प्यार का हमारा यह सारा प्रकरण चल ही रहा था कि नीचे से हमारे मकान मालिक ने पूरे सीन में एंट्री की और मुझे कोने में ले जाकर बताया कि भैया, एक-दो दिन में कहीं और कमरा खोज लो, वहीं ये मज्मा जमाओ, भले ही इस महीने का किराया मत देना, लेकिन एक-दो दिन में निकल लेना।
प्रेम-प्रसंग के दौरान कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, इसका अंदाज तो सबको होगा, पर प्रेमिका के चयन के लिए कितनी क़वायद करनी पड़ती है, इसका भी एक दिलचस्प क़िस्सा है। मित्र कैसे-कैसे प्रस्ताव रखते हैं, सुंदरियों के गुणों पर कैसी चर्चाएं होती हैं, इत्यादि। लेकिन इस सारे चक्कर के बाद क्या होता है, ख़ुद पढ़ लीजिए..
अंतत: हमने प्यार करने की ठान ली। ठानने की देर थी कि चारों ओर दुंदुभियां बजने लगीं। आकाश मार्ग से पुष्पवर्षा का क्रम शुरू हो गया। नक्षत्र-सितारे तत्काल ही जगह बदलने लगे। कहीं किसी घर में किसी कोमलांगी ने धीरे से चेहरे से लट हटाकर हिश्श.. कहा। इन पारलौकिक घटनाओं के स्टॉक सीन के माध्यम से निष्कर्ष यह कि कहीं कोई महान घटना घट गई।
तो प्यार का संकल्प फाइनल होते ही मित्रनुमा सलाहकारों की व्यवस्था सुयोग्य अवसर जान उपस्थित होने लगी। तत्काल ही क़स्बे के उपलब्ध विकल्पों पर ग़ौर किया जाने लगा। भौगोलिक दूरी, वाहन-पेट्रोल के आर्थिक कारक, बाप-भाई के सामरिक-रणनीतिक आदि पहलुओं के आधार पर सच्चे प्यार की खोज शुरू हो गई।
पहले विकल्प अर्थात फूलकुमारी पर ग़ौर हुआ। भयंकर विमर्श के बाद पाया गया कि उसकी सुहानी शक्ल के आगे मैं एकदम ‘लालटेन’ सा दिखूंगा। एक ने तो इससे भी आगे बढ़कर भविष्यवाणी कर डाली। कहा- यह हमारे-उसके आगे फूलगोभी की सब्जी में बैंगन से लगेंगे।
जब उसे साइकल पर बिठाकर कहीं छोड़ने जाएंगे, तो लगेगा कि ड्राइवर मैमसाब को कहीं छोड़ने ले जा रहा है। हमने कुछ कहने की कोशिश की, तो जवाब मिला ‘अबे हम करवाएंगे तुम्हारा प्यार। तुम तो छिपकली के जैसे मुंह बंद करके दीवार से चिमटे बैठे रहो।’
साथ ही मित्र मंडली ने हमारी चौकीदारी के लिए एक की डच्यूटी लगा दी कि कहीं हम कोई नादानी न कर बैठें। हमारी इच्छा तो यह हो रही थी कि एक-एक को टांग से बांधकर साइकिल से तीन-तीन किलोमीटर तक घसीट दूं, फिर इन मोटे-तगड़े दोस्तों और मरियल सी अपनी साइकिल को देखकर हमने ख्याल त्यागा। हालांकि दूसरे विकल्प के रूप में फिर मीराबेन का नाम प्रस्तावित हुआ, जो भयंकर चीख-पुकार, छीछालेदर, देख लूंगानुमा धमकियों, कॉलर पर हाथ डालूंनुमा कुछ प्रयासों के बीच वीरगति को प्राप्त हुआ।
प्रस्ताव पर अंतिम टिप्पणी के रूप में घुटा-घुटा सा सुना गया कि ‘बेन’ से शादी करके उसका ‘भाई ’बनेगा क्या? इसी बीच दूसरा जोरदार तर्क भी मार्केट में आ गिरा कि मीराबेन पहले से ही आजाद भाई से कुछ याराना क़िस्म के ‘समझौते’ से अनुबंधित हैं, और चूंकि आजाद गुंडई प्रवृत्ति के आवारा क़िस्म की वृत्ति के ‘भाई’ हैं, अत: इस विकल्प में कुछ ठुकाई-पिटाई की अंतर्निहित परिस्थितियां उपस्थित हैं।
यदि इन विकल्पों को हल करने का प्रयास किया जाना है, तो वह सिर्फ़ मुझे ही करना होगा। मित्रवृंद इस सहकारी आयोजन में सहभागी नहीं बन पाएगा। अस्तु, उस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति का जेबी वीटो मानकर चर्चा न करने की सहमति बन गई।
