रामायण में ऐसे कई गूढ़ रहस्य छिपे हैं जो वर्तमान समय में हमें जीने की सही राह दिखाते हैं। रामायण में मर्यादाओं के पालन पर विशेष जोर दिया गया है। रामायण में ऐसे कई प्रसंग आते हैं जहां भगवान श्रीराम ने मर्यादाओं के पालन के लिए त्याग कर आदर्श उदाहरण पेश किया। श्रीराम ने मर्यादा के पालन के लिए 14 साल का वनवास भी सहज रूप से स्वीकार कर लिया। इसीलिए उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम कहा गया।
रामायण में ऐसे भी कई प्रसंग आते हैं जहां मर्यादा का पालन न करने पर पराक्रमी व बलशाली को भी मृत्यु का वरण करना पड़ा। जब भगवान राम ने किष्किंधा के राजा बालि का वध किया तो उसने भगवान से प्रश्न पूछा-
मैं बेरी सुग्रीव प्यारा
कारण कवन नाथ मोहि मारा,
प्रति उत्तर में जो बात राम ने कही वह मर्यादा के प्रति समर्पण को दर्शाती है-अनुज वधू, भग्नी, सुत नारी,सुन सठ ऐ कन्या सम चारीअर्थात अनुज की पत्नी, छोटी बहन तथा पुत्र की पत्नी। यह सभी पुत्री के समान होती है। तुमने अपने अनुज सुग्रीव की पत्नी को बलात अपने कब्जे में रखा इसीलिए तुम मृत्युदंड के अधिकारी हो।
ऐसे ही मानवीय संबंधों को मर्यादाओं में बांधा गया है। इस प्रकार मर्यादाएं व्यक्ति के मन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालती है। वर्तमान समय में जहां पाश्चात्य सभ्यता हमारे बीच घर करती जा रही हैं वहीं रामायण एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो हमें मर्यादाओं की शिक्षा दे रहा है।
भगवान कृष्ण का महानिर्वाण
धर्म के विरुद्ध आचरण करने के दुष्परिणामस्वरूप अन्त में दुर्योधन आदि मारे गये और कौरव वंश का विनाश हो गया। महाभारत के युद्ध के पश्चात् सान्तवना देने के उद्देश्य से भगवान श्रीकृष्ण गांधारी के पास गये। गांधारी अपने सौ पुत्रों के मृत्यु के शोक में अत्यंत व्याकुल थी। भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि तुम्हारे कारण जिस प्रकार से मेरे सौ पुत्रों का नाश हुआ है उसी प्रकार तुम्हारे यदुवंश का भी आपस में एक दूसरे को मारने के कारण नाश हो जायेगा। भगवान श्रीकृष्ण ने माता गांधारी के उस श्राप को पूर्ण करने के लिये यादवों की मति फेर दी।
एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ यदुवंशी बालकों ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यादव वंश का नाश हो जाए। उनके शाप के प्रभाव से यदुवंशी पर्व के दिन प्रभास क्षेत्र में आये। पर्व के हर्ष में उन्होंने अति नशीली मदिरा पी ली और मतवाले हो कर एक दूसरे को मारने लगे। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण को छोड़ कर एक भी यादव जीवित न बचा।
इस घटना के बाद भगवान श्रीकृष्ण महाप्रयाण कर स्वधाम चले जाने के विचार से सोमनाथ के पास वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानस्थ हो गए। जरा नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरण समझ कर विषयुक्त बाण चला दिया जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्री कृष्णचन्द्र स्वधाम को पधार गये। इस तरह गांधारी तथा ऋषि दुर्वासा के श्राप से समस्त यदुवंश का नाश हो गया।
कौन थीं कृष्ण की 16100 रानियां?
श्रीकृष्ण का नाम आते ही हमारे मन असीम प्रेम उमड़ता है। सभी जानते हैं कि असंख्य गोपियां थी जो श्रीकृष्ण से अनन्य प्रेम करती थीं। परंतु उनकी शादी श्रीकृष्ण से नहीं हो सकी। श्रीकृष्ण की प्रमुख पटरानी रुकमणी पटरानी रुकमणी सहित उनकी 8 पटरानियां एवं 16100 रानियां थीं। कुछ विद्वानों का यह मत है कि कृष्ण की प्रमुख रानियां तो आठ ही थीं, शेष 16,100 रानियां प्रतीकात्मक थीं। इन्हें वेदों की ऋचाएं माना गया है। ऐसा माना जाता है चारों वेदों में कुल एक लाख श्लोक हैं। इनमें से 80 हजार श्लोक यज्ञ के हैं, चार हजार श्लोक पराशक्तियों के हैं। शेष 16 हजार श्लोक ही गृहस्थों या आम लोगों के उपयोग के अर्थात भक्ति के हैं। इन श्लोकों को ऋचाए कहा गया है, ये ऋचाएं ही भगवान कृष्ण की पत्नियां थीं। श्रीकृष्ण की प्रत्येक रानी से 10-10 पुत्र एवं प्रत्येक रानी से 1-1 पुत्री का जन्म हुआ।
गुरु ग्रंथ साहिब पढ़कर खुश हुआ बादशाह अकबर
