एक सुंदर कस्बा था। नाम था सुंदरपुर। कस्बे से थोड़ी दूर की पहाड़ी पर ठाकुरजी का मंदिर था। मंदिर में ठाकुरजी की मनमोहक मूर्ति थी। मंदिर में पूजन और देखभाल के लिए एक बूढ़ा पुजारी मंदिर के पास ही रहता था। इस बूढ़े पुजारी का नाम धापू बाबा था। धापू बाबा अब बुजुर्ग हो चले थे और उनकी आँखों की रोशनी जाती रही। वे मन की आँखों से ही अपने ठाकुरजी को निहारते थे।
धापू बाबा भले व्यक्ति थे। ठाकुरजी के दर्शन के लिए आने वाले लोगों को वे अच्छी बातें कहते। अच्छी सलाह देते। इसी कस्बे में दो सहेलियाँ भी रहती थीं - खुशबू और पंखुरी। वे पूजन का सामान तैयार करने में धापू बाबा की मदद करती थीं। दोनों धापू बाबा से तरह-तरह की बातें करतीं और जाते-जाते आशीर्वाद लेकर जातीं।
दोनों ही सहेलियों को मंदिर जाना बहुत अच्छा लगता था इसलिए वे किसी भी सुबह चूकती नहीं थीं। कस्बे से मंदिर तक जो रास्ता जाता था वह भी सुंदर नगर की तरह ही सुंदर था। उस पर तरह-तरह की झाड़ियाँ और पेड़ थे। इन झाड़ियों में तरह-तरह के पंछी रहते थे और भीनी-भीनी खुशबू वाले हजारों फूल खिलते थे। खुशबू और पंखुरी को इस रास्ते से अठखेलियाँ करतेहुए जाना बहुत भाता था।
सुबह-सवेरे वे दोनों इस रास्ते से गुजरतीं तो कबूतरों की नींद इन्हीं लड़कियों की आवाज से खुलती थी और फिर उनकी गुटर-गूँ सुनाई देने लगती। मानो कह रहे हों कि अब हम जाग गए हैं। इन लड़कियों की आहट पर एक गिलहरी झाड़ियों से दौड़कर निकलती और जल्दी से पेड़ पर चढ़ जाती। चिड़ियाओं को भी इन बच्चियों का आपस में बात करते हुए रास्ते से गुजरना बहुत लुभाता था। रास्ते में पड़ने वाले इन सभी की दोनों सहेलियों से जान-पहचान-सी हो गई थी।
इसलिए इन दोनों को देखते ही वे जोर-जोर से शोर मचाने लगते थे। मानो सुबह का नमस्कार कह रहे हों। यह सबकुछ सुनकर दोनों सहेलियों के चेहरे पर मुस्कान खिल जाती थी। रास्ते में रंग-बिरंगे फूल हवा में झूलते रहते थे। यहाँ से वहाँ तक तरह-तरह के फूल। दोनों मंदिर जाते-जाते कुछ फूल चुनकर अपनी झोली में भल लेतीं ताकि मंदिर में इन फूलों से ठाकुरजी का श्रृंगार कर सकें। धापू बाबा को अच्छी सहायक मिली थीं। नजर कमजोर होने के कारण उन्हें फूलों के रंग तो दिखलाई नहीं पड़ते थे, पर फूलों को हाथ में लेते ही उसकी खुशबू से वे अंदाज लगा लेते थे कि आज ठाकुरजी के लिए कौन-से फूल आए हैं। फूल मंदिर पहुँचने के बाद ठाकुर जी का श्रृंगार करते धापू बाबा दोनों बच्चियों से बात भी करते जाते।
