सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

स्नेह-संबंध

हमारी बिट्टू बडी सुन्दर होने की वजह से वह हर किसी की नजर अपनी ओर आकर्षित कर ही लेती है, लेकिन जो बात सबका मनमोह लेती है, वह है उसकी मुस्कान। किसी को अपनी ओर देखते पाकर एकटक उसकी ओर देखेगी, फिर अपनी बडी-बडी पलकों को अधमुंदी कर ऐसे थिरक कर मुस्करा देगी कि सामने वाला बस ठगा सा रह जाए। अभी तीन साल की भी पूरी नहीं हुई है, पर अपनी बालसुलभ विलक्षण बुद्धि का प्रयोग वह लोगों को प्रसन्न करने में बडी सफलता से करती है।
एक दिन सुबह बिट्टू एक कांच का प्याला तोडने पर मां से पिटाई खा कर रो रही थी। बहलाने के लिए मैं उसे पास के मंदिर में ले गया। बस उस दिन के बाद यह क्रम बन गया। उस दिन भगवान को नमस्कार कर जो आंख खोली तो बगल में एक महिला को खडा पाया। मैंने देखा कि वह हाथ जोडे खडी थी, पर निहार रही थी एकटक बिट्टू को जो भगवान की देहली पर जलती अगरबत्ती के लहराते धुएं को अपनी मुट्ठी में पकडने की कोशिश कर रही थी। अद्भुत लावण्यमयी थी वह महिला। मुझे तो अचानक ऐसा लगा, जैसे बिट्टू ही हठात बडी हो कर बगल में आ खडी हुई है।
मैं उसकी तरफ देख रहा था, इसका उसे कतई ख्याल नहीं था। एकटक वह बिट्टू को देखे जा रही थी। भगवान को दोनों हाथ जोड बिट्टू जब पलटी तो महिला को अपनी ओर इस मुद्रा में देखते पाकर क्षण भर ठिठकी, मुस्करा दी और फिर हाथ जोडकर उसे जय जय कर दी। प्रत्युत्तर में वह महिला भी मुस्करा दी। बिट्टू बढकर उसके सामने खडी हो गई और उसने उसे गोद में उठा लिया। बिट्टू ने अपनी दोनों हथेलियां उसके गालों पर जमाई और उसका चेहरा अपनी ओर घुमा उसकी आंखों में देखने लगी। महिला ने उसे गले से लगा लिया और उसने अपनी दोनों बांहें उसके गले में डाल अपना गाल उसके गाल से सटा दिया। महिला कुछ बोली नहीं, बिट्टू को गोदी में लिये लिये परिक्रमा करने लगी।
कुछ दिनों में तो मंदिर पहुंचते ही बिट्टू छिटककर गोद से उतर जाती, भगवान से पहले आंटी को जय जय करती और फिर उसकी गोद में या उस की उंगली पकडे पकडे परिक्रमा करती, हाथ जोडती, टीका लगाती और प्रसाद लेती। जितनी देर उसके साथ रहती, चहकती रहती। मैंने उस महिला को कभी बोलते नहीं सुना। बिट्टू जैसे उसकी आंखों की भाषा से ही सब समझ जाती थी। मैं चप्पल पहन चुकने पर जब आवाज लगाता, आओ, बिट्टू तो वह आंखों से कुछ कहती और बिट्टू टाटा करके चली आती।
दो दिनों के लिए मैं बाहर गया हुआ था, लौटा तो मालूम हुआ कि बिट्टू मंदिर जाने के लिए खूब रोई थी। मैं बिट्टू को लेकर जल्दी ही मंदिर चला गया। जाते ही वहां के पुजारी ने पूछा, दुई दिन से आए नहीं, बाबूजी? काम से बाहर गया था, मैंने बताया। पुजारी बोला, तभी कहूं, नहीं तो जरूर आवते। वो बहन जी रोज आके यहां घंटों बैठी रहती हैं। मुझे सुनकर आश्चर्य हुआ। मैंने सोचा, रोज मिलती है तो बिट्टू को प्यार कर लेती है, बिट्टू है भी तो प्यार करने लायक, लेकिन वह इस प्रकार बिट्टू से बंध गई है, मुझे विश्वास नहीं था।
पुजारी ने बताया कि उसके यहां भगवान का दिया सब कुछ है, बस संतान नहीं है। सात साल शादी को हो गए हैं।
रक्षाबंधन के दिन पुजारी जी घर पर राखी बांधने आए, तब मैं बिट्टू को अस्पताल ले जा रहा था। उसकी तबियत अचानक खराब हो गई थी। उधर पत्नी पहले से ही बीमार पडी थी। दूसरे दिन बिट्टू की तबियत और खराब हो गई। दस्तों में खून आता था। खून की जरूरत थी। डाक्टर कह गए थे, किसी से खून दिलवाने का इंतजाम करूं। उसकी आंखें मुंदी तो नर्स से उसे देखते रहने को कह कर मैं ब्लड बैंक में गया, और बेड नंबर बता कर मैंने खून देने के लिए कहा।
वहां के डाक्टर ने बडे आश्चर्य से कहा, चिल्ड्रन वार्ड में ग्यारह नंबर के लिए? उसके लिए तो बच्चे की मां कब का खून दे गई है। मैच भी हो गया है, उसी ग्रुप का है। आप कौन हैं? मैंने कहा, आपको गलतफहमी हुई है, बच्चे की मां तो घर पर बीमार पडी है। डाक्टर ने रजिस्टर खोला और पूछा, बेड नंबर ग्यारह, चिल्ड्रन-वार्ड?
मैंने कहा, हां
डाक्टर कुछ देर मेरी ओर देखता रहा। फिर बोला, आप कौन हैं? आप ने बताया नहीं।
बिट्टू मेरी बेटी है, मैंने जवाब दिया।
डाक्टर कहने लगा, कमाल है! आप कह रहे हैं कि आपकी पत्नी बीमार हैं और अभी जो खून देकर गई हैं वह तो खूब भली चंगी थीं। हां, रो बहुत रही थीं। जाइए, उन्हें संभालिये, खून दे कर उन्होंने आराम भी नहीं किया है। मेरा माथा ठनका। वापस पहुंचा तो वही महिला बिट्टू के पलंग के पास की खिडकी के सामने बरामदे में खडी थी। उसके साथ एक सज्जन भी थे।
मैंने, हाथ जोडकर उन्हें नमस्कार किया और कहा, आपने बडी मेबरबानी की, मैं तो आप को जानता भी नहीं। मैंने पहली बार महिला की आवाज सुनी, कांपती आवाज में उन्होंने पूछा, मैं बिट्टू को देख आऊं?
क्यों नहीं? इसमें पूछने की क्या बात है? मैंने कहा। आंखों में उमडते आंसुओं के साथ वह बोली, कहीं आप सोचें, मुझ अभागिन.. छि:, ऐसा मत सोचिए, मैंने उनकी बात काट दी, और उसके बाद जो वह जाकर बिट्टू की बगल में बैठी तो उठी ही नहीं। उसके पति मुझे अक्सर घर पर अपनी पत्नी की देखभाल के लिए भेज देते। उन्होंने बिट्टू की देखभाल मां-बाप की तरह की।
एक दिन बाद जब वार्ड में पहुंचकर मैंने बिस्तर खाली देख सिस्टर से मरीज के बारे में पूछा तो उसका जवाब था, उसके मां बाप उसे जरा टहलाने ले गए हैं।

[डॉ. श्रीगोपाल काबरा]
15, विजयनगर, डी-ब्लॉक, मालवीयनगर, जयपुर- 302017

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