मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

कल्याण का संदेश

सुभाषचंद्र बोस ने दिया कल्याण का संदेश
एक शहर में हैजे का प्रकोप हो गया। रोग इस हद तक अपने पैर पसार चुका था कि दवाएं और चिकित्सक कम पड़ गए। चारों ओर मृत्यु का तांडव हो रहा था।
ऐसी विकट स्थिति में शहर के कुछ कर्मठ एवं सेवाभावी युवकों ने एक दल का गठन किया। यह दल शहर की निर्धन बस्तियों में जाकर रोगियों की सेवा करने लगा।
एक बार ये लोग उस हैजाग्रस्त बस्ती में गए, जहां का एक कुख्यात बदमाश हैदर खां उनका घोर विरोधी था। हैजे के प्रकोप से हैदर खां का परिवार भी नहीं बच सका। कोई भी चिकित्सक उसके घर आने के लिए तैयार नहीं था। वह बेहद परेशान था। सेवाभावी पुरुषों की टोली उसके टूटे-फूटे मकान में भी पहुंची और बीमार लोगों की सेवा में लग गई। उन युवकों ने हैदर खां के अस्वस्थ मकान की सफाई की, रोगियों को दवा दी और उनकी हर प्रकार से सेवा की। धीरे-धीरे हैदर खां के सभी परिजन भले-चंगे हो गए।
हैदर खां को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने हाथ जोड़कर उन युवकों से क्षमा मांगते हुए कहा मैं बहुत बड़ा पानी हूं। मैंन आप लोगों का बहुत विरोध किया, किंतु आपने मेरे परिवार को जीवनदान दिया। सेवादल के मुखिया ने उसे अत्यंत स्नेह से समझाया आप इतना क्यों दुखी हो रहे हैं? आपका घर गंदा था, इस कारण रोग घर में आ गया और आपको इतनी परेशानी उठानी पड़ी। हमने तो बस घर की गंदगी ही साफ की है। तब हैदर खां बोला केवल घर ही नहीं अपितु मेरा मन भी गंदा था आपकी सेवा ने दोनों का मेल साफ कर दिया है।
इस सेवादल के ऊर्जावान नेता थे सुभाषचंद्र बोस। जिन्होंने सेवा की नई इबारत लिखकर समाज को यह महान संदेश दिया कि मानव जीवन तभी सार्थक होता है, जब वह दूसरों के कल्याण हेतु काम आए। वही सही मायनों में मनुष्य कसौटी पर खरा उतरता है।

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