एक दिन उन्होंने बच्चियों से कहा कि अगर तुम ठाकुरजी को चमेली के फूल चढ़ाओ तो वे तुम्हारे मन को शांति देंगे। और आज तुम जो गुलाब तोड़कर लाई हो उनके बदले ठाकुरजी तुम्हें प्रेम और खुशी देंगे।
एक दिन खुशबू ने पूछा कि पुजारी जी अगर हम ठाकुरजी को कमल का फूल चढ़ाएँगे तो हमें क्या मिलेगा? पुजारी जी बोले - कमल तो ठाकुरजी को सबसे प्रिय हैं। अगर तुम कमल का फूल लाती हो तो यह समझो भगवान सबसे ज्यादा खुश होंगे।
खुशबू यह सुनकर खुश हो गई। खुशी में नाचने लगी। पंखुरी को कुछ समझ नहीं आया। उसने कहा - हमारे आसपास तो कहीं भी कमल का फूल नहीं उगता है फिर तुम खुश क्यों हो रही हो? खुशबू थोड़ी देर चुप रही फिर बोली कि पहाड़ी के पार जो तालाब है उसमें मैंने एक कमल की कली देखी है।
कल तक वह कली फूल बन जाएगी। कल सुबह मैं वहाँ जाकर उसे तोड़ लाऊँगी। पर वह तालाब तो मेरे बाबा का है, पंखुरी ने कहा। खुशबू को मालूम नहीं था कि पंखुरी ऐसा जवाब देगी। वह थोड़ा उदास हो गई और बोली - हो सकता है, पर वहाँ तो कोई भी नहीं जाता। कमल वहाँ खिलते रहते हैं और फिर अपने आप वहीं झर भी जाते हैं। मैंने ही कमल वाली जगह खोजी है इसलिए वह कमल का फूल तो मेरा हुआ न।
पंखुरी बोली - ऐसे कैसे तुम्हारा हुआ? वह तालाब तो मेरे बाबा का है। खुशबू बोली - तो क्या?
पंखुरी ने कहा - तो इसका मतलब साफ है कि उस कमल पर मेरा ही अधिकार बनता है।
इस बातचीत के बाद दोनों के बीच अनबन हो गई और पूरे रास्ते आपस में बिना बात किए दोनों घर आ गईं। उस दिन रास्ते में चिड़िया और कबूतर भी उदास थे।
अगले दिन जैसे ही सूरज उगा तो खुशबू पहाड़ी पार करने के लिए निकली। उसने देखा आसमान में नारंगी सूरज दिखलाई पड़ रहा है। हवा भी ठंडी है। पहाड़ी पार करके तालाब तक पहुँचकर उसे बहुत खुशी हुई पर यहाँ उसे अपनी सहेली पंखुरी की याद आई और वह उदास हो गई।
तभी उसके दिल की धड़कन तेज हो गई जब उसने देखा कि पंखुरी तालाब से कमल का फूल हाथ में लेकर चली आ रही है। पंखुरी को देखकर खुशबू झाड़ी के पीछे छिप गई। पंखुरी जल्दी-जल्दी पहाड़ी चढ़ी और मंदिर की तरफ बढ़ी। यह सब देखकर खुशबू की आँखों में आँसू आ गए। खुशबू को बहुत दुख हुआ कि उसकी सबसे प्यारी सहेली ने उसके साथ छल किया।
इधर पंखुरी सीधे मंदिर पहुँची। धापू बाबा स्नान करके लौट रहे थे और अब पूजा करने जा रहे थे। किसी के आने की आवाज सुनकर उन्होंने पूछा - कौन है?
मैं कमल का फूल लेकर आई हूँ बाबा। आवाज आई।
बहुत अच्छे, मैं तुम्हारे नाम से ही यह फूल भगवान को चढ़ाऊँगा। पर मैं तुम्हें एकदम पहचान नहीं पा रहा हूँ, तुम खुशबू ही हो ना?
