तूफान से दोस्ती
झुकने से तात्पर्य हारना कतई नहीं है। और यह भी सत्य है कि जो झुका है, वही दोबारा खड़ा हो सका है। समय, परिस्थितियां विपरीत हों, तो उनसे दोस्ती कर आप उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
बगीचे में जाकर अगर माली से पूछिए! वह कहेगा कि वृक्ष को अगर झुकाना हो, कोई ढंग देना हो, तो वह तभी दिया जा सकता है जब पौधा लोचपूर्ण हो और छोटा हो। जब पौधा स़ख्त हो जाएगा, फिर झुकाओगे तो शाखाएं टूट जाएंगी।
कभी तेज़ तूफान आता है, तो बड़े वृक्ष गिर जाते हैं, छोटे-छोटे घास के पौधे बच जाते हैं। होना तो उल्टा ही चाहिए था कि निर्बल घास के छोटे-छोटे पौधे, जिनमें कोई प्राण नहीं, जिनमें कोई बल नहीं दिखाई पड़ता, तूफान इनको मिटा जाता है, ये नष्ट हो जाते हैं।
बड़े वृक्ष जो आकाश को छूते हैं, जिनकी शाखाओं ने बड़ा जाल फैलाया है, जिनके अहंकार की कोई सीमा नहीं, जो उठे हैं उत्तुंग, चांद-सूरज को छूने की जिनकी दौड़ है, वे गिर जाते हैं।
तूफान उन्हें मिटा जाता है। कोई तरकीब घास का पौधा जानता है, जो वृक्ष भूल गया। बड़ा वृक्ष स़ख्त हो गया है, टूट सकता है, लेकिन झुक नहीं सकता।
अकड़ वाले आदमी के लिए भी हम यही तो कहते हैं कि ये आदमी ऐसी अकड़ वाला है कि टूट सकता है, पर झुक नहीं सकता। और समस्त अहंकारियों की शिक्षा यही है कि टूट जाना मगर झुकना मत।
लाओत्से की शिक्षा बिल्कुल भिन्न है। लाओत्से कहते हैं, ऐसा टूटने की जल्दी क्या! ऐसा टूटने का आग्रह क्या! आत्मघात के लिए इतनी उत्सुकता क्यों है? झुक जाना, क्योंकि झुकने में ही तुम तूफान को जीत सकोगे। तुम टूटो कि न टूटो, तूफान तुम्हारी फिक्र करता है? तूफान को पता भी न चलेगा कि तुम टूट गए। तूफान अपनी राह से चला जाएगा। तुम नाहक मिट जाओगे।
छोटे घास के पौधे की भांति हो जाओ। तूफान आता है, घास का पौधा जमीन पर लेट जाता है। अकड़ रखता ही नहीं, जरा भी न-नुच नहीं करता। यह भी नहीं कहता कि कैसे करूं, यह ठीक नहीं है। क्यों मुझे झुका रहे हो? बात नहीं उठाता।
तूफान आता है, तूफान के साथ ही झुक जाता है। तूफान बाएं बह रहा हो तो बाएं, तूफान दाएं तो दाएं, दक्षिण तो दक्षिण, उत्तर तो उत्तर। तूफान जहां जा रहा हो, घास का छोटा पौधा तूफान के साथ मैत्री कर लेता है, सहयोग कर लेता है। तूफान के विरोध में खड़ा नहीं होता, तूफान की धारा में बह जाता है।
और जिस घास के पौधे ने तूफान में बहने की कला जान ली, वह तूफान पर सवार हो गया, उसे तूफान मिटा न सकेगा। अब आ जाए और बड़े तूफान पर, अब महा तूफान और आंधियां उठें, तो इस पौधे को कुछ भी न कर सकेंगे।
वह सो जाएगा ज़मीन पर, तूफान गुज़र जाएगा।ञ्च झुकने से तात्पर्य हारना कतई नहीं है। और यह भी सत्य है कि जो झुका है, वही दोबारा खड़ा हो सका है। समय, परिस्थितियां विपरीत हों, तो उनसे दोस्ती कर आप उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
बगीचे में जाकर अगर माली से पूछिए! वह कहेगा कि वृक्ष को अगर झुकाना हो, कोई ढंग देना हो, तो वह तभी दिया जा सकता है जब पौधा लोचपूर्ण हो और छोटा हो। जब पौधा स़ख्त हो जाएगा, फिर झुकाओगे तो शाखाएं टूट जाएंगी।
कभी तेज़ तूफान आता है, तो बड़े वृक्ष गिर जाते हैं, छोटे-छोटे घास के पौधे बच जाते हैं। होना तो उल्टा ही चाहिए था कि निर्बल घास के छोटे-छोटे पौधे, जिनमें कोई प्राण नहीं, जिनमें कोई बल नहीं दिखाई पड़ता, तूफान इनको मिटा जाता है, ये नष्ट हो जाते हैं। बड़े वृक्ष जो आकाश को छूते हैं, जिनकी शाखाओं ने बड़ा जाल फैलाया है, जिनके अहंकार की कोई सीमा नहीं, जो उठे हैं उत्तुंग, चांद-सूरज को छूने की जिनकी दौड़ है, वे गिर जाते हैं।
