शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

मानसिकता बदलनी होगी

सुमन शर्मा
स्त्री भले ही आसमान छू रही है, लेकिन उसके प्रति पुरुष का नजरिया आज भी बदला नहीं है, वह उसे उपभोग की वस्तु की ही तरह देखता है..

आज सुनीता विलियम्स दोबारा अनंत अंतरिक्ष की विराट उड़ान भरने की तैयारी में लगी हैं, दूसरी तरफ हमारी महिला खिलाड़ी शारीरिक उत्पीड़न की यातना सहती हैं। यह कैसी बराबरी हो रही है आज हमारे समाज में? आज जब स्त्री-पुरुष दोनों को बराबर अवसर मिल रहे हैं, और स्त्रियां कुशलता से उन्ही कामों को अंजाम दे रही हैं, जिन्हें पुरुष करते आ रहे हैं, तो फिर किसी महिला को क्यों प्रताड़ित होकर रहना चाहिए।
छोटी बच्चियों से लेकर स्कूल में पढ़ती बालिकाओं और कामकाजी महिलाओं के प्रति जिस तरह उनके रक्षक ही भक्षक बन रहे हैं, उसके पीछे क्या मानसिकता है, यह सोच का विषय है। मुझे तो इसमें सेक्सुअलिटी से ज्यादा पुरुष की वह पावर पॉलिटिक्स नज़र आती है, जो एक सामंती व्यवस्था में सदियों से चली आ रही है। हम आज भी उस सोच से बाहर नहीं आ पाए हैं।
मैं फ़ौज में रही हूं और दो वर्षो तक बतौर आइएमए इंस्ट्रक्टर बख़ूबी देश को अपनी सेवा देती रही हूं। आज मैं अंग्रेजी दैनिक डीएनए में डिफेंस की प्रिंसिपल जर्नलिस्ट हूं, तो मैंने अपना काफ़ी जीवन बतौर कामकाजी गुजरा है। मुझे भी क़दम-क़दम पर ऐसे मनचले लोगों का सामना करना पड़ा है, जो स्त्री को अपनी हवस पूरी करने का जरिया मानते हैं। लेकिन, मुझे जब ऐसी सिचुएशन का सामना करना पड़ा, तो मैंने तुरंत प्रतिकार किया।
मैंने उन घटनाओं को ‘जाने दो..’ की तर्ज पर अनदेखा नहीं किया। तुरंत संबंधित अथॉरिटी में शिकायत की और साफ़ कर दिया कि मैं एक प्रोफेशनल महिला हूं। यहां मैं अपनी क़ाबिलियत से एक डच्यूटी निभाने आई हूं, मुझे उसे उचित ढंग से करने दिया जाए। मेरे उन तत्काल निर्णयों से वे लोग एकदम सजग व्यवहार करने लगे थे, जो महिलाओं को हल्के अंदाज में लेते हैं।
मुझे लगता है कि हमारे देश में ही यह समस्या ज्यादा है। विदेश में भी सेक्स होता है, पर वहां यह परस्पर समझौते से होता है। वहां इसीलिए बलात्कार कम होते हैं। लेकिन हमारे यहां स्त्री की इच्छा को एकदम से सिरे से नकार, उसे सिर्फ़ उपभोग का एक सामान मानते हैं। इसी मानसिकता को बदलने की हमें कोशिश करनी है। बिल्कुल, मैं यह मानती हूं कि हमारे यहां कानून की स़ख्ती नहीं है।
अपराधी पूरे आत्मविश्वास के साथ ग़लत काम करता है, क्योंकि वह जानता है कि उसका कुछ नहीं होने वाला है। शहरों में या संपन्न लोगों की महिलाओं के साथ अगर ऐसा कुछ होता है, तो उसकी कहीं कोई सुनवाई हो भी जाती है, पर गांव-खेड़ों के दबंग और गुंडे लोग मनमानी करके साफ़ निकल जाते हैं। वहां तो कोई सुनवाई ही नहीं होती है, जबकि वहां यह दुष्कर्म होते रहते हैं।
तो मुझे लगता है कि एक सामंती समाज की जो एक मानसिकता है, उसे हमें अपनी जड़ों से ही बाहर निकालना होगा। तभी हम उन नारों को सही अंदाज में सबके सामने रख सकते हैं, जिनके तहत स्त्री-पुरुष की बराबरी की बातें हम करते हैं और करना चाहते हैं।
(मिग-35, एफ-16 और सुखोई उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला)

सामना करें
महिलाएं अन्याय का डटकर सामना करें और किसी भी बात को ‘जाने दो..’ की तर्ज पर अनदेखा न करें।