रावण से युद्ध करने के लिए श्रीराम और उनकी वानर सेना समुद्र तट तक पहुंच गई थी। जहां श्रीराम के समक्ष समुद्र को पार करने की समस्या खड़ी हो गई। तब श्रीराम ने समुद्र से मार्ग लेने की अभिलाषा से कई पूजा-अनुष्ठान किए। परंतु समुद्र घमंड और अहंकार के मद में चूर था। बहुत सी पूजा आदि करने के बाद भी समुद्र द्वारा श्रीराम की सेना को रास्ता नहीं दिया गया। इससे श्रीराम अति क्रोधित हो गए और उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष पर बाण चढ़ा लिया। श्रीराम का यह स्वरूप देखकर समुद्र के अहंकार का नाश हो गया और समुद्र में रहने वाले जीवों के प्राणों पर आए संकट से कांप उठा। तब समुद्र मनुष्य वेश में आकर श्रीराम से क्षमा याचना करने लगा। भक्तवत्सल भगवान श्रीराम ने समुद्र को क्षमा करते हुए लंका तक पहुंचने के लिए मार्ग छोडऩे को कहा। तब समुद्र ने श्रीराम से कहा कि आपकी सेना में नल-नील दो भाई देव शिल्प विश्वकर्माजी का ही रूप है। साथ ही उन्हें ऋषियों का श्राप भी है कि वे जो वस्तु पानी में फेंकेंगे वह डूबेगी नहीं। अत: प्रभु आप मुझ पर नल-नील द्वारा पुल बंधवा दें और लंका तक पहुंच जाएं।
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