मां के मन में हर पल बस बच्चा
कहते हैं कि बच्चों को बड़ा करना कोई बच्चों का खेल नहीं है। यह बात किसी मां से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। इसलिए भले ही नवजात शिशु की देखभाल पति-पत्नी, दोनों की साझा जिम्मेदारी हो, पर आमतौर पर परेशानियां मां को ही सहनी पड़ती हैं।
उसका सबसे बड़ा जिम्मा होता है, रात-दिन, चौबीसों घंटे बच्चे का ध्यान रखना। शायद इसीलिए देखा जाता है कि माताएं भीड़ में भी हों, तो अपने शिशुओं के हल्के-से रुदन को भी पहचान जाती हैं। इतना ही नहीं, वे रात में भी बच्चे की जरा-सी भी आवाज आने पर जाग जाती हैं। दरअसल, वे बच्चे का रोना सुनकर सो ही नहीं सकतीं। यह बात मानव विकास के दौरान लाखों वर्षो में विकसित हुई है और किसी भी स्त्री में स्वाभाविक रूप से जन्मजात होती है।
बहुत सारी युवा मम्मियों को अपने जीवनसाथी से शिकायत भी होती है कि रात में बच्चे के रोने पर भी वे करवट बदलते सोते रहते हैं, जबकि उस समय तत्काल ध्यान देने की जरूरत होती है। अमेरिका की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी से संबद्ध माइंड-लैब इंस्टीट्यूशन द्वारा किए गए एक अध्ययन से यह साबित भी होता है कि पुरुष चाहे तो उस परिस्थिति में आराम से सो सकता है, लेकिन महिला को उसका मातृत्व कचोटता है और उसे तत्काल उठना ही पड़ता है।
दरअसल, माइंड-लैब ने रात की अच्छी नींद का महत्व बताने के लिए एक स्टडी की, जिसके तहत यह भी पता किया गया कि लोगों की नींद खुलने के अहम कारण कौन-से हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं के मामले में बच्चे का रोना सबसे बड़ा कारण है। और यह सिर्फ़ मांओं तक ही सीमित नहीं है। अविवाहित युवतियां भी किसी बच्चे का रोना सुनकर तुरंत जाग जाती हैं। दूसरी तरफ़, इससे मर्दो को कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता।
असल बात यह है कि किसकी नींद किस बात से जल्दी खुलेगी, यह बात विकासक्रम के दौरान तय हुई जिम्मेदारियों पर काफ़ी निर्भर करती है। इसलिए स्त्रियों की नींद बच्चे के रोने से टूटती है, तो खिड़की पर हुई भड़भड़ाहट से पुरुष के कान तत्काल खड़े हो जाते हैं। जा़हिर है, यह सुरक्षा से जुड़ा मामला है, जो मूलत: पुरुष का जिम्मा है।
दूसरी तरफ़, किसी के भी खांसने-खखारने या खर्राटे भरने पर दोनों समान रूप से डिस्टर्ब होते हैं। महिलाओं की नींद में व्यवधान डालने वाली अन्य बातों में नल की टिप-टिप, मच्छर या मक्खी की भुनभुनाहट, कामगारों द्वारा पैदा किया गया शोर, कार के सायरन, कार के अलार्म वगैरह हैं।
पुरुष कार के अलार्म, खिड़की-दरवाजे पर भड़भड़ाहट, मच्छर-मक्खी, खर्राटे, बाहरी शोर-शराबा, पतंगे की आवाज, सायरन, घड़ी की टिक-टिक, ड्रिलिंग या मजदूरों द्वारा उत्पन्न शोर और खुले या टपकते नल से जाग पड़ते हैं। मनोविज्ञानी डॉ. डेविड लुइस बताते हैं, ‘महिलाओं की नींद उन बातों से जल्दी टूटती है, जिनमें उनके बच्चे को ख़तरा हो, जबकि पुरुष ऐसी बातों के चलते जल्दी जाग जाते हैं, जिनमें पूरे परिवार के लिए कुछ संकट हो सकता है। यह सोच-समझकर नहीं, स्वाभाविक रूप से होता है।’
