दूर ही सही पर अपने हैं
‘रिश्ते बनाना ऐसा है जैसे मिट्टी पर मिट्टी से मिट्टी लिखना,पर रिश्ते निभाना जैसे पानी पर पानी से पानी लिखना।’
दूर की रिश्तेदारी के मामले में भी कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है। हालांकि जो दिल की सीढ़ियां चढ़ गया, उसके लिए दरवाज़े खुले हैं। एक कोशिश तो कीजिए..!
ज़रा याद कीजिए कि आपको अपनी दूर की मौसी से मिले हुए कितने साल हो गए? खुद को टटोलकर देखिए कि दूर के रिश्तेदारों से दूर होकर क्या आप किसी तरह का भावनात्मक खालीपन महसूस करती हैं? या आपको अपनों की कमी खलती है? आप ईमानदारी से टटोलेंगी, तब अहसास होगा कि कितने अपनों को आपने वक्त के साथ भुला दिया।
कारण चाहे कोई भी हों, यह मानना होगा कि हम अपनों से खुद दूर हुए हैं। अब हम किसी का परिचय यह कहकर नहीं कराते है कि ये मेरी बहन का बेटा है, यह रिश्ते में हमारे मामा लगते हैं और वह हमारे दूर के रिश्तेदार हैं। हालांकि इस जैसी रिश्तेदारी से हर परिवार जुड़ा था, जुड़ा है।
रिश्तेदारों से दूर रहने के कई कारण हैं। इन कारणों को खोजने की कोशिश करेंगे तो जुड़ने के तरीके भी सामने खुद-ब-खुद आ जाएंगे। वैसे भी हमारे भारतीय समाज का गठन पूरी दुनिया में अनूठा है। रिश्तेदारों के मामले में हम भारतीय बिल गेट्स या लक्ष्मी मित्तल जितने ही अमीर हैं। इन कारणों की भूल-भुलैया में कुछ रास्ते ऐसे भी मौजूद हैं, जिन्हें अपनाकर आप दूर की रिश्तेदारी को दूर रहते हुए भी सहेजकर रख सकती हैं। तो चलिए इन दूर के रिश्तेदारों के थोड़ा नज़दीक चलें..
दूरी के कारण कई..
रिश्तों में दूरियों के एक नहीं, कई कारण हैं। कामकाज का बदलता स्वरूप, भागदौड़ भरी ज़िंदगी, इससे उभरा तनाव किसी भी व्यक्ति को अपने परिवार के लिए समय निकालने से रोकता है। कुछ हिस्सा सोच का भी है, जो समय के साथ-साथ बदल गई है। हमने अपनी ज़रूरतों के मुताबिक रिश्तों की साज-सम्भाल शुरू कर दी है, जिसके आधार पर ‘समय पर जो काम आए, वही अपना है’ की मानसिकता दृढ़ हो चुकी है।
जो दूर हैं, हम उन रिश्तों को इसलिए नहीं टटोलते क्योंकि वे साथ नहीं है और ज़रूरत पर काम नहीं आते। दूरियों का एक कारण संवादहीनता भी हैं। हम अपनी नेटवर्किग साइट पर जुड़े दोस्तों को •यादा महत्व देते हैं, जबकि पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे रिश्तों के नेटवर्क को व्यस्तता की भेंट चढ़ा देते हैं, जो हमारी खुद की नींव को कमज़ोर करने जैसा है।
महत्व है इनका
जो दूर हैं, वे तो दूर के ही हैं, यह सोचना गलत है। किसी भी परिवार के लिए दूर की रिश्तेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी नज़दीक की। आखिर इनकी उपस्थिति से ही तो एक सम्पूर्ण परिवार की अवधारणा पूरी होती है।
इन्हें रिश्तेदारों से हमें भावनात्मक पोषण मिलता था और बच्चों को भी परिवार और परिजनों का महत्व समझ में आता था। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि समाज अब ‘हम दो हमारे दो’, ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ की अवधारणा को रिश्तेदारी में भी लागू करने लगा है। ऐसा नहीं होना चाहिए।
बच्चे नहीं समझेंगे!