तूफान उन्हें मिटा जाता है। कोई तरकीब घास का पौधा जानता है, जो वृक्ष भूल गया। बड़ा वृक्ष स़ख्त हो गया है, टूट सकता है, लेकिन झुक नहीं सकता।
अकड़ वाले आदमी के लिए भी हम यही तो कहते हैं कि ये आदमी ऐसी अकड़ वाला है कि टूट सकता है, पर झुक नहीं सकता। और समस्त अहंकारियों की शिक्षा यही है कि टूट जाना मगर झुकना मत।
लाओत्से की शिक्षा बिल्कुल भिन्न है। लाओत्से कहते हैं, ऐसा टूटने की जल्दी क्या! ऐसा टूटने का आग्रह क्या! आत्मघात के लिए इतनी उत्सुकता क्यों है? झुक जाना, क्योंकि झुकने में ही तुम तूफान को जीत सकोगे। तुम टूटो कि न टूटो, तूफान तुम्हारी फिक्र करता है? तूफान को पता भी न चलेगा कि तुम टूट गए। तूफान अपनी राह से चला जाएगा। तुम नाहक मिट जाओगे।
छोटे घास के पौधे की भांति हो जाओ। तूफान आता है, घास का पौधा जमीन पर लेट जाता है। अकड़ रखता ही नहीं, जरा भी न-नुच नहीं करता। यह भी नहीं कहता कि कैसे करूं, यह ठीक नहीं है। क्यों मुझे झुका रहे हो? बात नहीं उठाता।
तूफान आता है, तूफान के साथ ही झुक जाता है। तूफान बाएं बह रहा हो तो बाएं, तूफान दाएं तो दाएं, दक्षिण तो दक्षिण, उत्तर तो उत्तर। तूफान जहां जा रहा हो, घास का छोटा पौधा तूफान के साथ मैत्री कर लेता है, सहयोग कर लेता है।
तूफान के विरोध में खड़ा नहीं होता, तूफान की धारा में बह जाता है। और जिस घास के पौधे ने तूफान में बहने की कला जान ली, वह तूफान पर सवार हो गया, उसे तूफान मिटा न सकेगा। अब आ जाए और बड़े तूफान पर, अब महा तूफान और आंधियां उठें, तो इस पौधे को कुछ भी न कर सकेंगे। वह सो जाएगा ज़मीन पर, तूफान गुज़र जाएगा।
झुकने से तात्पर्य हारना कतई नहीं है। और यह भी सत्य है कि जो झुका है, वही दोबारा खड़ा हो सका है। समय, परिस्थितियां विपरीत हों, तो उनसे दोस्ती कर आप उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
बगीचे में जाकर अगर माली से पूछिए! वह कहेगा कि वृक्ष को अगर झुकाना हो, कोई ढंग देना हो, तो वह तभी दिया जा सकता है जब पौधा लोचपूर्ण हो और छोटा हो। जब पौधा स़ख्त हो जाएगा, फिर झुकाओगे तो शाखाएं टूट जाएंगी।
कभी तेज़ तूफान आता है, तो बड़े वृक्ष गिर जाते हैं, छोटे-छोटे घास के पौधे बच जाते हैं। होना तो उल्टा ही चाहिए था कि निर्बल घास के छोटे-छोटे पौधे, जिनमें कोई प्राण नहीं, जिनमें कोई बल नहीं दिखाई पड़ता, तूफान इनको मिटा जाता है, ये नष्ट हो जाते हैं।
बड़े वृक्ष जो आकाश को छूते हैं, जिनकी शाखाओं ने बड़ा जाल फैलाया है, जिनके अहंकार की कोई सीमा नहीं, जो उठे हैं उत्तुंग, चांद-सूरज को छूने की जिनकी दौड़ है, वे गिर जाते हैं।
तूफान उन्हें मिटा जाता है। कोई तरकीब घास का पौधा जानता है, जो वृक्ष भूल गया। बड़ा वृक्ष स़ख्त हो गया है, टूट सकता है, लेकिन झुक नहीं सकता।
अकड़ वाले आदमी के लिए भी हम यही तो कहते हैं कि ये आदमी ऐसी अकड़ वाला है कि टूट सकता है, पर झुक नहीं सकता। और समस्त अहंकारियों की शिक्षा यही है कि टूट जाना मगर झुकना मत।
लाओत्से की शिक्षा बिल्कुल भिन्न है। लाओत्से कहते हैं, ऐसा टूटने की जल्दी क्या! ऐसा टूटने का आग्रह क्या! आत्मघात के लिए इतनी उत्सुकता क्यों है? झुक जाना, क्योंकि झुकने में ही तुम तूफान को जीत सकोगे। तुम टूटो कि न टूटो, तूफान तुम्हारी फिक्र करता है? तूफान को पता भी न चलेगा कि तुम टूट गए। तूफान अपनी राह से चला जाएगा। तुम नाहक मिट जाओगे।