कहते हैं कि बच्चों को बड़ा करना कोई बच्चों का खेल नहीं है। यह बात किसी मां से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। इसलिए भले ही नवजात शिशु की देखभाल पति-पत्नी, दोनों की साझा जिम्मेदारी हो, पर आमतौर पर परेशानियां मां को ही सहनी पड़ती हैं।
उसका सबसे बड़ा जिम्मा होता है, रात-दिन, चौबीसों घंटे बच्चे का ध्यान रखना। शायद इसीलिए देखा जाता है कि माताएं भीड़ में भी हों, तो अपने शिशुओं के हल्के-से रुदन को भी पहचान जाती हैं। इतना ही नहीं, वे रात में भी बच्चे की जरा-सी भी आवाज आने पर जाग जाती हैं। दरअसल, वे बच्चे का रोना सुनकर सो ही नहीं सकतीं। यह बात मानव विकास के दौरान लाखों वर्षो में विकसित हुई है और किसी भी स्त्री में स्वाभाविक रूप से जन्मजात होती है।
बहुत सारी युवा मम्मियों को अपने जीवनसाथी से शिकायत भी होती है कि रात में बच्चे के रोने पर भी वे करवट बदलते सोते रहते हैं, जबकि उस समय तत्काल ध्यान देने की जरूरत होती है। अमेरिका की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी से संबद्ध माइंड-लैब इंस्टीट्यूशन द्वारा किए गए एक अध्ययन से यह साबित भी होता है कि पुरुष चाहे तो उस परिस्थिति में आराम से सो सकता है, लेकिन महिला को उसका मातृत्व कचोटता है और उसे तत्काल उठना ही पड़ता है।
दरअसल, माइंड-लैब ने रात की अच्छी नींद का महत्व बताने के लिए एक स्टडी की, जिसके तहत यह भी पता किया गया कि लोगों की नींद खुलने के अहम कारण कौन-से हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं के मामले में बच्चे का रोना सबसे बड़ा कारण है। और यह सिर्फ़ मांओं तक ही सीमित नहीं है। अविवाहित युवतियां भी किसी बच्चे का रोना सुनकर तुरंत जाग जाती हैं। दूसरी तरफ़, इससे मर्दो को कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता।
असल बात यह है कि किसकी नींद किस बात से जल्दी खुलेगी, यह बात विकासक्रम के दौरान तय हुई जिम्मेदारियों पर काफ़ी निर्भर करती है। इसलिए स्त्रियों की नींद बच्चे के रोने से टूटती है, तो खिड़की पर हुई भड़भड़ाहट से पुरुष के कान तत्काल खड़े हो जाते हैं। जा़हिर है, यह सुरक्षा से जुड़ा मामला है, जो मूलत: पुरुष का जिम्मा है।
दूसरी तरफ़, किसी के भी खांसने-खखारने या खर्राटे भरने पर दोनों समान रूप से डिस्टर्ब होते हैं। महिलाओं की नींद में व्यवधान डालने वाली अन्य बातों में नल की टिप-टिप, मच्छर या मक्खी की भुनभुनाहट, कामगारों द्वारा पैदा किया गया शोर, कार के सायरन, कार के अलार्म वगैरह हैं।
पुरुष कार के अलार्म, खिड़की-दरवाजे पर भड़भड़ाहट, मच्छर-मक्खी, खर्राटे, बाहरी शोर-शराबा, पतंगे की आवाज, सायरन, घड़ी की टिक-टिक, ड्रिलिंग या मजदूरों द्वारा उत्पन्न शोर और खुले या टपकते नल से जाग पड़ते हैं। मनोविज्ञानी डॉ. डेविड लुइस बताते हैं, ‘महिलाओं की नींद उन बातों से जल्दी टूटती है, जिनमें उनके बच्चे को ख़तरा हो, जबकि पुरुष ऐसी बातों के चलते जल्दी जाग जाते हैं, जिनमें पूरे परिवार के लिए कुछ संकट हो सकता है। यह सोच-समझकर नहीं, स्वाभाविक रूप से होता है।’
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