हर क़दम पर है नजर
कैमरे की जद में रहना हर किसी को नहीं सुहाएगा, ख़ासतौर पर जब वह क्लोज सर्किट टीवी कैमरा हो, जो आपकी हर गतिविधि पर निगाह रखता है। इसीलिए लंदन में पाकिस्तानी मूल के लोगों की बहुतायत वाले बर्मिघम के वाशवुड हीथ जैसे इलाक़ों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना ब्रिटिश सरकार को वापस लेनी पड़ी, क्योंकि उसे स्थानीय लोगों के जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा।
अब वहां लग चुके क़रीब डेढ़ सौ कैमरों पर काले कपड़े लपेटे जाएंगे। लेकिन इससे इस तथ्य पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि इंग्लैड में प्रति व्यक्ति सीसीटीवी कैमरों की संख्या पूरे विश्व में सबसे अधिक है। अनुमान है कि वहां 48 लाख कैमरे हैं, यानी हर बारह व्यक्ति पर एक सीसीटीवी कैमरा! अकेले लंदन में ही 5 लाख कैमरे हैं। इस आंकड़े पर तो संदेह भी नहीं जताया जा सकता, क्योंकि वहां की मेट्रोपोलिटन पुलिस ने ही इस संख्या की पुष्टि की थी। 2012 में लंदन में होने वाले ओलिंपिक खेलों की सुरक्षा के मद्देनजर यह जानकारी दी गई थी।
इनमें से क़रीब दस हजार कैमरे ब्रिटिश कैपिटल के इर्द-गिर्द लगे हैं, जबकि बाक़ी लाखों कैमरे शहर की दुकानों, गलियों, लोकल काउंसिल और स्थानीय ट्रांसपोर्ट की निगरानी में प्रयुक्त हो रहे हैं। कैमरा लगाने के पीछे मूल मंशा अपराधों पर लगाम लगाना है, चाहे वे ट्रैफिक के नियम तोड़ने जैसे सामान्य अपराध हों या चोरी-उठाईगिरी या आतंकवाद जैसे बड़े अपराध।
बहरहाल, यही बात नागरिक स्वतंत्रता अधिकारों के कैंपेन चलाने वाले संगठनों के लिए चिंता का सबब है। कार्यकर्ता गे हरबर्ट को यह बात परेशान करती है कि सीसीटीवी कैमरों पर अभी तक कोई ख़ास नियंत्रण नहीं है। इनके लिए निश्चित कानून भी नहीं बने हैं। ऐसी कई घटनाएं हैं, जिनमें सीसीटीवी फुटेज का प्रयोग लोगों के मनोरंजन के लिए हो रहा है। लोगों के निजी जीवन मे दख़लअंदाजी, सितारा संतानों की शराब पीते या अभद्र व्यवहार करते फुटेज बेचे गए हैं। और ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम नहीं उठाए गए हैं। जाहिर है, यह पूरी तरह से निजता का हनन है।
इसके साथ ही कैंपेन से जुड़े कार्यकर्ताओं को चिंता है कि पुलिस बिना वारंट के ही सीसी टीवी फुटेज दुकानदारों से मांग सकती है। हालांकि हरबर्ट साफ़ करते हैं कि पुलिस या प्रशासन द्वारा इन फुटेज के इस्तेमाल में कोई बुराई नहीं है। लेकिन इन्हें रिकॉर्ड करने का सार्थक उद्देश्य हो। बेशक अपराधों पर नियंत्रण और आतंकी गतिविधियों का पता लगाने में सीसीटीवी फुटेज बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन अगर ब्रिटिश सरकार के आंकड़ों को मानें, तो 80 फ़ीसदी तक कैमरों की क्वालिटी ख़राब है, जो अपराधों की जांच में कुछ ख़ास उपयोगी नहीं होते।
वैसे, सीसीटीवी फुटेज को सरकार के लिए बिना कर बढ़ाए अतिरिक्त आमदनी का अच्छा जरिया भी माना जाता है, क्योंकि फुटेज का प्रयोग ट्रैफिक नियमों की अवहेलना करने वालों पर चालान काटने में काफ़ी किया जाता है। अकेले लंदन में कैमरों की संख्या बढ़ाए जाने पर एक साल में ही लगभग 130 करोड़ रुपयों के बराबर चालान का इजाफ़ा हुआ।
