शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

भागवत: ५१ - कैसे हुआ सृष्टि का निर्माण

यह उस समय की बात है जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था। कौरव पराजित तथा श्रीकृष्ण परम तत्व में विलिन हो चुके थे। उनके वियोग में उद्धव महाराज तीर्थाटन के लिए निकल पड़े और उस समय विदुरजी और उद्धवजी की भेंट हो गई। उद्धवजी ने विदुरजी को सारी जानकारी दी। कैसे कौरवों व पांडवों का युद्ध हुआ? कैसे भगवान ने देह त्यागी? दोनों एक-दूसरे की बात सुनकर दु:खी हो गए। उद्धवजी तो श्रीकृष्ण के परम सखा थे। उन्होंने सारी बात विदुरजी को बताई।

उद्धव ने बताया कि भगवान से बिछुड़ जाने पर वे दु:खी हैं और अब वे यहां से बद्रीकाश्रम के लिए प्रस्थान करेंगे। उनकी बात सुनकर विदुर चिंतित हो गए। विदुर ने कहा जो आत्मबोध कृष्णजी ने आपको सुनाया वह मैं भी सुनाना चाहूंगा। तब उद्धवजी ने कहा कि आप मैत्रेय मुनि की सेवा में चले जाइए क्योंकि जिस समय भगवान ने मुझे उपदेश दिया उस समय महामुनि मैत्रेय वहीं उपस्थित थे। महात्मा विदुर भागीरथ के तट पर स्थित मैत्रेय मुनि के आश्रम के लिए प्रस्थान कर गए। विदुर मैत्रेय मुनि के पास पहुंचे। उनसे निवेदन किया श्रीकृष्ण की लीलाओं का मर्म समझाएं।
मैत्रेयजी ने विदुर को बताया कि महाप्रलय के समय भगवान श्रीकृष्ण अपनी योगमाया को समेट कर सुषुप्त अवस्था में रहते हैं। यद्यपि उस अवस्था में भी चैतन्य और पुन:रचना के लिए अवसर की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। भगवान देवों की प्रार्थना स्वीकार कर 23 तत्वों को संकलित करते हैं और फिर उसमें प्रविष्ट हो जाते हैं।

क्या है सृष्टि का क्रम
मैत्रेय मुनि विदुरजी को सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में बता रहे हैं। उसके अनुसार भगवान सृष्टि की उत्पत्ति के लिए एक विराट पुरूष की रचना करते हैं। विराट पुरूष प्राण, अपान, समान, और उदान, व्यान इन पांच वायु सहित नाग, कुर्म, कलकल, दह, धनंजय आदि तत्वों को प्रकट करता है। अपने कठिन तप के कारण भगवान इन प्राणियों की जीविका के लिए इनकी मुख, जिव्हा, नासिका, त्वचा, नेत्र, कर्ण, लिंग, गुदा, हस्तुपाद, अनुभूति और चित्त और इनके विषय क्रमश: वाणी, स्वाद, ध्यान, स्पर्श, दर्शन, श्रवण, वीर्य, मल त्याग, कर्मशक्ति, चिंतन, अनुभूति चेतना और फिर इनके देवता अग्नि, वरूण, अश्विनी कुमार, आदित्य, पवन, प्रजापति इंद्र लोकेश्वर आदि को उत्पन्न करते हैं।

विदुरजी ने मैत्रेयजी से कुछ प्रश्न किए। मैत्रेयजी ने उनसे कहा कि आपने जो प्रश्न पूछा है उनके उत्तर आगे आने वाली कथाओ में निहित है। मैत्रेयजी कहते हैं अब सृष्टि का क्रम सुनिए विदुरजी। ब्रह्माजी सर्वप्रथम तप, मोह आदि तामसिक वृत्तियों के उत्पन्न होने पर खिन्न हो गए। तब ब्रह्माजी ने विष्णुजी का ध्यान किया और दूसरी सृष्टि की रचना करने लगे। उनमें सनकादि आदि वीतराग ऋषि उत्पन्न हुए। ब्रह्माजी की भौंह से नील और लोहित वर्ण का एक बालक उत्पन्न हुआ। वह अपने जन्म के साथ ही निवास स्थान और नाम के लिए रोने लगा। उसके रूदन के कारण ही ब्रह्माजी ने उसका नाम रूद्र रख दिया। उसको उन्होंने प्रजा उत्पन्न करने का आदेश दिया। नील लोहित की जो संतती उत्पन्न हुई वह इतनी उग्र और भयंकर थी कि स्वयं ब्रह्माजी भयभीत रहने लगे। नील लोहित वन में चला गया।