वैसे तो ज्योतिष पूरी तरह से अंतरिक्ष विज्ञान पर आधारित विषय है। किन्तु फिर भी समय के साथ-साथ इसमें कई भा्रंतियां भी शामिल हो गई हैं। जिस प्रकार हमारे सौर परिवार के बहुत्व ही महत्वपूर्ण ग्रह 'शनि' की एक खलनायक के रूप में एकदम नकारात्मक क्षवि प्रस्तुत की गई, बिल्कुल उसी तरह से राहु-केतु को भी खलनायक यानि कि बुरी क्षवि वाले नकारात्मक ग्रह के रूप में प्रचारित किया गया है।
क्या वाकई शनि के साथ ही राहु और केतु भी इंसानों की दुनिया और जिंदगी पर कोई बुरा असर डालते हैं? क्या सिर्फ पुरानी पौराणिक दंत कथाओं के आधार पर ही शनि और राहु-केतु की नकारात्मक क्षवि बना दी गई? जब जहन में उठने वाले ऐसे पश्रों का हल खोजने के लिये अंतरिक्ष विज्ञान और ज्योतिष की प्रामाणिक पुस्तकों का सहारा लेते हैं, तो कुछ इस तरह के रौचक तथ्य सामने आते हैं:-
- दुनिया की सबसे पुरानी, कीमती और रहस्यमयी वैज्ञानिक पुस्तक ऋग्वेद में राहु को 'स्वभानु' के नाम से बताया गया है।
- क्योंकि राहु-केतु सुर्य और चंद्रमा के प्रकाश को धरती पर पहुंचने से रोकता है, सायद इसीलिये इन्हैं विलन के रूप में प्रचारित किया गया है।
- केतु का वर्णन अथर्ववेद में विस्तार से मिलता है।
- ज्योतिष विज्ञान में अपने सौर मंडल के सात ग्रहों के बाद आठवें ग्रह के रूप में राहु तथा नवें ग्रह के रूप में केतु का वर्णन किया गया है।
यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि धरती और धरती पर बसने वाले इंसानों के साथ ही अन्य जीवजंतुओं की जिंदगी पूरी तरह से सूर्य के प्रकाश पर निर्भर है। जबकि राहु और केतु जब सूर्य की जीवनदाई किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकते हैं, इसीलिये इन दोनों ग्रहों को शनि के समान ही नकारात्मक या बुरी क्षवी वाला ग्रह बताया गया है।
क्या वाकई शनि के साथ ही राहु और केतु भी इंसानों की दुनिया और जिंदगी पर कोई बुरा असर डालते हैं? क्या सिर्फ पुरानी पौराणिक दंत कथाओं के आधार पर ही शनि और राहु-केतु की नकारात्मक क्षवि बना दी गई? जब जहन में उठने वाले ऐसे पश्रों का हल खोजने के लिये अंतरिक्ष विज्ञान और ज्योतिष की प्रामाणिक पुस्तकों का सहारा लेते हैं, तो कुछ इस तरह के रौचक तथ्य सामने आते हैं:-
- दुनिया की सबसे पुरानी, कीमती और रहस्यमयी वैज्ञानिक पुस्तक ऋग्वेद में राहु को 'स्वभानु' के नाम से बताया गया है।
- क्योंकि राहु-केतु सुर्य और चंद्रमा के प्रकाश को धरती पर पहुंचने से रोकता है, सायद इसीलिये इन्हैं विलन के रूप में प्रचारित किया गया है।
- केतु का वर्णन अथर्ववेद में विस्तार से मिलता है।
- ज्योतिष विज्ञान में अपने सौर मंडल के सात ग्रहों के बाद आठवें ग्रह के रूप में राहु तथा नवें ग्रह के रूप में केतु का वर्णन किया गया है।
यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि धरती और धरती पर बसने वाले इंसानों के साथ ही अन्य जीवजंतुओं की जिंदगी पूरी तरह से सूर्य के प्रकाश पर निर्भर है। जबकि राहु और केतु जब सूर्य की जीवनदाई किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकते हैं, इसीलिये इन दोनों ग्रहों को शनि के समान ही नकारात्मक या बुरी क्षवी वाला ग्रह बताया गया है।