छोटे घास के पौधे की भांति हो जाओ। तूफान आता है, घास का पौधा जमीन पर लेट जाता है। अकड़ रखता ही नहीं, जरा भी न-नुच नहीं करता। यह भी नहीं कहता कि कैसे करूं, यह ठीक नहीं है। क्यों मुझे झुका रहे हो? बात नहीं उठाता।
तूफान आता है, तूफान के साथ ही झुक जाता है। तूफान बाएं बह रहा हो तो बाएं, तूफान दाएं तो दाएं, दक्षिण तो दक्षिण, उत्तर तो उत्तर। तूफान जहां जा रहा हो, घास का छोटा पौधा तूफान के साथ मैत्री कर लेता है, सहयोग कर लेता है। तूफान के विरोध में खड़ा नहीं होता, तूफान की धारा में बह जाता है।
और जिस घास के पौधे ने तूफान में बहने की कला जान ली, वह तूफान पर सवार हो गया, उसे तूफान मिटा न सकेगा। अब आ जाए और बड़े तूफान पर, अब महा तूफान और आंधियां उठें, तो इस पौधे को कुछ भी न कर सकेंगे।
वह सो जाएगा ज़मीन पर, तूफान गुज़र जाएगा।ञ्च झुकने से तात्पर्य हारना कतई नहीं है। और यह भी सत्य है कि जो झुका है, वही दोबारा खड़ा हो सका है। समय, परिस्थितियां विपरीत हों, तो उनसे दोस्ती कर आप उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
बगीचे में जाकर अगर माली से पूछिए! वह कहेगा कि वृक्ष को अगर झुकाना हो, कोई ढंग देना हो, तो वह तभी दिया जा सकता है जब पौधा लोचपूर्ण हो और छोटा हो। जब पौधा स़ख्त हो जाएगा, फिर झुकाओगे तो शाखाएं टूट जाएंगी।
कभी तेज़ तूफान आता है, तो बड़े वृक्ष गिर जाते हैं, छोटे-छोटे घास के पौधे बच जाते हैं। होना तो उल्टा ही चाहिए था कि निर्बल घास के छोटे-छोटे पौधे, जिनमें कोई प्राण नहीं, जिनमें कोई बल नहीं दिखाई पड़ता, तूफान इनको मिटा जाता है, ये नष्ट हो जाते हैं। बड़े वृक्ष जो आकाश को छूते हैं, जिनकी शाखाओं ने बड़ा जाल फैलाया है, जिनके अहंकार की कोई सीमा नहीं, जो उठे हैं उत्तुंग, चांद-सूरज को छूने की जिनकी दौड़ है, वे गिर जाते हैं।
तूफान उन्हें मिटा जाता है। कोई तरकीब घास का पौधा जानता है, जो वृक्ष भूल गया। बड़ा वृक्ष स़ख्त हो गया है, टूट सकता है, लेकिन झुक नहीं सकता।
अकड़ वाले आदमी के लिए भी हम यही तो कहते हैं कि ये आदमी ऐसी अकड़ वाला है कि टूट सकता है, पर झुक नहीं सकता। और समस्त अहंकारियों की शिक्षा यही है कि टूट जाना मगर झुकना मत।
लाओत्से की शिक्षा बिल्कुल भिन्न है। लाओत्से कहते हैं, ऐसा टूटने की जल्दी क्या! ऐसा टूटने का आग्रह क्या! आत्मघात के लिए इतनी उत्सुकता क्यों है? झुक जाना, क्योंकि झुकने में ही तुम तूफान को जीत सकोगे। तुम टूटो कि न टूटो, तूफान तुम्हारी फिक्र करता है? तूफान को पता भी न चलेगा कि तुम टूट गए। तूफान अपनी राह से चला जाएगा। तुम नाहक मिट जाओगे।
छोटे घास के पौधे की भांति हो जाओ। तूफान आता है, घास का पौधा जमीन पर लेट जाता है। अकड़ रखता ही नहीं, जरा भी न-नुच नहीं करता। यह भी नहीं कहता कि कैसे करूं, यह ठीक नहीं है। क्यों मुझे झुका रहे हो? बात नहीं उठाता।
तूफान आता है, तूफान के साथ ही झुक जाता है। तूफान बाएं बह रहा हो तो बाएं, तूफान दाएं तो दाएं, दक्षिण तो दक्षिण, उत्तर तो उत्तर। तूफान जहां जा रहा हो, घास का छोटा पौधा तूफान के साथ मैत्री कर लेता है, सहयोग कर लेता है।
तूफान के विरोध में खड़ा नहीं होता, तूफान की धारा में बह जाता है। और जिस घास के पौधे ने तूफान में बहने की कला जान ली, वह तूफान पर सवार हो गया, उसे तूफान मिटा न सकेगा। अब आ जाए और बड़े तूफान पर, अब महा तूफान और आंधियां उठें, तो इस पौधे को कुछ भी न कर सकेंगे। वह सो जाएगा ज़मीन पर, तूफान गुज़र जाएगा।
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