सिक्खों के पांचवे गुरु श्री अर्जुनदेव जी ने गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया। उस समय मुगलकाल का दौर था और अकबर की बादशाहत थी। अर्जुनदेवजी से ईष्र्या रखने वाले लोगों ने बादशाह अकबर को गुरुदेव और गुरु ग्रंथ के खिलाफ भड़काया और कहा कि गुरुग्रंथ साहिब में हिंदू और मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। जिससे राज्य में सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो सकता है। अकबर ने यह सारी बातें सुनकर तुरंत ही गुरुदेव से ग्रंथ साहिब मंगवाया।
गुरुदेव को बादशाह का संदेश मिलने पर उन्होंने अपने प्रिय बुड्ढाजी को गुरुग्रंथ के साथ अकबर के पास भेजा। अकबर ने बुड्ढाजी से ग्रंथ साहिब के संबंध मे सुनी सारी बातें कह सुनाई। बुड्ढाजी ने बादशाह से कहा आप खुद ग्रंथ साहिब को कही से भी खोलकर पढ़ लें। आपकी सारी शंकाओं का समाधान हो जाएगा।
बादशाह अकबर ने ग्रंथ साहिब के पन्ने पलटना शुरू किए, एक पन्ने पर राग रामकली में लिखा पद देखा-
कोई बोलै राम राम, कोई खुदाई।
कोई सेवै गुसइयां, कोई अलाहि॥
कारण करण करीम।
किरपा धारि रहीम॥
कोई न्हावै तीरथि, कोई हज जाई।
कोई करै पूजा, कोई सिरु निवाई॥
कोई पढ़ै वेद, कोई कतेब।
कोई औढ़ै नील कोई सुपेद॥
कोई कहै तुरुक, कोई कहै हिंदू।
कोई बांछै भिसतु, कोई सुरगिंदू॥
कहु नानक जिति हुकमु पछाना।
प्रभु साहिब का तिनि भेदु न जाना॥
यह पद पढ़कर बादशाह अकबर की खुशी का ठिकाना ना रहा और उसने देखा पूरे ग्रंथ में इस तरह की कई पंक्तियां हैं। इसके बाद बादशाह अकबर ग्रंथ साहिब से इतने प्रभावित हुए कि वे खुद गुरु अर्जुनदेवजी से मिलने अमृतसर श्री हरिमंदिर साहिब पहुंच गए। अकबर ने हरमंदिर साहिब के दर्शन कर ५१ अशर्फियां चढ़ाई। अब वे गुरुदेव से मिलने पहुंचे। अकबर गुरुदेव से मिलकर इतना प्रभावित हुआ कि उसने गुरुजी को कोई जागीर देने की इच्छा जताई।
उस समय पंजाब में किसानों की फसल अच्छी नहीं हुई थी और वे बादशाह अकबर का लगान चुकाने में असमर्थ थे। बस गुरुदेव ने किसानों को उस लगान से मुक्त करने की बात बादशाह के सामने रखी। मुगल बादशाह कभी लगान नहीं छोड़ते थे परंतु गुरुदेव की बात मानकर अकबर ने किसानों का लगान माफ कर दिया। इस बात से बादशाह अकबर के मन में गुरुदेव के प्रति आस्था और बढ़ गई।
बाइबिल: प्रेम से भरा एक ग्रंथ
बाइबिल में कुल मिलाकर 72 ग्रंथों का संकलन है। पूर्व विधान में 45 तथा नव विधान में 27 ग्रंथ हैं।
बाइबिल दो भागों में विभक्त है। पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टामेंट) और नव विधान (न्यू टेस्टामेंट)
बाइबिल का पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टामेंट) ही यहूदियों का भी धर्म ग्रंथ है।
माना जाता है कि बाइबिल ईश्वरीय प्रेरणा (इंस्पायर्ड) से रचित गं्रथ है। किंतु उसे अपोरुषेय नहीं कहा जाता है।
बाइबिल ईश्वरीय प्रेरणा तथा मानवीय परिश्रम दोनों का सम्मिलित परिणाम है।
बाइबिल बड़ी ही सहज है इससे गूढ़ दार्शनिक सत्यों का संकलन नहीं है।
बाइबिल यह बताती है कि ईश्वर ने मानव जाति की मुक्ति का क्या प्रबंध किया है।
इंसान को प्रेम, उदारता और आत्म व्यवहार का पाठ पढ़ाती है बाइबिल।
बाइबिल में लौकिक ज्ञान एवं विज्ञान संबंधी जानकारी भी मिलती है।
बाइबिल के पूर्व विधान में यहूदी धर्म और यहूदी लोगों की गाथाएं, पौराणिक कहानियां आदि का वर्णन है।
बाइबिल के पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टोमेंट) की भाषा इब्रानी है।
बाइबिल के नव विधान को ईसा ने लिखा। इनमें ईसा की जीवन, उपदेश और शिष्यों के कार्य लिखे हैं।
नव विधान की मूल भाषा अरामी और प्राचीन ग्रीक है।
नव विधान में चार शुभ संदेश हैं जो ईसा की जीवनी का उनके चार शिष्यों द्वारा वर्णन है।
ईसा के चार प्रमुख शिष्य: मत्ती, लूका, युहन्ना और आकुसथे।
हजरत मूसा बाइबिल के सर्वाधिक प्राचीन लेखक हैं जिन्होंने 1100 ई.पू. में पूर्व विधान का कुछ अंश लिखा था।
नव विधान की रचना 50 वर्ष की अवधि में हुई यानि सन 50 ई से. 100 ई. के बीच।
बाइबिल में लोक कथाएं, काव्य और भजन, उपदेश, नीति कथाएं आदि अनेक प्रकार के साहित्यिक रूप पाए जाते हैं।
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