रिश्तेदारी में हमारी लापरवाही का असर बच्चों पर पड़ रहा है। वे अब नहीं समझ सकते हैं कि उनकी बुआ की मौसी की बहन का बेटा उनका भाई कैसे हुआ? वे नहीं जानते कि उनके कुटुम्ब की बेल कहां तक फैली है?
यही कारण है कि वे भी किसी रिश्तेदार से अचानक मिलने पर आश्चर्यचकित और असामान्य नज़र आते हैं। इस तरह से वह साथ रहने और मिलकर चलने की भावना से भी कोसों दूर हो जाते हैं। यदि मिलना-मिलाना और संवाद बना रहे, तो बच्चों को उनके रिश्ते समझाने में परेशानी नहीं होगी। साथ ही सिर्फ किताबों और कोचिंग से मिलने वाला ज्ञान ही बच्चों का विकास करता है जबकि सामाजिक व्यवस्थाओं से वह जीवनभर कटे ही रहते हैं।
जुड़े रहना ज़रूरी है
हम अक्सर रिश्तेदारों से मिलने के लिए किसी अवसर विशेष का इंतज़ार करते हैं। जबकि यूं भी लगातार सम्पर्क में रह सकते हैं। दूर के चाचाजी का अनुभव मार्गदर्शन के लिए मदद कर सकता है जबकि भाभी की मौसी से गृहस्थी की गाड़ी कैसे चलाएं, पूछा जा सकता है। आपका उनको दिया सम्मान और महत्व उन्हें भी आपसे जुड़े रहने के लिए मजबूर कर देगा।
इसके अलावा प्रत्येक परिवार में कोई न कोई ऐसा आयोजन ज़रूर होता है, जिसमें रिश्तेदार सम्मिलित होते हैं। इन आयोजनों में सपरिवार न जाकर अपना कोई पारिवारिक प्रतिनिधि भेजने का चलन चल पड़ा है, जो गलत है। कोशिश कीजिए कि एक दिन या महज एक घंटे के लिए जाएं, पर सपरिवार जाएं। इससे आपका सभी से मिलना भी हो जाएगा और बच्चों की पहचान भी बढ़ेगी। वे अपने हमउम्र से आपसे ज्यादा सक्रियता से जुड़ जाएंगे। इस तरह परिवार और रिश्ते बने रहेंगे।
चिट्ठी, न कोई संदेश
पहले के ज़माने में हम अपने परिवार से चिट्ठियों के ज़रिए हमेशा जुड़े रहते थे। पिता के छोटे भाई को या भाई की बहन को, कितने ही ऐसे रिश्तों को लिखी चिट्ठियां अब गुम हो चुकी हैं। इन पत्रों के शब्दों में व्यक्त आत्मीयता एसएमएस और ईमेल में कहां? बधाई संदेश या उत्सव के ग्रीटिंग्स तो जैसे गुम से हो गए हैं। अब तो एक एसएमएस फॉरवर्ड कर दिया और पहुंच गई अवसर विशेष की शुभकामनाएं। चिट्ठियों की महत्ता आज भी वैसी ही बनी हुई है, जैसे कल थी, लेकिन समयाभाव के चलते आज हम यह कोशिश भी नहीं करते।
शिकायत की कड़वाहट या प्यार की मिठास!