इसके पश्चात अगले नाम के रूप में पुलिस लाइन वाले मित्र ने कमलाबाई का नाम आगे रखा। जिस पर ‘भितरघात-विश्वासघात-धोखेबाजी’ जैसे कई नयन संकेतों के मध्य प्रस्ताव के विश्लेषण के स्थान पर परिणाम सामने आया। हुआ यूं कि पूर्व में प्रस्तावक का प्रस्ताव ‘उन्होंने’ स्वीकार न कर किसी अन्य से पींगें बढ़ा ली थीं, जिसकेपरिणाम स्वरूप वे हमें बीच में डालकर मामला ‘त्रिकोणीय’ बनाना चाहते थे। अन्य मित्रों द्वारा उनकी अत्यंत भत्र्सना की गई, जिसे उन्होंने बेहद निस्पृह भाव से पीक के साथ नाली में उगल दिया।
मुंह पोंछ कर वे फिर प्रस्ताव मंडल में ‘ब्लैकलिस्ट’ होने की अनुभूति से परे ठसकर शामिल हो गए। मामला अब गंभीर था। पहले जो मित्र दबी-दबी सी आवाजों निकाल रहे थे, वे अब आवाजों में ग़जब की गहराई और मोटाई भरने लगे। मुंह को टेढ़ा-मेढ़ा सा बनाकर उन्होंने एक मिनट में चंपादेवी का नाम प्रस्तावित किया। फिर अगले तीन मिनट में वे उनकी निजी विशेषताएं, पांच मिनट तक उसकी आजाद ख्याली के क़िस्से, सात मिनट तक उसकी पारिवारिक स्थिति तथा घर के चारों ओर उपस्थित स्थैतिक विवरणों पर गए।
इन संपूर्ण क्रिया-कलापों के बाद वे इस बात पर आए कि यह जोड़ी भली-भांति उपयुक्त है। पारिस्थितिक आधार पर लफड़ा-रहित। सामरिक आधार पर निष्कंटक। स्वभावगत एक-दूजे के लिएनुमा और प्यार करने के लिए सर्वथा प्रस्तुतायमान है। अत: देर न की जाकर इसे सांसदों का वेतन बढ़ाने वाला प्रस्ताव मानकर तत्काल ध्वनिमत से स्वीकार कर लिया जाए। बल्कि सामूहिक रूप से बधाई प्रस्ताव भी पारित कर दिया जाए।
इससे पहले कि प्रस्ताव पर ध्वनिमत जैसा कुछ शुरू होता, ताक-झांक के एक्सपर्ट और दूसरों के घरों में लवलेटर फेंकने के लिए की जाने वाली कमांडो क़िस्म की कार्रवाई के विशेषज्ञ एक मित्र ने एकल सांसद पार्टी की तरह विरोध में मुंह खोल दिया। वे बोले कि उस लड़की को तो उन्होंने कल्लू किराने वाले को सौदे की लिस्ट के साथ लवलेटर देते देखा है। फिर वो लड़की रोज ही वहां से गोली-गट्टा, इमलियां-चने न जाने क्या-क्या उठाकर खाती है।
एक दिन तो कल्लू की नजर बचाकर उसके गल्ले में भी हाथ भी मार दिया था। उसके ख्याल तो इतने खुले हैं कि स्कूल के बस्ते तक में चॉक-डस्टर दूसरों के पेंसिल, मैडम का नाक पुंछा रूमाल तक भरकर ले आती है। तुम्हारी नजर बचाकर कभी किसी दूसरे के घर में कूद गई, तो कहीं के नहीं रहोगे। ख़ैर, इतने विकराल विवरण के बाद इस पर कहीं से सहमति के हाथ न उठ सके।
फिर इन्ही कमांडो क़िस्म के मित्र ने एक नाम बिना आसंदी की सहमति के उछाल दिया- ‘रानो कैसी रहेगी, कुछ पगली सी है, लेकिन उसके दिल में सबके लिए प्यार है। अभी परसों ही घर का पूरा खाना उठाकर बाहर कुत्तों को डाल आई थी। इतनी ईमानदार है कि गली से गुजरने वाले हर आदमी को जितना तेज पत्थर मारती है, अपने बाप पर भी उसी ऱफ्तार से फेंकती है। भोली तो इतनी है कि एक का दुख देखकर उसके साथ भागने तक को तैयार हो गई थी।’
