फौजी भाषा
आपने अक्सर फिल्मों में सुना होगा, मुझे कवर फायर दो या एक सैन्य टुकड़ी को रैकी पर भेजो। क्या होता है इसका मतलब, चलिए समझें
कवर फायर-युद्ध में या फिर आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियान के दौरान आगे बढ़ रहे जवानों की सुरक्षा के लिए कवर फायर किया जाता है। ये फायर इस तरह से किया जाता है जिससे दुश्मनों को चकमा दिया जा सके और जवान आसानी से आगे बढ़ सकें। कवर फायर में सबसे अहम है कि आगे बढ़ने वाले जवानों की रक्षा की जा सके।
दुश्मन उन्हें अपना निशाना न बना सकें। आगे बढ़ते समय, आगे चलने वाला जवान या अधिकारी गोली नहीं चलाता बल्कि पीछे से गोली चलाई जाती है। जब वह अपने स्थान पर पहुंच जाता है तो पीछे चल रहे जवान आगे बढ़ते हैं। अब कई तरह के ऐसे हथियार आ गए हैं जिससे दुश्मन का पता लगाया जा सकता है और जवानों की जान को खतरा भी नहीं होता।
एम्बुश- घात लगाकर या छापा मारकर दुश्मन पर किए जाने वाले हमले को एम्बुश कहा जाता है। सेना या सुरक्षाबलों के जवानों को जब अपने खुफिया विभाग से पुख्ता जानकारी मिलती है कि निर्धारित क्षेत्र से दुश्मन गुज़रने वाला है, सेना एवं अर्धसैनिक बलों के जवान सतर्क होकर उस क्षेत्र को घेर लेते हैं। जैसे ही दुश्मन उस क्षेत्र से गुज़रता है तो जवान उस पर हमला बोल देते हैं। इस हमले को ही एम्बुश कहा जाता है।
सुरक्षा बल ही एम्बुश नहीं लगाते बल्कि दुश्मन भी लगा सकता है। हाल ही में दंतेवाड़ा मंे शहीद हुए 76 सीआरपीएफ जवानों पर किया गया हमला इसकी ताज़ा मिसाल है। बारूदी सुरंग या आईईडी (इम्प्रोवाइ•ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) को लगाकर भी दुश्मन पर हमला किया जाता है। यह भी एम्बुश का एक हिस्सा है। अधिकतर पहाड़ी एवं जंगली इलाकों में घात लगा कर हमले किए जाते हैं।
रैकी- सेना या अर्धसैनिक बल किसी क्षेत्र विशेष मंे दुश्मनों के खिलाफ अपना अभियान शुरू करने से पहले वहां का गहन निरीक्षण करते हैं। अगर वह क्षेत्र जंगलों से घिरा है तो पता लगाया जाता है कि क्षेत्र में नदी, नाले, तालाब इत्यादि कहां-कहां हैं। जंगल कितना घना है और उसमें किस तरह के पेड़ पाए जाते हैं आदि। जंगली रास्ते को पार करने के लिए किस तरह के उपकरणों एवं संसाधनों की ज़रूरत होगी, किस तरह के जंगली जानवरों से जूझना पड़ सकता है, इन सब बातों की भी जानकारी रखी जाती है। इसे ही रैकी करना कहते हैं।
इसी तरह अगर आबादी वाला क्षेत्र है तो इस क्षेत्र में कौन-कौन से मोहल्ले, रास्ते, स्कूल, खेल के मैदान, पानी की टंकियां, सरकारी कार्यालय, पुलिस थाने आदि हैं, देखा जाता है। यदि इस क्षेत्र विशेष का नक्शा मिल सके, तो क्षेत्र को जानने-समझने में और आसानी होती है। इंटरनेट भी कई बार इसमें अहम भूमिका निभाता है। अधिकांश मामलों में गाइड की मदद ली जाती है। इसके अलावा जब युद्ध की स्थिति हो, तब दुश्मन की गतिविधियों की जानकारी लेने जाने को भी रैकी कहा जाता है।
