बीमारियाँ बाँट रहे बच्चों के खिलौने
खिलौनों में प्रयुक्त सीसा और मर्करी बच्चों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। छोटे बच्चे इन्हें मुँह से लगाते हैं, तो उनके लीवर पर इसका असर पड़ता है। लंबे समय तक ऐसे खिलौने के इस्तेमाल से बच्चों को लीवर सिरोसीस तक हो सकता है। इसके अलावा इन खिलौनों से बच्चों को एलर्जी की भी शिकायत होती है।
प्लास्टिक व केमिकल रंगों से मिर्गी और हाईपर टेंशन का खतरा
लकड़ी से बनने वाले खिलौनों में पहले वेजिटेबल रंगों का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन वेजिटेबल रंग बनाने के लंबे और महंगी प्रक्रिया के कारण अब उन पर केमिकल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। लकड़ी के साथ ही प्लास्टिक के खिलौनों पर भी इसी का इस्तेमाल किया जाता है।
ऐसे केमिकल रंगों में लेड की संख्या अधिक होती है। आदत अनुसार बच्चे खिलौनों को मुह में लेते रहते हैं, जिससे लेड उनके शरीर में प्रवेश करता है और क्यूमिलेटिव टॉकसिटी के ब़ढ़ने से बच्चा अनिमीया, मिर्गी, हाईपर टेंशन, एटेंशन डिसऑर्डर का शिकार हो सकता है।
चाइनीज रेडियोएक्टिव खिलौने कैंसर का कारण
विश्व के सभी देशों में चाइना से बनकर आने वाले खिलौनों को बैन कर दिया गया है। लेकिन भारत इसका एक ब़ड़ा बाजार बना हुआ है। चाइना से बनकर आने वाले खिलौने स्क्रैप से बने होते हैं। चाबी वाले खिलौनों में तो रेडियाएक्टिव इलीमेंट का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कैंसर जैसे रोगों की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
ये खिलौने शरीर के सेल में बदलाव पैदा करते हैं, जिससे कई बार इनके असर तुरंत नहीं होकर जेनेटिक भी होते हैं। इंफैक्शन अधिक होना और वजन न बढ़ना भी इन्हीं खिलौनों के बुरे प्रभाव हैं। इन खिलौनों का प्रभाव आगे चलकर दूसरे बच्चों पर भी हो सकता है।बीमारियाँ बाँट रहे बच्चों के खिलौने
खिलौनों में प्रयुक्त सीसा और मर्करी बच्चों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। छोटे बच्चे इन्हें मुँह से लगाते हैं, तो उनके लीवर पर इसका असर पड़ता है। लंबे समय तक ऐसे खिलौने के इस्तेमाल से बच्चों को लीवर सिरोसीस तक हो सकता है। इसके अलावा इन खिलौनों से बच्चों को एलर्जी की भी शिकायत होती है।
प्लास्टिक व केमिकल रंगों से मिर्गी और हाईपर टेंशन का खतरा
लकड़ी से बनने वाले खिलौनों में पहले वेजिटेबल रंगों का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन वेजिटेबल रंग बनाने के लंबे और महंगी प्रक्रिया के कारण अब उन पर केमिकल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। लकड़ी के साथ ही प्लास्टिक के खिलौनों पर भी इसी का इस्तेमाल किया जाता है।
ऐसे केमिकल रंगों में लेड की संख्या अधिक होती है। आदत अनुसार बच्चे खिलौनों को मुह में लेते रहते हैं, जिससे लेड उनके शरीर में प्रवेश करता है और क्यूमिलेटिव टॉकसिटी के ब़ढ़ने से बच्चा अनिमीया, मिर्गी, हाईपर टेंशन, एटेंशन डिसऑर्डर का शिकार हो सकता है।
चाइनीज रेडियोएक्टिव खिलौने कैंसर का कारण
विश्व के सभी देशों में चाइना से बनकर आने वाले खिलौनों को बैन कर दिया गया है। लेकिन भारत इसका एक ब़ड़ा बाजार बना हुआ है। चाइना से बनकर आने वाले खिलौने स्क्रैप से बने होते हैं। चाबी वाले खिलौनों में तो रेडियाएक्टिव इलीमेंट का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कैंसर जैसे रोगों की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
ये खिलौने शरीर के सेल में बदलाव पैदा करते हैं, जिससे कई बार इनके असर तुरंत नहीं होकर जेनेटिक भी होते हैं। इंफैक्शन अधिक होना और वजन न बढ़ना भी इन्हीं खिलौनों के बुरे प्रभाव हैं। इन खिलौनों का प्रभाव आगे चलकर दूसरे बच्चों पर भी हो सकता है।