फिर क्या हुआ पूछे जाने पर बताया गया कि बाद में वो लड़का बेवफ़ा निकला और उनके घर आने-जाने के क्रम में छोटी बहन को लेकर फ़रार हो गया था। जब हमने उन्हें बताया कि साले तुम हमारे दोस्त हो कि दुश्मन, तब उन्होंने शर्माते हुए जानकारी दी थी कि उसकी छोटी बहन को लेकर भगने वाले ‘देवतुल्य’ व्यक्ति वे ही हैं। वे तो उसका गण उतारना चाहते हैं, और फालतू की सारी चीजें ऐसे ही समय ही तो काम आती हैं।
उन्होंने बताया- तुम तो पुराने सामान टाइप के तो पड़े हो इसमें तुम्हारा भी भला है। जब मैंने जमकर प्रतिवाद जताया कि सारे टूटे-फूटे, जंग खाए पुराने सामानों को मुझे ही चैंपा जा रहा है, तब मंत्रणा की कार्य-प्रणाली में परिवर्तन दिखा।
एक उपसमिति का भी तत्काल गठन हो गया। फिर एक बार चीख-पुकार, दावे-प्रतिदावे, घूरने आदि का जोर गर्म हो गया। सारा प्रकरण चल ही रहा था कि नीचे से हमारे मकान मालिक ने पूरे सीन में एंट्री की और मुझे कोने में ले जाकर बताया कि भैया, एक-दो दिन में कहीं और कमरा खोज लो, वहीं ये मज्मा जमाओ, भले ही इस महीने का किराया मत देना, लेकिन एक-दो दिन में निकल लेना।
अब प्यार के विकल्प तलाशने की चिंता किराए का कमरा ढूंढ़ने में बदल गई। दो दिन पश्चात जो अंतिम मीटिंग हुई, उसमें बताया गया कि अभी तुम्हारा मकान नहीं मिला है, जब मिल जाएगा तब कमेटी दोबारा विकल्पों पर ग़ौर करेगी, तब तक तुम्हारे प्यार की ठानने का प्रण नीम-बेहोशी की अवस्था में ही रहेगा, समझे। सो, अब मैं उनके रहमो-करम पर हूं।
मकान मिलेगा तो फिर वहां मज्मा जमेगा, फिर खोज शुरू होगी। मेरा क्या, मैं तो उस क्षण को कोस रहा हूं, जिसमें मैंने क़स्बे में प्रेमिका की तलाश शुरू की थी और एक मकान, यानी एक अदद किराए के कमरे तक से बेदख़ल हो गया।
प्रेम-प्रसंग के दौरान कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, इसका अंदाज तो सबको होगा, पर प्रेमिका के चयन के लिए कितनी क़वायद करनी पड़ती है, इसका भी एक दिलचस्प क़िस्सा है। मित्र कैसे-कैसे प्रस्ताव रखते हैं, सुंदरियों के गुणों पर कैसी चर्चाएं होती हैं, इत्यादि। लेकिन इस सारे चक्कर के बाद क्या होता है, ख़ुद पढ़ लीजिए..
अंतत: हमने प्यार करने की ठान ली। ठानने की देर थी कि चारों ओर दुंदुभियां बजने लगीं। आकाश मार्ग से पुष्पवर्षा का क्रम शुरू हो गया। नक्षत्र-सितारे तत्काल ही जगह बदलने लगे। कहीं किसी घर में किसी कोमलांगी ने धीरे से चेहरे से लट हटाकर हिश्श.. कहा। इन पारलौकिक घटनाओं के स्टॉक सीन के माध्यम से निष्कर्ष यह कि कहीं कोई महान घटना घट गई।
तो प्यार का संकल्प फाइनल होते ही मित्रनुमा सलाहकारों की व्यवस्था सुयोग्य अवसर जान उपस्थित होने लगी। तत्काल ही क़स्बे के उपलब्ध विकल्पों पर ग़ौर किया जाने लगा। भौगोलिक दूरी, वाहन-पेट्रोल के आर्थिक कारक, बाप-भाई के सामरिक-रणनीतिक आदि पहलुओं के आधार पर सच्चे प्यार की खोज शुरू हो गई।
पहले विकल्प अर्थात फूलकुमारी पर ग़ौर हुआ। भयंकर विमर्श के बाद पाया गया कि उसकी सुहानी शक्ल के आगे मैं एकदम ‘लालटेन’ सा दिखूंगा। एक ने तो इससे भी आगे बढ़कर भविष्यवाणी कर डाली। कहा- यह हमारे-उसके आगे फूलगोभी की सब्जी में बैंगन से लगेंगे।
