एक राजा अपने महल के ऊपर मंत्री के साथ बैठा था। महल के नीचे एक मजदूर गरीब पति-पत्नी रहते थे। खूब हँसते तथा प्रसन्न थे।
राजा ने मंत्री से कहा कि हमारे पास अनंत संपदा है, सभी साधन हैं, परंतु जैसे यह जोड़ा खिलखिलाकर हँसता है हमें कभी ऐसी हँसी नसीब नहीं हुई। क्या कारण है? मंत्री ने कहा- महाराज केवल 99 रुपए दीजिए। मैं कारण बता दूँगा। कल से ही देख लीजिए। राजा ने 99 रुपए मंत्री को दे दिए। मंत्री ने उन रुपयों की थैली बनाकर उसे कुटिया पर फेंक दिया।
जब दोनों पति-पत्नी नौकरी करके घर लौटे तो देखा एक छोटी-सी पोटली कुटिया के ऊपर पड़ी है। उन्होंने उसे उठाया और देखा तो रुपए भरे थे। दोनों ने कहा कि लोग ठीक कहते हैं ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है। दोनों रात भर बारी-बारी से गिनते रहे परंतु निकलते 99 रुपए ही थे। वे हैरान थे कि 100 रुपए होने चाहिए थे।
सोचा, चलो जल्दी एक रुपया इसमें मिलाना है। बचत के लिए उन्होंने एक वक्त का खाना बंद कर दिया। अब वे दिन-रात यही सोचते कि किस तरह उनके पैसों में बढ़ोतरी हो जाए। यह सोच-सोचकर उन्हें न तो नींद आती थी और न ही दिन में चैन मिलता था। वे हमेशा बेचैन ही रहने लगे थे।
एक दिन मंत्री ने राजा से कहा कि अब देखिए महाराज नीचे क्या हो रहा है। राजा ने देखा कि दोनों आँगन में सिर पकड़कर सोच में पड़े हैं। हँसी-खुशी खत्म है। राजा ने पूछा कि इनको क्या हो गया है।
मंत्री ने कहा- यह 99 का चक्कर है। ये एक रुपया बनाने की सोच में पड़े हैं। आप तो करोड़ों बनाने के चक्कर में हैं, आपको हँसी कैसे आएगी। तब जाकर राजा को समझ आया कि 99 का फेर बहुत बुरा होता है। जो इससे बच गया खुशी भी उसके पास बची रहती है।
वाकई, ९९ का फेर तो बुरा होता है!!
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