रविवार, 2 मई 2010

सम्मान


 (अरुण कुमार बंछोर)
राजीव और संजीव दोनों मित्र थे। एक दिन वे कहीं जा रहे थे कि रास्ते में उनके पुराने विद्यालय के गुरू जी मिल गए। राजीव ने उनका अभिवादन करते हुए चरणस्पर्श किए लेकिन संजीव खडा मुंह देखता रहा। इधर इस पर राजीव को तो आश्चर्य हो ही रहा था, साथ ही उनके गुरू जी को भी। कुछ दूर चलने पर राजीव ने अपने मित्र से गुरू जी का सम्मान न करने का कारण पूछा। इस पर संजीव ने कहा कि, भले ही वे हमारे गुरू रहे हैं लेकिन मैं ऐसे गुरुओं का सम्मान नहीं करता जो ट्यूशन के नाम पर छात्रों का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण करते हैं और जिनमें भेदभाव करने की आदत हो। कुछ दूरी पर खडे गुरू जी ने भी यह सुन लिया था। यह सुनकर राजीव तो सकते में रह ही गया साथ ही गुरू जी का भी सिर अपने आप ही झुक गया था।

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