जब उसे साइकल पर बिठाकर कहीं छोड़ने जाएंगे, तो लगेगा कि ड्राइवर मैमसाब को कहीं छोड़ने ले जा रहा है। हमने कुछ कहने की कोशिश की, तो जवाब मिला ‘अबे हम करवाएंगे तुम्हारा प्यार। तुम तो छिपकली के जैसे मुंह बंद करके दीवार से चिमटे बैठे रहो।’
साथ ही मित्र मंडली ने हमारी चौकीदारी के लिए एक की डच्यूटी लगा दी कि कहीं हम कोई नादानी न कर बैठें। हमारी इच्छा तो यह हो रही थी कि एक-एक को टांग से बांधकर साइकिल से तीन-तीन किलोमीटर तक घसीट दूं, फिर इन मोटे-तगड़े दोस्तों और मरियल सी अपनी साइकिल को देखकर हमने ख्याल त्यागा। हालांकि दूसरे विकल्प के रूप में फिर मीराबेन का नाम प्रस्तावित हुआ, जो भयंकर चीख-पुकार, छीछालेदर, देख लूंगानुमा धमकियों, कॉलर पर हाथ डालूंनुमा कुछ प्रयासों के बीच वीरगति को प्राप्त हुआ।
प्रस्ताव पर अंतिम टिप्पणी के रूप में घुटा-घुटा सा सुना गया कि ‘बेन’ से शादी करके उसका ‘भाई ’बनेगा क्या? इसी बीच दूसरा जोरदार तर्क भी मार्केट में आ गिरा कि मीराबेन पहले से ही आजाद भाई से कुछ याराना क़िस्म के ‘समझौते’ से अनुबंधित हैं, और चूंकि आजाद गुंडई प्रवृत्ति के आवारा क़िस्म की वृत्ति के ‘भाई’ हैं, अत: इस विकल्प में कुछ ठुकाई-पिटाई की अंतर्निहित परिस्थितियां उपस्थित हैं।
यदि इन विकल्पों को हल करने का प्रयास किया जाना है, तो वह सिर्फ़ मुझे ही करना होगा। मित्रवृंद इस सहकारी आयोजन में सहभागी नहीं बन पाएगा। अस्तु, उस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति का जेबी वीटो मानकर चर्चा न करने की सहमति बन गई।
इसके पश्चात अगले नाम के रूप में पुलिस लाइन वाले मित्र ने कमलाबाई का नाम आगे रखा। जिस पर ‘भितरघात-विश्वासघात-धोखेबाजी’ जैसे कई नयन संकेतों के मध्य प्रस्ताव के विश्लेषण के स्थान पर परिणाम सामने आया। हुआ यूं कि पूर्व में प्रस्तावक का प्रस्ताव ‘उन्होंने’ स्वीकार न कर किसी अन्य से पींगें बढ़ा ली थीं, जिसकेपरिणाम स्वरूप वे हमें बीच में डालकर मामला ‘त्रिकोणीय’ बनाना चाहते थे। अन्य मित्रों द्वारा उनकी अत्यंत भत्र्सना की गई, जिसे उन्होंने बेहद निस्पृह भाव से पीक के साथ नाली में उगल दिया।
मुंह पोंछ कर वे फिर प्रस्ताव मंडल में ‘ब्लैकलिस्ट’ होने की अनुभूति से परे ठसकर शामिल हो गए। मामला अब गंभीर था। पहले जो मित्र दबी-दबी सी आवाजों निकाल रहे थे, वे अब आवाजों में ग़जब की गहराई और मोटाई भरने लगे। मुंह को टेढ़ा-मेढ़ा सा बनाकर उन्होंने एक मिनट में चंपादेवी का नाम प्रस्तावित किया। फिर अगले तीन मिनट में वे उनकी निजी विशेषताएं, पांच मिनट तक उसकी आजाद ख्याली के क़िस्से, सात मिनट तक उसकी पारिवारिक स्थिति तथा घर के चारों ओर उपस्थित स्थैतिक विवरणों पर गए।
इन संपूर्ण क्रिया-कलापों के बाद वे इस बात पर आए कि यह जोड़ी भली-भांति उपयुक्त है। पारिस्थितिक आधार पर लफड़ा-रहित। सामरिक आधार पर निष्कंटक। स्वभावगत एक-दूजे के लिएनुमा और प्यार करने के लिए सर्वथा प्रस्तुतायमान है। अत: देर न की जाकर इसे सांसदों का वेतन बढ़ाने वाला प्रस्ताव मानकर तत्काल ध्वनिमत से स्वीकार कर लिया जाए। बल्कि सामूहिक रूप से बधाई प्रस्ताव भी पारित कर दिया जाए।
