मंगलवार, 27 जुलाई 2010

सावन में खिलते हैं मन के फूल


प्रकृति में निहित अपार सौंदर्य को अनेक साहित्यकारों ने विविध रूपों में व्यक्त किया है। प्रकृति के कण-कण में जीवन है, जीवन देने की क्षमता है और जीवन-दर्शन भी है। प्रकृति में ही पोषित-पल्लवित हो रहे हम मानव इसे कितना सुन पाते हैं, समझ पाते हैं और महसूस कर पाते हैं? इसका उत्तर नकारात्मक ही होगा। जबकि प्रकृति अपने विविध रूपों के माध्यम से हमसे निरन्तर संचार करती है।

प्रकृति से जुड़ी कई छोटी-छोटी बातें और अनुभव ऐसे होते हैं जिन्हें हम कभी तो आपस में बाँटना चाहते हैं और कभी लगता है किसी को बताएँ तो क्यों बताएँ? कोई सुनेगा तो आखिर क्यों सुनेगा? लेकिन मानव मन बहुत उतावला होता है, भोला और उत्साही होता है। दिन भर न जाने कितनी ही अर्थहीन बातें परस्पर बाँटता रहता है किन्तु वे सारी निरर्थक दिखाई देने वाली बातें अत्यन्त सार्थकता लिए होती हैं।
सार्थक इसलिए कि इनमें हँसी छुपी होती है, मुस्कान निहित रहती है और एक ऐसी किलकती-चहकती खुशी दबी होती है, जिसे अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों का विशाल भंडार भी नन्हीं-सी गठरी के समान लगने लगता है। बस, अनुभूत किया जा सकता है। प्रकृति कभी-कभी अनजाने ही जीवन का मूलमंत्र सिखा जाती है। जरूरत होती है प्रकृति के इन अनमोल नजारों को समझने और महससूने के लिए संवेदनशील मन की!
एक दिन सावन की साँवली संध्या में मैं अपने आँगन में बैठी अपनी सफलता-असफलता का हिसाब लगा रही थी। बार-बार असफलता का पीड़ादायक प्रतिशत सफलता के अनुपात में अधिक आ रहा था। दिल डूबता जा रहा था, निराश और कुंठा का स्याह घेरा बढ़ता ही जा रहा था। मैं इस घेरे से बचने का असफल प्रयास कर रही थी।

बहुत हाथ-पैर मारने के बाद भी हताशा के भँवर में फँसती चली जा रही थी। तभी नजदीक रखे गमले में खिले ताजातरीन सुकुमार गुलाब पर बस नजर भर पड़ी और यकायक जैसे विचारों की श्रृंखला परिवर्तित हो गई। चेहरे पर खिली एक सहज मुस्कान ने एक सकारात्मक उजाले से मुझे भर दिया। इस रोशनी ने कब और कैसे निराशा के अँधेरे को दूर कर दिया, पता ही नहीं चला।
सावन का मौसम सचमुच सलोना होता है। एक सुबह और किसी वजह से मैं रूआँसी हो रही थी। हारी हुई आकाश को ताक रही थी तभी सावन की रिमझिम बरसती सलोनी बूँद ने चेहरे पर गिरकर मुझे मुस्काने के लिए बाध्य कर दिया, इस बूँद ने जो पुलक मेरे अंतर में अंकुरित की, उसे शब्द देने के लिए संभवतः मैं हमेशा असमर्थ रहूँगी। कितनी सार्थक थी बारिश की वह पहली बूँद, जिसने चेहरे पर गिरते ही न सिर्फ मुझे गदगद् कर दिया बल्कि मैं भूल गई उस अवसाद को, उस पीड़ा को, जो कुछ देर पहले मुझे हैरान-परेशान कर रही थी।
प्रकृति कितना कुछ देती है हमें ! भोजन, वस्त्र और आवास ही नहीं बल्कि अनुभूतियों का सुकोमल संचार भी। प्रकृति की यह कृपालु दृष्टि हम पर न होती तो आज प्रकृति पर रचित साहित्य का समृद्ध भंडार हमें उपलब्ध न होता। न जाने कितने संवेदनशील कवियों के गहरे हृदय को इस प्रकृति ने स्पंदित किया है।
प्रकृति द्वारा प्रसारित खुशियों को अँगुलियों पर गिनाया जाना मुश्किल है। कभी मुट्ठी भर खनकती बयार ने दिल में पायलों को रूनझुना दिया तो कभी चुटकी भर कुनकुनी धूप ने उष्म मानवीय स्पर्श का अनुभव करा दिया। कभी बैखौफ-बेधड़क बरसते सावन ने मन के आँगन में स्नेहिल अनुभूतियों को तरंगित कर दिया तो कभी रिमझिम झरती मासूम फुहारों ने आत्मा के सुप्त तारों को झनझना दिया।
कभी साँवले, स्लेटी बादलों ने आसमान की परतों से निकलकर धूप के कालीन की नुकीली छोरों को मोड़ दिया तो कभी नन्हीं-सी कली के चटकने से अंतर्मन का सन्नाटा चिंहुक उठा। कभी गुड़हल के सूर्ख फूलों ने आँखों को चमक दी तो कभी नाजुक, नर्म हरी दूब ने आत्मा को ठंडक दी। कभी किसी छुटकी-सी चिरैया की चहचहाहट से कानों में मीठी घंटियाँ बज उठी तो कभी मेहँदी की शीतल खुशबू ने सपनों का सुहाना संसार रच दिया।

कृति में न सिर्फ ममत्व है बल्कि स्नेह, उत्साह, उदारता और आकर्षण भी शामिल है। प्रकृति की ये सौगातें, खुशियों के साथ-साथ कर्तव्य पथ पर बढ़ने की शिक्षा भी देती है। आकाश के गहरे नीले आँगन में झिलमिल करते सितारे, लगता है अनुशासित रहकर बस अविचल अपना काम करते रहने की शिक्षा दे रहे हैं।
भीगी चाँदनी में ओस की उस नन्हीं सी मधुरिम बूँद को देखा है, जिसे सिर्फ देखा जा सकता है, छुआ नहीं जा सकता? आपको नहीं लगता जैसे प्रकृति इस दृश्य के माध्यम से हमसे मुखातिब है और कह रही है कि कुँवारी कन्या ऐसी ही होती है जिसे बस सम्मान और स्नेह से देखा जाना चाहिए?

बहरहाल, सावन का हरियाला मौसम भारत में त्योहारों के आगमन का संकेत होता है। प्यार, रिश्ते, श्रृंगार और खुशियों का यह मौसम प्रकृति के करीब लाता है। प्रकृति में जहाँ उदित होते सूर्य में उमंग है, वहीं दमकते चन्द्रमा में विनम्रता और शीतलता है। कोंपल अंकुरण में बच्चों-सी मासूमियत है और उसके स्फुरण में जीवन दर्शन है।
नीड़ों में लौटते सांध्य पाखियों में आशियाने का महत्व है तो टिमटिमाते सितारों में एकता का संदेश है। पवित्र नदियों के कलकल प्रवाह से निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है तो किसी आकर्षक फूल से सदैव मुस्कराते रहने की शिक्षा मिलती है।
इस मौसम में हम महसूस कर सकते हैं कि कितने मीठे, सजीले, सुवासित और सुरीले भाव प्रकृति के आँचल में दमक रहे हैं। सावन का यह मौसम प्रकृति के माध्यम से उत्साह,खुशियाँ, अनुभूतियाँ, सीख और अनुशासन के फूल देने के लिए तत्पर हैं। बस, चाहिए एक खूबसूरत मन इन फूलों को समेटने के लिए।

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