खिलौनों में प्रयुक्त सीसा और मर्करी बच्चों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। छोटे बच्चे इन्हें मुँह से लगाते हैं, तो उनके लीवर पर इसका असर पड़ता है। लंबे समय तक ऐसे खिलौने के इस्तेमाल से बच्चों को लीवर सिरोसीस तक हो सकता है। इसके अलावा इन खिलौनों से बच्चों को एलर्जी की भी शिकायत होती है।
प्लास्टिक व केमिकल रंगों से मिर्गी और हाईपर टेंशन का खतरा
लकड़ी से बनने वाले खिलौनों में पहले वेजिटेबल रंगों का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन वेजिटेबल रंग बनाने के लंबे और महंगी प्रक्रिया के कारण अब उन पर केमिकल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। लकड़ी के साथ ही प्लास्टिक के खिलौनों पर भी इसी का इस्तेमाल किया जाता है।
ऐसे केमिकल रंगों में लेड की संख्या अधिक होती है। आदत अनुसार बच्चे खिलौनों को मुह में लेते रहते हैं, जिससे लेड उनके शरीर में प्रवेश करता है और क्यूमिलेटिव टॉकसिटी के ब़ढ़ने से बच्चा अनिमीया, मिर्गी, हाईपर टेंशन, एटेंशन डिसऑर्डर का शिकार हो सकता है।
चाइनीज रेडियोएक्टिव खिलौने कैंसर का कारण
विश्व के सभी देशों में चाइना से बनकर आने वाले खिलौनों को बैन कर दिया गया है। लेकिन भारत इसका एक ब़ड़ा बाजार बना हुआ है। चाइना से बनकर आने वाले खिलौने स्क्रैप से बने होते हैं। चाबी वाले खिलौनों में तो रेडियाएक्टिव इलीमेंट का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कैंसर जैसे रोगों की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
ये खिलौने शरीर के सेल में बदलाव पैदा करते हैं, जिससे कई बार इनके असर तुरंत नहीं होकर जेनेटिक भी होते हैं। इंफैक्शन अधिक होना और वजन न बढ़ना भी इन्हीं खिलौनों के बुरे प्रभाव हैं। इन खिलौनों का प्रभाव आगे चलकर दूसरे बच्चों पर भी हो सकता है।बीमारियाँ बाँट रहे बच्चों के खिलौने
खिलौनों में प्रयुक्त सीसा और मर्करी बच्चों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। छोटे बच्चे इन्हें मुँह से लगाते हैं, तो उनके लीवर पर इसका असर पड़ता है। लंबे समय तक ऐसे खिलौने के इस्तेमाल से बच्चों को लीवर सिरोसीस तक हो सकता है। इसके अलावा इन खिलौनों से बच्चों को एलर्जी की भी शिकायत होती है।
प्लास्टिक व केमिकल रंगों से मिर्गी और हाईपर टेंशन का खतरा
लकड़ी से बनने वाले खिलौनों में पहले वेजिटेबल रंगों का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन वेजिटेबल रंग बनाने के लंबे और महंगी प्रक्रिया के कारण अब उन पर केमिकल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। लकड़ी के साथ ही प्लास्टिक के खिलौनों पर भी इसी का इस्तेमाल किया जाता है।
ऐसे केमिकल रंगों में लेड की संख्या अधिक होती है। आदत अनुसार बच्चे खिलौनों को मुह में लेते रहते हैं, जिससे लेड उनके शरीर में प्रवेश करता है और क्यूमिलेटिव टॉकसिटी के ब़ढ़ने से बच्चा अनिमीया, मिर्गी, हाईपर टेंशन, एटेंशन डिसऑर्डर का शिकार हो सकता है।
चाइनीज रेडियोएक्टिव खिलौने कैंसर का कारण
विश्व के सभी देशों में चाइना से बनकर आने वाले खिलौनों को बैन कर दिया गया है। लेकिन भारत इसका एक ब़ड़ा बाजार बना हुआ है। चाइना से बनकर आने वाले खिलौने स्क्रैप से बने होते हैं। चाबी वाले खिलौनों में तो रेडियाएक्टिव इलीमेंट का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कैंसर जैसे रोगों की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
ये खिलौने शरीर के सेल में बदलाव पैदा करते हैं, जिससे कई बार इनके असर तुरंत नहीं होकर जेनेटिक भी होते हैं। इंफैक्शन अधिक होना और वजन न बढ़ना भी इन्हीं खिलौनों के बुरे प्रभाव हैं। इन खिलौनों का प्रभाव आगे चलकर दूसरे बच्चों पर भी हो सकता है।
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