प्राचीन काल में मिट्टी के दीपकों का उपयोग तो होता ही था, साथ ही सोने, चांदी व पीतल के दीपक भी बनाएं जाने लगे थे। ऐसे ही दीपक मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि स्थानों की खुदाई में मिले। भारतीय संस्कृति की शाश्वतता के प्रतीक माने जाने वाले दीपक का महत्व दीपोत्सव पर ठीक उतना ही है, जितना लक्ष्मी पूजन का। यह अलग बात है कि आधुनिकता की दौड़ में आज मिट्टी के बने दीपक की जगह बहुत सुन्दर कलात्मक दीपों व तरह- तरह की रंगीन मोमबतीयों ने ले ली है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में आज भी मिट्टी के दीयों का ही सबसे ज्यादा चलन है।
दरअसल मिट्टी के दीये सबसे ज्यादा शुद्ध माने जाते हैं। ऐसा नहीं है कि दीयों का प्रचलन केवल दीपावली तक ही सिमित रहा है। लक्ष्मी स्वच्छता प्रिय है। वे आलस्य, घृणा और निन्दाप्रिय लोगों के साथ ही अंधकार से दूर रहती हैं। इसलिए जब भी लक्ष्मी पूजन करें तो पूजन स्थल पर एक बड़ा घी से भरा मिट्टी का दीपक लगाएं। उसमे रात को सोने से पहले इतना घी डालें कि दीया रातभर जल जाए। दीये में एक बोतल सुगंधित इत्र जरुर डाले। इस प्रयोग से लक्ष्मी जी आप पर जल्द ही प्रसन्न होगी। लक्ष्मी पूजन में इस तरह दीप प्रज्वलित करने के पीछे रहस्य यही है कि जहां सवच्छता के साथ ही प्रकाश रहता है वहीं लक्ष्मी निवास करती है। मिट्टी को शुद्ध और पवित्र माना जाता है। इसलिए लक्ष्मी पूजन पर इस तरह दीप जलाने से लक्ष्मी कृपा बरसने लगती है।
दरअसल मिट्टी के दीये सबसे ज्यादा शुद्ध माने जाते हैं। ऐसा नहीं है कि दीयों का प्रचलन केवल दीपावली तक ही सिमित रहा है। लक्ष्मी स्वच्छता प्रिय है। वे आलस्य, घृणा और निन्दाप्रिय लोगों के साथ ही अंधकार से दूर रहती हैं। इसलिए जब भी लक्ष्मी पूजन करें तो पूजन स्थल पर एक बड़ा घी से भरा मिट्टी का दीपक लगाएं। उसमे रात को सोने से पहले इतना घी डालें कि दीया रातभर जल जाए। दीये में एक बोतल सुगंधित इत्र जरुर डाले। इस प्रयोग से लक्ष्मी जी आप पर जल्द ही प्रसन्न होगी। लक्ष्मी पूजन में इस तरह दीप प्रज्वलित करने के पीछे रहस्य यही है कि जहां सवच्छता के साथ ही प्रकाश रहता है वहीं लक्ष्मी निवास करती है। मिट्टी को शुद्ध और पवित्र माना जाता है। इसलिए लक्ष्मी पूजन पर इस तरह दीप जलाने से लक्ष्मी कृपा बरसने लगती है।
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