रिश्तों में दूरियां लाने में काफी हद तक हम स्वयं जिम्मेदार होते हैं। अब देखिए बहुत दिनों के बाद ननद का फोन आया, तो मन में खुशी तो बहुत हुई, लेकिन बात की शुरूआत में ही मीता पूछ बैठी कि ‘इतने दिनों के बाद मेरी याद कैसे आ गई, कोई जरूरी काम है क्या?’ यह सवाल ननद जी के मन को चुभ गया। अब आगे से उसने प्यारी भाभी को खुद फोन न करने की ठान ली।
हालांकि मीता का ऐसा कोई उद्देश्य नहीं था, लेकिन बातों-बातों में ही बात बिगड़ गई। इस तरह की कई गलतियां हम भी दोहराते हैं। अगर कोई बहुत दिनों के बाद आपको याद कर रहा है, तो बातों में शिकायतों के बजाय प्यार की मिठास लाएं। इससे आप दोनों के बीच के रिश्ते की कड़ी और भी मजबूत हो जाएगी।
एक चिट्ठी, एक फोनकॉल
आप मानें या न मानें, लेकिन हालचाल पूछने वाली चिट्ठी-पत्री की भूमिका आज भी परिवार को जोड़े रखने में प्रभावी है। यह काम आप भी कर सकती हैं। आखिर प्रत्येक रिश्तेदार को अपना हालचाल बताने और उसकी कुशलक्षेम पूछने में चंद शब्द ही तो लिखने हैं। आप अपने बच्चों को भी चिट्ठियां लिखने के लिए प्रोत्साहित करें। उनके लिखे पत्र रिश्तेदारों को मिलेंगे, तो वे भी प्रसन्न होंगे और बच्चों से उनका सीधा जुड़ाव भी होगा।
अगर आपको चिट्ठियां लिखना ऊबाऊ लगता है, तो फोन का सहारा लीजिए। जब भी समय मिले, रिश्तेदारों से यूं ही बात करें। आपका फोन जाएगा, तो उनका भी आएगा और इस तरह दूरियां मिनटों में सिमट जाएंगी। घर में किसी तरह का आयोजन हो, तो सभी रिश्तेदारों से सम्पर्क कर उन्हें कहना कि ‘आपको आना ही है’, रिश्तों में फिर से ताज़गी भर देगा।
यह ध्यान रखिए कि आप जुड़ेंगी, तो ही आपसे कोई जुड़ पाएगा, क्योंकि दूरियों के जो कारण आपके साथ हैं, उससे मिलते-जुलते रिश्तेदारों के भी हैं। ऐसे में आपकी एक पहल रिश्तों को फिर से नई ऊर्जा दे सकती है। छोटी-छोटी खुशियां अपनो से बांट लेने से बढ़ जाएंगी और मुसीबत में इन्हें आवाज़ देने के लिए ज्यादा मशक्कत भी नहीं करनी पड़ेगी।
‘रिश्ते बनाना ऐसा है जैसे मिट्टी पर मिट्टी से मिट्टी लिखना,पर रिश्ते निभाना जैसे पानी पर पानी से पानी लिखना।’
दूर की रिश्तेदारी के मामले में भी कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है। हालांकि जो दिल की सीढ़ियां चढ़ गया, उसके लिए दरवाज़े खुले हैं। एक कोशिश तो कीजिए..!
ज़रा याद कीजिए कि आपको अपनी दूर की मौसी से मिले हुए कितने साल हो गए? खुद को टटोलकर देखिए कि दूर के रिश्तेदारों से दूर होकर क्या आप किसी तरह का भावनात्मक खालीपन महसूस करती हैं? या आपको अपनों की कमी खलती है? आप ईमानदारी से टटोलेंगी, तब अहसास होगा कि कितने अपनों को आपने वक्त के साथ भुला दिया।
कारण चाहे कोई भी हों, यह मानना होगा कि हम अपनों से खुद दूर हुए हैं। अब हम किसी का परिचय यह कहकर नहीं कराते है कि ये मेरी बहन का बेटा है, यह रिश्ते में हमारे मामा लगते हैं और वह हमारे दूर के रिश्तेदार हैं। हालांकि इस जैसी रिश्तेदारी से हर परिवार जुड़ा था, जुड़ा है।
रिश्तेदारों से दूर रहने के कई कारण हैं। इन कारणों को खोजने की कोशिश करेंगे तो जुड़ने के तरीके भी सामने खुद-ब-खुद आ जाएंगे। वैसे भी हमारे भारतीय समाज का गठन पूरी दुनिया में अनूठा है। रिश्तेदारों के मामले में हम भारतीय बिल गेट्स या लक्ष्मी मित्तल जितने ही अमीर हैं। इन कारणों की भूल-भुलैया में कुछ रास्ते ऐसे भी मौजूद हैं, जिन्हें अपनाकर आप दूर की रिश्तेदारी को दूर रहते हुए भी सहेजकर रख सकती हैं। तो चलिए इन दूर के रिश्तेदारों के थोड़ा नज़दीक चलें..
