कुछ महीनों पहले एक मेला देखने नोनू अपने माता- 1पिता के साथ गया। मेले जाने के पहले माँ ने उसे समझाया,'देखो उँगली पकड़कर चलना। मेले में बहुत भीड़ होती है।
यदि उँगली छोड़ी और भटक गए तो फिर परेशानी होगी और देखो यदि साथ छूट ही जाए तो रोना मत। तुम्हारे जेब में घर का पता, मोबाइल नंबर लिखकर रख दिया है। किसी भी पुलिसवाले भैया से कहोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा।'
नोनू को मजा आ गया। उसे तो मेले में जाने की जल्दी थी। मेले में भीड़ ही भीड़ थी। बड़े-बड़े लोगों में बच्चे तो बेचारे दिखते ही नहीं थे।
कोई बच्चा गोद में था तो कोई कंधे पर। नोनू माँ के पीछे ऐसे चल रहा था, जैसे रस्सी से बँधा हो। उसे कष्ट हो रहा था। यह भी कोई चलना है। यह भी कोई आनंद है। वह सोच ही रहा था कि खुला मैदान आ गया।
मैदान में दुकानें थीं। फुग्गेवाले थे। खिलौने की दुकानें थीं। उसने फुग्गे के लिए हठ की। पापा ने फुग्गा खरीद दिया। फिर सीटी खरीदी और चाट खाने के लिए बैठ गए।
इधर-उधर देखते, उछलते-कूदते, गुनगुनाते नोनूजी चल रहे थे कि भीड़ का रेला आया और जिसका डर था, वही हुआ।
उनकी माँ की उँगली छूट गई और उन्होंने भीड़ के बीच अपने को अकेला पाया। पहले तो नोनू रूआँसा हुआ, मगर घबराया नहीं। माँ ने उसकी जेब में घर का पता और मोबाइल नंबर जो रखा था।
वह मैदान में एकतरफ खड़ा सोच ही रहा था कि एक दीदी उसको उसकी ओर मुस्कुराते दिखी। वह भी मुस्कुराया। वह दीदी पास आई पूछा- 'क्या भटक गए हो?'
नोनू ने भोलेपन से कहा- 'मेरे माता-पिता खो गए हैं। उन्हें खोजना है।' दीदी ने पूछा- 'तुम्हारे पास पता है?' नोनू ने जेब से पता निकालकर बताया।
दीदी बोली- 'ठीक है, हम तुम्हें घर तक पहुँचा देंगे।'
नोनू ने कहा- 'क्या आपके पास मोटर गाड़ी है? मेरा घर तो बहुत दूर है।' दीदी हँसी। बोली- 'मैं परी हूँ। मैं तुम्हें गाड़ी से भी जल्दी पहुँचा दूँगी।'
नोनू ने कहा- 'आप कैसी परी हैं? परी तो सफेद वस्त्र पहनती है। आप तो यूनिफॉर्म पहने हुए हो।'
परी ने कहा- 'हम मेले की परी हैं। खोए हुए बच्चों की परी। हम भी मेला घूमने-फिरने, मजा करने आई हैं। जो बच्चे दूसरों के साथ मित्रता और प्रेम से रहते हैं, हम उनसे दोस्ती करती हैं और उनकी मदद करती हैं।'
परी ने नोनू को ऑटो रिक्शा में बिठाया और नोनू अपने माता के पास आ गया। माँ ने पूछा- 'कहाँ भटक गए थे? कौन लाया तुम्हें?' नोनू ने कहा- 'हमें परी लाई है। बड़ी प्यारी सहेली है हमारी, आप भी मिल लो।'
नोनू पलटा तो वहाँ न तो परी थी और न ऑटो रिक्शा। वे जा चुके थे। माँ ने कहा- 'देखो नोनू यदि मेले में भटक जाओ तो चाहे जिसके साथ चल देना ठीक नहीं। पुलिस या स्काउट की मदद ही लेना चाहिए। ऐसे अपरिचितों के साथ चल देने में खतरे भी हैं। इस तरह नहीं आना चाहिए था।'