पंखुरी ने कोई जवाब नहीं दिया। खुशबू मंदिर के बगीचे की झाड़ियों के पीछे छिपकर सबकुछ सुन रही थी। उसने जब धापू बाबा के मुँह से अपना नाम सुना तो वह रोने लगी।
इधर पंखुरी ने कुछ जवाब नहीं दिया।
तुम खुशबू ही होना? पुजारी बाबा ने फिर पूछा।
अचानक पंखुरी ने जवाब दिया- हाँ बाबा। यह कमल खुशबू के नाम से ही भगवान जी को चढ़ाइएगा और कहिएगा कि वे खुशबू को ढेर सारा प्यार और खुशियाँ दें।
झाड़ियों के पीछे छिपी खुशबू ने जब यह सुना तो वह चिल्लाकर बोली - रुको बाबा, फूल पंखुरी लेकर आई है।
पंखुरी बोली - पर फूल वाली जगह का पता तो तुमने ही लगाया, मैं तो बस तोड़कर लाई। इसलिए ठाकुरजी को फूल तुम्हारे नाम से चढ़ाना चाहिए।
यह सुनकर बाबा बोले - अरे, अरे प्यारी बच्चियों! मेरी बात सुनो। इसमें झगड़ने की क्या बात है। जब मैं यह फूल ठाकुरजी को चढ़ाऊँगा तो तुम दोनों का नाम ले दूँगा। भगवान जी तुम दोनों को अपना आशीर्वाद और प्यार देंगे। वे बहुत दयालु हैं। वे तुम दोनों से प्रसन्न होंगे। ईश्वर की कृपा तुम पर है और तुम दोनों बहुत अच्छी लड़कियाँ हो।
बातचीत खत्म हुई और पंखुरी और खुशबू मंदिर से बाहर आ गईं। दोनों एक-दूसरे की तरफ देखकर मुस्कराईं। जो मुस्कान रूठ गई थी वह फिर से दोनों के चेहरों पर थी। दोनों को मन में बहुत अच्छा लग रहा था। वे दोनों फिर से उसी फूलों भरे रास्ते पर उछलते-कूदते, नाचते-गाते घर लौट रही थीं। खुशी के इस प्रसंग में कबूतरों ने गुटर-गूँ की और चिड़िया ने एक गीत गाया।
दोनों सहेलियों को लगा कि चिड़िया उनसे कह रही है कि - तुम दोनों ने मेरी ही तरह फ्रॉक पहन रखी है और अब तुम मेरी ही तरह उड़ने को तैयार हो।'
उल्लू और भूतों के सरदार का सपना
जंगल में एक पुराना बरगद था। इस बरगद पर चिल्लू उल्लू का घर था। पेड़ के नीचे झनकू हाथी रहता था। दोनों के बीच इसी कारण से अच्छी दोस्ती हो गई थी। झनकू दिनभर जंगल में उधम करता। गन्ने खाता और सूँड भर-भर नहाता। चिल्लू भी दिनभर सोता। रात को जब झनकू हाथी पेड़ के नीचे लौटता तो इन दोनों दोस्तों के बीच अच्छी बातचीत होती।
एक शाम झनकू हाथी घूमता-घामता आ रहा था कि एक जगह उसे कुछ भूत गपशप करते हुए दिखाई दिए। वे लोगों को डराने के लिए डरावनी योजनाएँ बना रहे थे। तभी भूतों के सरदार की नजर झनकू हाथी पर पड़ी। वह चिल्लाया- वह रहा..! वह रहा..! पकड़ो उसे।
कुछ भूत झनकू को पकड़ने दौड़े और कुछ ने पूछा- यह कौन है सरदार?
सरदार बोला- गई रात मैंने एक सपना देखा कि मैंने एक हाथी को पूरा खा लिया। यह हाथी बिलकुल मेरे सपने के हाथी से मिलता-जुलता है। आज मुझे यकीन हो गया कि सपने सच्चे होते हैं और आज मैं अपने सपने की बात को पूरा करूँगा।
भूतों ने हाथी को पकड़ लिया। झनकू हाथी का पाला भूतों से पहली बार पड़ा था इसलिए वह बहुत डर गया और कुछ नहीं कह पाया। हाथी ने जब देखा कि भूतों का सरदार और उसकी पत्नी उसे खाने के लिए उसकी तरफ आ रहे हैं तो उसके हाथ-पैर धूजने लगे।
तभी हाथी का मित्र चिल्लू चिल्लाता हुआ आ पहुँचा- यही है... यही है...। अरे बिलकुल यही है...और आकर अपने मित्र हाथी के सिर पर बैठ गया। चिल्लू की चेतावनी सुनकर भूतों का सरदार ठिठक गया। सरदार ने पूछा - अरे, उल्लू तुम किसके बारे में कह रहे हो और क्या कहना चाहते हो?