इससे पहले कि प्रस्ताव पर ध्वनिमत जैसा कुछ शुरू होता, ताक-झांक के एक्सपर्ट और दूसरों के घरों में लवलेटर फेंकने के लिए की जाने वाली कमांडो क़िस्म की कार्रवाई के विशेषज्ञ एक मित्र ने एकल सांसद पार्टी की तरह विरोध में मुंह खोल दिया। वे बोले कि उस लड़की को तो उन्होंने कल्लू किराने वाले को सौदे की लिस्ट के साथ लवलेटर देते देखा है। फिर वो लड़की रोज ही वहां से गोली-गट्टा, इमलियां-चने न जाने क्या-क्या उठाकर खाती है।
एक दिन तो कल्लू की नजर बचाकर उसके गल्ले में भी हाथ भी मार दिया था। उसके ख्याल तो इतने खुले हैं कि स्कूल के बस्ते तक में चॉक-डस्टर दूसरों के पेंसिल, मैडम का नाक पुंछा रूमाल तक भरकर ले आती है। तुम्हारी नजर बचाकर कभी किसी दूसरे के घर में कूद गई, तो कहीं के नहीं रहोगे। ख़ैर, इतने विकराल विवरण के बाद इस पर कहीं से सहमति के हाथ न उठ सके।
फिर इन्ही कमांडो क़िस्म के मित्र ने एक नाम बिना आसंदी की सहमति के उछाल दिया- ‘रानो कैसी रहेगी, कुछ पगली सी है, लेकिन उसके दिल में सबके लिए प्यार है। अभी परसों ही घर का पूरा खाना उठाकर बाहर कुत्तों को डाल आई थी। इतनी ईमानदार है कि गली से गुजरने वाले हर आदमी को जितना तेज पत्थर मारती है, अपने बाप पर भी उसी ऱफ्तार से फेंकती है। भोली तो इतनी है कि एक का दुख देखकर उसके साथ भागने तक को तैयार हो गई थी।’
फिर क्या हुआ पूछे जाने पर बताया गया कि बाद में वो लड़का बेवफ़ा निकला और उनके घर आने-जाने के क्रम में छोटी बहन को लेकर फ़रार हो गया था। जब हमने उन्हें बताया कि साले तुम हमारे दोस्त हो कि दुश्मन, तब उन्होंने शर्माते हुए जानकारी दी थी कि उसकी छोटी बहन को लेकर भगने वाले ‘देवतुल्य’ व्यक्ति वे ही हैं। वे तो उसका गण उतारना चाहते हैं, और फालतू की सारी चीजें ऐसे ही समय ही तो काम आती हैं।
उन्होंने बताया- तुम तो पुराने सामान टाइप के तो पड़े हो इसमें तुम्हारा भी भला है। जब मैंने जमकर प्रतिवाद जताया कि सारे टूटे-फूटे, जंग खाए पुराने सामानों को मुझे ही चैंपा जा रहा है, तब मंत्रणा की कार्य-प्रणाली में परिवर्तन दिखा।
एक उपसमिति का भी तत्काल गठन हो गया। फिर एक बार चीख-पुकार, दावे-प्रतिदावे, घूरने आदि का जोर गर्म हो गया। सारा प्रकरण चल ही रहा था कि नीचे से हमारे मकान मालिक ने पूरे सीन में एंट्री की और मुझे कोने में ले जाकर बताया कि भैया, एक-दो दिन में कहीं और कमरा खोज लो, वहीं ये मज्मा जमाओ, भले ही इस महीने का किराया मत देना, लेकिन एक-दो दिन में निकल लेना।
अब प्यार के विकल्प तलाशने की चिंता किराए का कमरा ढूंढ़ने में बदल गई। दो दिन पश्चात जो अंतिम मीटिंग हुई, उसमें बताया गया कि अभी तुम्हारा मकान नहीं मिला है, जब मिल जाएगा तब कमेटी दोबारा विकल्पों पर ग़ौर करेगी, तब तक तुम्हारे प्यार की ठानने का प्रण नीम-बेहोशी की अवस्था में ही रहेगा, समझे। सो, अब मैं उनके रहमो-करम पर हूं।
मकान मिलेगा तो फिर वहां मज्मा जमेगा, फिर खोज शुरू होगी। मेरा क्या, मैं तो उस क्षण को कोस रहा हूं, जिसमें मैंने क़स्बे में प्रेमिका की तलाश शुरू की थी और एक मकान, यानी एक अदद किराए के कमरे तक से बेदख़ल हो गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें