क्या आप पैसों के अभाव से परेशान हैं? आप चाहते हैं कि आपको इस परेशानी से छुटकारा मिल जाए। आपके घर में कभी लक्ष्मी की कमी नहीं हो तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं, लक्ष्मी की उन नौ कलाओं के बारे मे जिनके होने पर जीवन हर सुख से पूर्ण हो जाता है। जिस किसी व्यक्ति में लक्ष्मी की इन नौ कलाओ का विकास हो जाता है,लक्ष्मी वहां स्थाई रूप से निवास करने लगती है।
विभूति- सांसारिक कर्तव्य को निभाते हुए दान रूपी कर्तव्य जो निभाता है मतलब शिक्षा, दान, रोगी सेवा, जलदान आदि कर्तव्य लक्ष्मी की विभूति हैं ये सभी लक्ष्मी की पहली शक्ति है।
नम्रता- दूसरी शक्ति नम्रता होती है और ये दोनों क लाएं जिसमें आ जाती है तो लक्ष्मी उसे उतना ही ऊंचा उठाती है।
कान्ति- जब ऊपर लिखी दोनों कलाएं आ जाती है तो वह लक्ष्मी की तीसरी कला कांति का पात्र हो जाता है।
तुष्टि- इन तीनों कलाओं के एक हो जाने पर चौथी कला का आगमन अपने आप हो जाता है। वाणी सिद्धि, व्यवहार, नए कार्य, पुत्र प्राप्ति जैसे शुभ कार्य होने लगते है।
कीर्ति- यह लक्ष्मी की पांचवी कला है, इसकी उपासना से व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाता है, संसार में उसकी कीर्ति फैलने लगती है।
सन्नति- कीर्ति मिलने पर लक्ष्मी की छटी कला सन्नति मुग्ध होकर विराजमान होती है।
पुष्टी- इस कला द्वारा साधक अपने जीवन में संतुष्टी का अनुभव करता है। उसे अपने जीवन का सार मालुम पड़ता है।
उत्कृष्टि- इस कला से जीवन में सुख की वृद्धि होती जाती है।
ऋद्धि - यह सबसे महत्वपूर्ण कला है जो बाकी सात कलाओं के होने पर खुद ही व्यक्ति के जीवन में समाहित हो जाती है।
विभूति- सांसारिक कर्तव्य को निभाते हुए दान रूपी कर्तव्य जो निभाता है मतलब शिक्षा, दान, रोगी सेवा, जलदान आदि कर्तव्य लक्ष्मी की विभूति हैं ये सभी लक्ष्मी की पहली शक्ति है।
नम्रता- दूसरी शक्ति नम्रता होती है और ये दोनों क लाएं जिसमें आ जाती है तो लक्ष्मी उसे उतना ही ऊंचा उठाती है।
कान्ति- जब ऊपर लिखी दोनों कलाएं आ जाती है तो वह लक्ष्मी की तीसरी कला कांति का पात्र हो जाता है।
तुष्टि- इन तीनों कलाओं के एक हो जाने पर चौथी कला का आगमन अपने आप हो जाता है। वाणी सिद्धि, व्यवहार, नए कार्य, पुत्र प्राप्ति जैसे शुभ कार्य होने लगते है।
कीर्ति- यह लक्ष्मी की पांचवी कला है, इसकी उपासना से व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाता है, संसार में उसकी कीर्ति फैलने लगती है।
सन्नति- कीर्ति मिलने पर लक्ष्मी की छटी कला सन्नति मुग्ध होकर विराजमान होती है।
पुष्टी- इस कला द्वारा साधक अपने जीवन में संतुष्टी का अनुभव करता है। उसे अपने जीवन का सार मालुम पड़ता है।
उत्कृष्टि- इस कला से जीवन में सुख की वृद्धि होती जाती है।
ऋद्धि - यह सबसे महत्वपूर्ण कला है जो बाकी सात कलाओं के होने पर खुद ही व्यक्ति के जीवन में समाहित हो जाती है।
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