उल्लू बोला - मैं भूतों की रानी के बारे में कह रहा हूँ। कल रात मैंने सपने में देखा कि एक भूतों की रानी से मेरी शादी हो गई और आपकी यह रानी मेरे सपनों की रानी से बिल्कुल मिलती-जुलती है, इसलिए अब मैं इससे विवाह करके अपने सपने को पूरा करूँगा।
भूतों की रानी ने जैसे ही यह सुना - वह जोर से चिल्लाई, मैं किसी उल्लू से शादी नहीं करूँगी। भूतों का सरदार - घबराओ मत। रानी यह तो उल्लू है और उल्लूओं जैसी बात करता है। सपने भी कहीं सच होते हैं। देखो मैंने सपने में देखा था कि मैंने एक हाथी को खा लिया था, पर अब मैं इसे जाने दे रहा हूँ।
इतना सुनना था कि झनकू हाथी भाग निकला और फिर चिल्लू ने भूतों के सरदार से कहा कि - 'चलो, तुम्हारा सपना सच नहीं है, इसका मतलब कि मेरा भी सपना सच नहीं है। ऐसे सपने को भूल जाना ही अच्छा है। सरदार - तुम दिखते उल्लू हो पर बातें तो समझदारी की करते हो।
उल्लू - ठीक है तो मैं चलता हूँ।
बिल्लू उड़कर बरगद के नीचे पहुँचा। यहाँ पहुँचकर चिल्लू खूब हँसा। आखिर आज उन्होंने भूतों को बेवकूफ जो बना दिया था। हाथी ने जान बचाने के लिए अपने मित्र का शुक्रिया किया। इस पर चिल्लू बोला - मित्रता में शुक्रिया की जरूरत नहीं होती मेरे दोस्त। हाथी बोला - तुम मेरे सच्चे साथी हो। उल्लू इस पर मुस्कुराया भर।
(वेबदुनिया.कॉम से साभार)
धापू बाबा भले व्यक्ति थे। ठाकुरजी के दर्शन के लिए आने वाले लोगों को वे अच्छी बातें कहते। अच्छी सलाह देते। इसी कस्बे में दो सहेलियाँ भी रहती थीं - खुशबू और पंखुरी। वे पूजन का सामान तैयार करने में धापू बाबा की मदद करती थीं। दोनों धापू बाबा से तरह-तरह की बातें करतीं और जाते-जाते आशीर्वाद लेकर जातीं।
दोनों ही सहेलियों को मंदिर जाना बहुत अच्छा लगता था इसलिए वे किसी भी सुबह चूकती नहीं थीं। कस्बे से मंदिर तक जो रास्ता जाता था वह भी सुंदर नगर की तरह ही सुंदर था। उस पर तरह-तरह की झाड़ियाँ और पेड़ थे। इन झाड़ियों में तरह-तरह के पंछी रहते थे और भीनी-भीनी खुशबू वाले हजारों फूल खिलते थे। खुशबू और पंखुरी को इस रास्ते से अठखेलियाँ करतेहुए जाना बहुत भाता था।
सुबह-सवेरे वे दोनों इस रास्ते से गुजरतीं तो कबूतरों की नींद इन्हीं लड़कियों की आवाज से खुलती थी और फिर उनकी गुटर-गूँ सुनाई देने लगती। मानो कह रहे हों कि अब हम जाग गए हैं। इन लड़कियों की आहट पर एक गिलहरी झाड़ियों से दौड़कर निकलती और जल्दी से पेड़ पर चढ़ जाती। चिड़ियाओं को भी इन बच्चियों का आपस में बात करते हुए रास्ते से गुजरना बहुत लुभाता था। रास्ते में पड़ने वाले इन सभी की दोनों सहेलियों से जान-पहचान-सी हो गई थी।
इसलिए इन दोनों को देखते ही वे जोर-जोर से शोर मचाने लगते थे। मानो सुबह का नमस्कार कह रहे हों। यह सबकुछ सुनकर दोनों सहेलियों के चेहरे पर मुस्कान खिल जाती थी। रास्ते में रंग-बिरंगे फूल हवा में झूलते रहते थे। यहाँ से वहाँ तक तरह-तरह के फूल। दोनों मंदिर जाते-जाते कुछ फूल चुनकर अपनी झोली में भल लेतीं ताकि मंदिर में इन फूलों से ठाकुरजी का श्रृंगार कर सकें। धापू बाबा को अच्छी सहायक मिली थीं। नजर कमजोर होने के कारण उन्हें फूलों के रंग तो दिखलाई नहीं पड़ते थे, पर फूलों को हाथ में लेते ही उसकी खुशबू से वे अंदाज लगा लेते थे कि आज ठाकुरजी के लिए कौन-से फूल आए हैं। फूल मंदिर पहुँचने के बाद ठाकुर जी का श्रृंगार करते धापू बाबा दोनों बच्चियों से बात भी करते जाते।
एक दिन उन्होंने बच्चियों से कहा कि अगर तुम ठाकुरजी को चमेली के फूल चढ़ाओ तो वे तुम्हारे मन को शांति देंगे। और आज तुम जो गुलाब तोड़कर लाई हो उनके बदले ठाकुरजी तुम्हें प्रेम और खुशी देंगे।
एक दिन खुशबू ने पूछा कि पुजारी जी अगर हम ठाकुरजी को कमल का फूल चढ़ाएँगे तो हमें क्या मिलेगा? पुजारी जी बोले - कमल तो ठाकुरजी को सबसे प्रिय हैं। अगर तुम कमल का फूल लाती हो तो यह समझो भगवान सबसे ज्यादा खुश होंगे।
खुशबू यह सुनकर खुश हो गई। खुशी में नाचने लगी। पंखुरी को कुछ समझ नहीं आया। उसने कहा - हमारे आसपास तो कहीं भी कमल का फूल नहीं उगता है फिर तुम खुश क्यों हो रही हो? खुशबू थोड़ी देर चुप रही फिर बोली कि पहाड़ी के पार जो तालाब है उसमें मैंने एक कमल की कली देखी है।
कल तक वह कली फूल बन जाएगी। कल सुबह मैं वहाँ जाकर उसे तोड़ लाऊँगी। पर वह तालाब तो मेरे बाबा का है, पंखुरी ने कहा। खुशबू को मालूम नहीं था कि पंखुरी ऐसा जवाब देगी। वह थोड़ा उदास हो गई और बोली - हो सकता है, पर वहाँ तो कोई भी नहीं जाता। कमल वहाँ खिलते रहते हैं और फिर अपने आप वहीं झर भी जाते हैं। मैंने ही कमल वाली जगह खोजी है इसलिए वह कमल का फूल तो मेरा हुआ न।
पंखुरी बोली - ऐसे कैसे तुम्हारा हुआ? वह तालाब तो मेरे बाबा का है। खुशबू बोली - तो क्या?
पंखुरी ने कहा - तो इसका मतलब साफ है कि उस कमल पर मेरा ही अधिकार बनता है।
इस बातचीत के बाद दोनों के बीच अनबन हो गई और पूरे रास्ते आपस में बिना बात किए दोनों घर आ गईं। उस दिन रास्ते में चिड़िया और कबूतर भी उदास थे।
अगले दिन जैसे ही सूरज उगा तो खुशबू पहाड़ी पार करने के लिए निकली। उसने देखा आसमान में नारंगी सूरज दिखलाई पड़ रहा है। हवा भी ठंडी है। पहाड़ी पार करके तालाब तक पहुँचकर उसे बहुत खुशी हुई पर यहाँ उसे अपनी सहेली पंखुरी की याद आई और वह उदास हो गई।
तभी उसके दिल की धड़कन तेज हो गई जब उसने देखा कि पंखुरी तालाब से कमल का फूल हाथ में लेकर चली आ रही है। पंखुरी को देखकर खुशबू झाड़ी के पीछे छिप गई। पंखुरी जल्दी-जल्दी पहाड़ी चढ़ी और मंदिर की तरफ बढ़ी। यह सब देखकर खुशबू की आँखों में आँसू आ गए। खुशबू को बहुत दुख हुआ कि उसकी सबसे प्यारी सहेली ने उसके साथ छल किया।
इधर पंखुरी सीधे मंदिर पहुँची। धापू बाबा स्नान करके लौट रहे थे और अब पूजा करने जा रहे थे। किसी के आने की आवाज सुनकर उन्होंने पूछा - कौन है?
मैं कमल का फूल लेकर आई हूँ बाबा। आवाज आई।
बहुत अच्छे, मैं तुम्हारे नाम से ही यह फूल भगवान को चढ़ाऊँगा। पर मैं तुम्हें एकदम पहचान नहीं पा रहा हूँ, तुम खुशबू ही हो ना?
पंखुरी ने कोई जवाब नहीं दिया। खुशबू मंदिर के बगीचे की झाड़ियों के पीछे छिपकर सबकुछ सुन रही थी। उसने जब धापू बाबा के मुँह से अपना नाम सुना तो वह रोने लगी।
इधर पंखुरी ने कुछ जवाब नहीं दिया।
तुम खुशबू ही होना? पुजारी बाबा ने फिर पूछा।
अचानक पंखुरी ने जवाब दिया- हाँ बाबा। यह कमल खुशबू के नाम से ही भगवान जी को चढ़ाइएगा और कहिएगा कि वे खुशबू को ढेर सारा प्यार और खुशियाँ दें।
झाड़ियों के पीछे छिपी खुशबू ने जब यह सुना तो वह चिल्लाकर बोली - रुको बाबा, फूल पंखुरी लेकर आई है।
पंखुरी बोली - पर फूल वाली जगह का पता तो तुमने ही लगाया, मैं तो बस तोड़कर लाई। इसलिए ठाकुरजी को फूल तुम्हारे नाम से चढ़ाना चाहिए।
यह सुनकर बाबा बोले - अरे, अरे प्यारी बच्चियों! मेरी बात सुनो। इसमें झगड़ने की क्या बात है। जब मैं यह फूल ठाकुरजी को चढ़ाऊँगा तो तुम दोनों का नाम ले दूँगा। भगवान जी तुम दोनों को अपना आशीर्वाद और प्यार देंगे। वे बहुत दयालु हैं। वे तुम दोनों से प्रसन्न होंगे। ईश्वर की कृपा तुम पर है और तुम दोनों बहुत अच्छी लड़कियाँ हो।
बातचीत खत्म हुई और पंखुरी और खुशबू मंदिर से बाहर आ गईं। दोनों एक-दूसरे की तरफ देखकर मुस्कराईं। जो मुस्कान रूठ गई थी वह फिर से दोनों के चेहरों पर थी। दोनों को मन में बहुत अच्छा लग रहा था। वे दोनों फिर से उसी फूलों भरे रास्ते पर उछलते-कूदते, नाचते-गाते घर लौट रही थीं। खुशी के इस प्रसंग में कबूतरों ने गुटर-गूँ की और चिड़िया ने एक गीत गाया।
दोनों सहेलियों को लगा कि चिड़िया उनसे कह रही है कि - तुम दोनों ने मेरी ही तरह फ्रॉक पहन रखी है और अब तुम मेरी ही तरह उड़ने को तैयार हो।'
उल्लू और भूतों के सरदार का सपना
जंगल में एक पुराना बरगद था। इस बरगद पर चिल्लू उल्लू का घर था। पेड़ के नीचे झनकू हाथी रहता था। दोनों के बीच इसी कारण से अच्छी दोस्ती हो गई थी। झनकू दिनभर जंगल में उधम करता। गन्ने खाता और सूँड भर-भर नहाता। चिल्लू भी दिनभर सोता। रात को जब झनकू हाथी पेड़ के नीचे लौटता तो इन दोनों दोस्तों के बीच अच्छी बातचीत होती।
एक शाम झनकू हाथी घूमता-घामता आ रहा था कि एक जगह उसे कुछ भूत गपशप करते हुए दिखाई दिए। वे लोगों को डराने के लिए डरावनी योजनाएँ बना रहे थे। तभी भूतों के सरदार की नजर झनकू हाथी पर पड़ी। वह चिल्लाया- वह रहा..! वह रहा..! पकड़ो उसे।
कुछ भूत झनकू को पकड़ने दौड़े और कुछ ने पूछा- यह कौन है सरदार?
सरदार बोला- गई रात मैंने एक सपना देखा कि मैंने एक हाथी को पूरा खा लिया। यह हाथी बिलकुल मेरे सपने के हाथी से मिलता-जुलता है। आज मुझे यकीन हो गया कि सपने सच्चे होते हैं और आज मैं अपने सपने की बात को पूरा करूँगा।
भूतों ने हाथी को पकड़ लिया। झनकू हाथी का पाला भूतों से पहली बार पड़ा था इसलिए वह बहुत डर गया और कुछ नहीं कह पाया। हाथी ने जब देखा कि भूतों का सरदार और उसकी पत्नी उसे खाने के लिए उसकी तरफ आ रहे हैं तो उसके हाथ-पैर धूजने लगे।
तभी हाथी का मित्र चिल्लू चिल्लाता हुआ आ पहुँचा- यही है... यही है...। अरे बिलकुल यही है...और आकर अपने मित्र हाथी के सिर पर बैठ गया। चिल्लू की चेतावनी सुनकर भूतों का सरदार ठिठक गया। सरदार ने पूछा - अरे, उल्लू तुम किसके बारे में कह रहे हो और क्या कहना चाहते हो?
उल्लू बोला - मैं भूतों की रानी के बारे में कह रहा हूँ। कल रात मैंने सपने में देखा कि एक भूतों की रानी से मेरी शादी हो गई और आपकी यह रानी मेरे सपनों की रानी से बिल्कुल मिलती-जुलती है, इसलिए अब मैं इससे विवाह करके अपने सपने को पूरा करूँगा।
भूतों की रानी ने जैसे ही यह सुना - वह जोर से चिल्लाई, मैं किसी उल्लू से शादी नहीं करूँगी। भूतों का सरदार - घबराओ मत। रानी यह तो उल्लू है और उल्लूओं जैसी बात करता है। सपने भी कहीं सच होते हैं। देखो मैंने सपने में देखा था कि मैंने एक हाथी को खा लिया था, पर अब मैं इसे जाने दे रहा हूँ।
इतना सुनना था कि झनकू हाथी भाग निकला और फिर चिल्लू ने भूतों के सरदार से कहा कि - 'चलो, तुम्हारा सपना सच नहीं है, इसका मतलब कि मेरा भी सपना सच नहीं है। ऐसे सपने को भूल जाना ही अच्छा है। सरदार - तुम दिखते उल्लू हो पर बातें तो समझदारी की करते हो।
उल्लू - ठीक है तो मैं चलता हूँ।
बिल्लू उड़कर बरगद के नीचे पहुँचा। यहाँ पहुँचकर चिल्लू खूब हँसा। आखिर आज उन्होंने भूतों को बेवकूफ जो बना दिया था। हाथी ने जान बचाने के लिए अपने मित्र का शुक्रिया किया। इस पर चिल्लू बोला - मित्रता में शुक्रिया की जरूरत नहीं होती मेरे दोस्त। हाथी बोला - तुम मेरे सच्चे साथी हो। उल्लू इस पर मुस्कुराया भर।
(वेबदुनिया.कॉम से साभार)
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