दूरी के कारण कई..
रिश्तों में दूरियों के एक नहीं, कई कारण हैं। कामकाज का बदलता स्वरूप, भागदौड़ भरी ज़िंदगी, इससे उभरा तनाव किसी भी व्यक्ति को अपने परिवार के लिए समय निकालने से रोकता है। कुछ हिस्सा सोच का भी है, जो समय के साथ-साथ बदल गई है। हमने अपनी ज़रूरतों के मुताबिक रिश्तों की साज-सम्भाल शुरू कर दी है, जिसके आधार पर ‘समय पर जो काम आए, वही अपना है’ की मानसिकता दृढ़ हो चुकी है।
जो दूर हैं, हम उन रिश्तों को इसलिए नहीं टटोलते क्योंकि वे साथ नहीं है और ज़रूरत पर काम नहीं आते। दूरियों का एक कारण संवादहीनता भी हैं। हम अपनी नेटवर्किग साइट पर जुड़े दोस्तों को •यादा महत्व देते हैं, जबकि पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे रिश्तों के नेटवर्क को व्यस्तता की भेंट चढ़ा देते हैं, जो हमारी खुद की नींव को कमज़ोर करने जैसा है।
महत्व है इनका
जो दूर हैं, वे तो दूर के ही हैं, यह सोचना गलत है। किसी भी परिवार के लिए दूर की रिश्तेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी नज़दीक की। आखिर इनकी उपस्थिति से ही तो एक सम्पूर्ण परिवार की अवधारणा पूरी होती है।
इन्हें रिश्तेदारों से हमें भावनात्मक पोषण मिलता था और बच्चों को भी परिवार और परिजनों का महत्व समझ में आता था। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि समाज अब ‘हम दो हमारे दो’, ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ की अवधारणा को रिश्तेदारी में भी लागू करने लगा है। ऐसा नहीं होना चाहिए।
बच्चे नहीं समझेंगे!
रिश्तेदारी में हमारी लापरवाही का असर बच्चों पर पड़ रहा है। वे अब नहीं समझ सकते हैं कि उनकी बुआ की मौसी की बहन का बेटा उनका भाई कैसे हुआ? वे नहीं जानते कि उनके कुटुम्ब की बेल कहां तक फैली है?
यही कारण है कि वे भी किसी रिश्तेदार से अचानक मिलने पर आश्चर्यचकित और असामान्य नज़र आते हैं। इस तरह से वह साथ रहने और मिलकर चलने की भावना से भी कोसों दूर हो जाते हैं। यदि मिलना-मिलाना और संवाद बना रहे, तो बच्चों को उनके रिश्ते समझाने में परेशानी नहीं होगी। साथ ही सिर्फ किताबों और कोचिंग से मिलने वाला ज्ञान ही बच्चों का विकास करता है जबकि सामाजिक व्यवस्थाओं से वह जीवनभर कटे ही रहते हैं।
जुड़े रहना ज़रूरी है
हम अक्सर रिश्तेदारों से मिलने के लिए किसी अवसर विशेष का इंतज़ार करते हैं। जबकि यूं भी लगातार सम्पर्क में रह सकते हैं। दूर के चाचाजी का अनुभव मार्गदर्शन के लिए मदद कर सकता है जबकि भाभी की मौसी से गृहस्थी की गाड़ी कैसे चलाएं, पूछा जा सकता है। आपका उनको दिया सम्मान और महत्व उन्हें भी आपसे जुड़े रहने के लिए मजबूर कर देगा।
इसके अलावा प्रत्येक परिवार में कोई न कोई ऐसा आयोजन ज़रूर होता है, जिसमें रिश्तेदार सम्मिलित होते हैं। इन आयोजनों में सपरिवार न जाकर अपना कोई पारिवारिक प्रतिनिधि भेजने का चलन चल पड़ा है, जो गलत है। कोशिश कीजिए कि एक दिन या महज एक घंटे के लिए जाएं, पर सपरिवार जाएं। इससे आपका सभी से मिलना भी हो जाएगा और बच्चों की पहचान भी बढ़ेगी। वे अपने हमउम्र से आपसे ज्यादा सक्रियता से जुड़ जाएंगे। इस तरह परिवार और रिश्ते बने रहेंगे।
चिट्ठी, न कोई संदेश
पहले के ज़माने में हम अपने परिवार से चिट्ठियों के ज़रिए हमेशा जुड़े रहते थे। पिता के छोटे भाई को या भाई की बहन को, कितने ही ऐसे रिश्तों को लिखी चिट्ठियां अब गुम हो चुकी हैं। इन पत्रों के शब्दों में व्यक्त आत्मीयता एसएमएस और ईमेल में कहां? बधाई संदेश या उत्सव के ग्रीटिंग्स तो जैसे गुम से हो गए हैं। अब तो एक एसएमएस फॉरवर्ड कर दिया और पहुंच गई अवसर विशेष की शुभकामनाएं। चिट्ठियों की महत्ता आज भी वैसी ही बनी हुई है, जैसे कल थी, लेकिन समयाभाव के चलते आज हम यह कोशिश भी नहीं करते।
शिकायत की कड़वाहट या प्यार की मिठास!
