इंद्रप्रस्थ में 'अंधे का पुत्र भी अंधा' कहकर अपमानित करना, तीसरी गलती जयद्रथ के सिर के बाल मुंडवाकर उसको अपमानित करना और चौथी गलती चिरहरण के बाद पांडवों को युद्ध के लिए प्रेरित करना। हालांकि उपरोक्त सभी गलतियों में से तीसरी और चौथी गलती को गलती नहीं मान सकते हैं, क्योंकि यह परिस्थितिवश किया गया कार्य था। मतलब यह कि द्रौपदी ने कर्ण और दुर्योधन को अपमानित किया था जिसके बदले में जयद्रथ और दुर्योधन ने द्रौपदी को अपमानित किया। लेकिन द्रौपदी की एक सबसे बड़ी गलती यह थी कि उसने पांचों पांडवों के साथ विवाह करने को मंजूरी दे दी। दरअस्ल, अर्जुन ने स्वयंवर की प्रतियोगिता को जीत लिया था लेकिन किन्हीं भी परिस्थितियों में द्रौपदी यदि पांचों पांडवों की पत्नी बनना स्वीकार नहीं करती तो आज इतिहास कुछ ओर होता। द्रौपदी कुंति के कहने या स्वयंवर के बाद युधिष्ठिर और वेद व्यासजी के कहने पर पांचों से विवाह करना स्वीकार किया था।यदि द्रौपदी ऐसा नहीं करती तो वह सिर्फ अर्जुन की ही पत्नी होती। यह भी कि यदि वह पांचों से ही विवाह नहीं करती तो फिर संभवत: वह कर्ण की पत्नी होती। तब महाभारत कुछ और होती।एक कथा के अनुसार द्रौपदी ने सभी पांडवों और श्रीकृष्ण के सामने यह स्वीकारा भी था कि 'मैं आप पांचों से प्यार करती हूं लेकिन मैं किसी 6वें पुरुष से भी प्यार करती हूं। मैं कर्ण से प्यार करती हूं। जाति की वजह से उससे विवाह नहीं करने का मुझे अब पछतावा होता है। अगर मैंने कर्ण से विवाह किया होता तो शायद मुझे इतने दुख नहीं झेलने पड़ते। तब शायद मुझे इस तरह के कड़वे अनुभवों से होकर नहीं गुजरना पड़ता। मैं शिक्षित होने के बावजूद बिना सोच-विचारकर किए गए अपने कार्यों के लिए पछता रही हूं। उल्लेखनीय है कि इसी कथा में युधिष्ठिर ने पांडवों के साथ हुए सभी बुरे घटनाक्रमों के लिए द्रौपदी को जिम्मेदार ठहराया था।
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