आपने अक्सर फिल्मों में सुना होगा, मुझे कवर फायर दो या एक सैन्य टुकड़ी को रैकी पर भेजो। क्या होता है इसका मतलब, चलिए समझें
कवर फायर-युद्ध में या फिर आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियान के दौरान आगे बढ़ रहे जवानों की सुरक्षा के लिए कवर फायर किया जाता है। ये फायर इस तरह से किया जाता है जिससे दुश्मनों को चकमा दिया जा सके और जवान आसानी से आगे बढ़ सकें। कवर फायर में सबसे अहम है कि आगे बढ़ने वाले जवानों की रक्षा की जा सके।
दुश्मन उन्हें अपना निशाना न बना सकें। आगे बढ़ते समय, आगे चलने वाला जवान या अधिकारी गोली नहीं चलाता बल्कि पीछे से गोली चलाई जाती है। जब वह अपने स्थान पर पहुंच जाता है तो पीछे चल रहे जवान आगे बढ़ते हैं। अब कई तरह के ऐसे हथियार आ गए हैं जिससे दुश्मन का पता लगाया जा सकता है और जवानों की जान को खतरा भी नहीं होता।
एम्बुश- घात लगाकर या छापा मारकर दुश्मन पर किए जाने वाले हमले को एम्बुश कहा जाता है। सेना या सुरक्षाबलों के जवानों को जब अपने खुफिया विभाग से पुख्ता जानकारी मिलती है कि निर्धारित क्षेत्र से दुश्मन गुज़रने वाला है, सेना एवं अर्धसैनिक बलों के जवान सतर्क होकर उस क्षेत्र को घेर लेते हैं। जैसे ही दुश्मन उस क्षेत्र से गुज़रता है तो जवान उस पर हमला बोल देते हैं। इस हमले को ही एम्बुश कहा जाता है।
सुरक्षा बल ही एम्बुश नहीं लगाते बल्कि दुश्मन भी लगा सकता है। हाल ही में दंतेवाड़ा मंे शहीद हुए 76 सीआरपीएफ जवानों पर किया गया हमला इसकी ताज़ा मिसाल है। बारूदी सुरंग या आईईडी (इम्प्रोवाइ•ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) को लगाकर भी दुश्मन पर हमला किया जाता है। यह भी एम्बुश का एक हिस्सा है। अधिकतर पहाड़ी एवं जंगली इलाकों में घात लगा कर हमले किए जाते हैं।
रैकी- सेना या अर्धसैनिक बल किसी क्षेत्र विशेष मंे दुश्मनों के खिलाफ अपना अभियान शुरू करने से पहले वहां का गहन निरीक्षण करते हैं। अगर वह क्षेत्र जंगलों से घिरा है तो पता लगाया जाता है कि क्षेत्र में नदी, नाले, तालाब इत्यादि कहां-कहां हैं। जंगल कितना घना है और उसमें किस तरह के पेड़ पाए जाते हैं आदि। जंगली रास्ते को पार करने के लिए किस तरह के उपकरणों एवं संसाधनों की ज़रूरत होगी, किस तरह के जंगली जानवरों से जूझना पड़ सकता है, इन सब बातों की भी जानकारी रखी जाती है। इसे ही रैकी करना कहते हैं।
इसी तरह अगर आबादी वाला क्षेत्र है तो इस क्षेत्र में कौन-कौन से मोहल्ले, रास्ते, स्कूल, खेल के मैदान, पानी की टंकियां, सरकारी कार्यालय, पुलिस थाने आदि हैं, देखा जाता है। यदि इस क्षेत्र विशेष का नक्शा मिल सके, तो क्षेत्र को जानने-समझने में और आसानी होती है। इंटरनेट भी कई बार इसमें अहम भूमिका निभाता है। अधिकांश मामलों में गाइड की मदद ली जाती है। इसके अलावा जब युद्ध की स्थिति हो, तब दुश्मन की गतिविधियों की जानकारी लेने जाने को भी रैकी कहा जाता है।
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