रिश्तों में दूरियां लाने में काफी हद तक हम स्वयं जिम्मेदार होते हैं। अब देखिए बहुत दिनों के बाद ननद का फोन आया, तो मन में खुशी तो बहुत हुई, लेकिन बात की शुरूआत में ही मीता पूछ बैठी कि ‘इतने दिनों के बाद मेरी याद कैसे आ गई, कोई जरूरी काम है क्या?’ यह सवाल ननद जी के मन को चुभ गया। अब आगे से उसने प्यारी भाभी को खुद फोन न करने की ठान ली।
हालांकि मीता का ऐसा कोई उद्देश्य नहीं था, लेकिन बातों-बातों में ही बात बिगड़ गई। इस तरह की कई गलतियां हम भी दोहराते हैं। अगर कोई बहुत दिनों के बाद आपको याद कर रहा है, तो बातों में शिकायतों के बजाय प्यार की मिठास लाएं। इससे आप दोनों के बीच के रिश्ते की कड़ी और भी मजबूत हो जाएगी।
एक चिट्ठी, एक फोनकॉल
आप मानें या न मानें, लेकिन हालचाल पूछने वाली चिट्ठी-पत्री की भूमिका आज भी परिवार को जोड़े रखने में प्रभावी है। यह काम आप भी कर सकती हैं। आखिर प्रत्येक रिश्तेदार को अपना हालचाल बताने और उसकी कुशलक्षेम पूछने में चंद शब्द ही तो लिखने हैं। आप अपने बच्चों को भी चिट्ठियां लिखने के लिए प्रोत्साहित करें। उनके लिखे पत्र रिश्तेदारों को मिलेंगे, तो वे भी प्रसन्न होंगे और बच्चों से उनका सीधा जुड़ाव भी होगा।
अगर आपको चिट्ठियां लिखना ऊबाऊ लगता है, तो फोन का सहारा लीजिए। जब भी समय मिले, रिश्तेदारों से यूं ही बात करें। आपका फोन जाएगा, तो उनका भी आएगा और इस तरह दूरियां मिनटों में सिमट जाएंगी। घर में किसी तरह का आयोजन हो, तो सभी रिश्तेदारों से सम्पर्क कर उन्हें कहना कि ‘आपको आना ही है’, रिश्तों में फिर से ताज़गी भर देगा।
यह ध्यान रखिए कि आप जुड़ेंगी, तो ही आपसे कोई जुड़ पाएगा, क्योंकि दूरियों के जो कारण आपके साथ हैं, उससे मिलते-जुलते रिश्तेदारों के भी हैं। ऐसे में आपकी एक पहल रिश्तों को फिर से नई ऊर्जा दे सकती है। छोटी-छोटी खुशियां अपनो से बांट लेने से बढ़ जाएंगी और मुसीबत में इन्हें आवाज़ देने के लिए ज्यादा मशक्कत भी नहीं करनी पड़ेगी।
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