कैमरे की जद में रहना हर किसी को नहीं सुहाएगा, ख़ासतौर पर जब वह क्लोज सर्किट टीवी कैमरा हो, जो आपकी हर गतिविधि पर निगाह रखता है। इसीलिए लंदन में पाकिस्तानी मूल के लोगों की बहुतायत वाले बर्मिघम के वाशवुड हीथ जैसे इलाक़ों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना ब्रिटिश सरकार को वापस लेनी पड़ी, क्योंकि उसे स्थानीय लोगों के जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा।
अब वहां लग चुके क़रीब डेढ़ सौ कैमरों पर काले कपड़े लपेटे जाएंगे। लेकिन इससे इस तथ्य पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि इंग्लैड में प्रति व्यक्ति सीसीटीवी कैमरों की संख्या पूरे विश्व में सबसे अधिक है। अनुमान है कि वहां 48 लाख कैमरे हैं, यानी हर बारह व्यक्ति पर एक सीसीटीवी कैमरा! अकेले लंदन में ही 5 लाख कैमरे हैं। इस आंकड़े पर तो संदेह भी नहीं जताया जा सकता, क्योंकि वहां की मेट्रोपोलिटन पुलिस ने ही इस संख्या की पुष्टि की थी। 2012 में लंदन में होने वाले ओलिंपिक खेलों की सुरक्षा के मद्देनजर यह जानकारी दी गई थी।
इनमें से क़रीब दस हजार कैमरे ब्रिटिश कैपिटल के इर्द-गिर्द लगे हैं, जबकि बाक़ी लाखों कैमरे शहर की दुकानों, गलियों, लोकल काउंसिल और स्थानीय ट्रांसपोर्ट की निगरानी में प्रयुक्त हो रहे हैं। कैमरा लगाने के पीछे मूल मंशा अपराधों पर लगाम लगाना है, चाहे वे ट्रैफिक के नियम तोड़ने जैसे सामान्य अपराध हों या चोरी-उठाईगिरी या आतंकवाद जैसे बड़े अपराध।
बहरहाल, यही बात नागरिक स्वतंत्रता अधिकारों के कैंपेन चलाने वाले संगठनों के लिए चिंता का सबब है। कार्यकर्ता गे हरबर्ट को यह बात परेशान करती है कि सीसीटीवी कैमरों पर अभी तक कोई ख़ास नियंत्रण नहीं है। इनके लिए निश्चित कानून भी नहीं बने हैं। ऐसी कई घटनाएं हैं, जिनमें सीसीटीवी फुटेज का प्रयोग लोगों के मनोरंजन के लिए हो रहा है। लोगों के निजी जीवन मे दख़लअंदाजी, सितारा संतानों की शराब पीते या अभद्र व्यवहार करते फुटेज बेचे गए हैं। और ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम नहीं उठाए गए हैं। जाहिर है, यह पूरी तरह से निजता का हनन है।
इसके साथ ही कैंपेन से जुड़े कार्यकर्ताओं को चिंता है कि पुलिस बिना वारंट के ही सीसी टीवी फुटेज दुकानदारों से मांग सकती है। हालांकि हरबर्ट साफ़ करते हैं कि पुलिस या प्रशासन द्वारा इन फुटेज के इस्तेमाल में कोई बुराई नहीं है। लेकिन इन्हें रिकॉर्ड करने का सार्थक उद्देश्य हो। बेशक अपराधों पर नियंत्रण और आतंकी गतिविधियों का पता लगाने में सीसीटीवी फुटेज बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन अगर ब्रिटिश सरकार के आंकड़ों को मानें, तो 80 फ़ीसदी तक कैमरों की क्वालिटी ख़राब है, जो अपराधों की जांच में कुछ ख़ास उपयोगी नहीं होते।
वैसे, सीसीटीवी फुटेज को सरकार के लिए बिना कर बढ़ाए अतिरिक्त आमदनी का अच्छा जरिया भी माना जाता है, क्योंकि फुटेज का प्रयोग ट्रैफिक नियमों की अवहेलना करने वालों पर चालान काटने में काफ़ी किया जाता है। अकेले लंदन में कैमरों की संख्या बढ़ाए जाने पर एक साल में ही लगभग 130 करोड़ रुपयों के बराबर चालान का इजाफ़ा हुआ।
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