नोनू के आगे उस परी का भोलाभाला चेहरा दिखाई दिया। उसके पंख नहीं थे और वह यूनिफॉर्म पहने थी और चल भी रही थी ऑटो रिक्शा में। फिर भी वह साफ दिल की परी थी।
उसने तो साफ कहा कि जो बच्चे दूसरे बच्चों से प्रेम करते हैं, वे उनसे दोस्ती करती है। वह मन ही मन मुस्कुराया। दूसरे बच्चों के साथ सच्ची मित्रता व सहयोग करने वाली दीदियाँ परियाँ ही तो होती हैं, भले ही वे स्वप्न में न आई हों। नोनू फिर से अपने खेलने में लग गया।
यदि उँगली छोड़ी और भटक गए तो फिर परेशानी होगी और देखो यदि साथ छूट ही जाए तो रोना मत। तुम्हारे जेब में घर का पता, मोबाइल नंबर लिखकर रख दिया है। किसी भी पुलिसवाले भैया से कहोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा।'
नोनू को मजा आ गया। उसे तो मेले में जाने की जल्दी थी। मेले में भीड़ ही भीड़ थी। बड़े-बड़े लोगों में बच्चे तो बेचारे दिखते ही नहीं थे।
कोई बच्चा गोद में था तो कोई कंधे पर। नोनू माँ के पीछे ऐसे चल रहा था, जैसे रस्सी से बँधा हो। उसे कष्ट हो रहा था। यह भी कोई चलना है। यह भी कोई आनंद है। वह सोच ही रहा था कि खुला मैदान आ गया।
मैदान में दुकानें थीं। फुग्गेवाले थे। खिलौने की दुकानें थीं। उसने फुग्गे के लिए हठ की। पापा ने फुग्गा खरीद दिया। फिर सीटी खरीदी और चाट खाने के लिए बैठ गए।
इधर-उधर देखते, उछलते-कूदते, गुनगुनाते नोनूजी चल रहे थे कि भीड़ का रेला आया और जिसका डर था, वही हुआ।
उनकी माँ की उँगली छूट गई और उन्होंने भीड़ के बीच अपने को अकेला पाया। पहले तो नोनू रूआँसा हुआ, मगर घबराया नहीं। माँ ने उसकी जेब में घर का पता और मोबाइल नंबर जो रखा था।
वह मैदान में एकतरफ खड़ा सोच ही रहा था कि एक दीदी उसको उसकी ओर मुस्कुराते दिखी। वह भी मुस्कुराया। वह दीदी पास आई पूछा- 'क्या भटक गए हो?'
नोनू ने भोलेपन से कहा- 'मेरे माता-पिता खो गए हैं। उन्हें खोजना है।' दीदी ने पूछा- 'तुम्हारे पास पता है?' नोनू ने जेब से पता निकालकर बताया।
दीदी बोली- 'ठीक है, हम तुम्हें घर तक पहुँचा देंगे।'
नोनू ने कहा- 'क्या आपके पास मोटर गाड़ी है? मेरा घर तो बहुत दूर है।' दीदी हँसी। बोली- 'मैं परी हूँ। मैं तुम्हें गाड़ी से भी जल्दी पहुँचा दूँगी।'
नोनू ने कहा- 'आप कैसी परी हैं? परी तो सफेद वस्त्र पहनती है। आप तो यूनिफॉर्म पहने हुए हो।'
परी ने कहा- 'हम मेले की परी हैं। खोए हुए बच्चों की परी। हम भी मेला घूमने-फिरने, मजा करने आई हैं। जो बच्चे दूसरों के साथ मित्रता और प्रेम से रहते हैं, हम उनसे दोस्ती करती हैं और उनकी मदद करती हैं।'
परी ने नोनू को ऑटो रिक्शा में बिठाया और नोनू अपने माता के पास आ गया। माँ ने पूछा- 'कहाँ भटक गए थे? कौन लाया तुम्हें?' नोनू ने कहा- 'हमें परी लाई है। बड़ी प्यारी सहेली है हमारी, आप भी मिल लो।'
नोनू पलटा तो वहाँ न तो परी थी और न ऑटो रिक्शा। वे जा चुके थे। माँ ने कहा- 'देखो नोनू यदि मेले में भटक जाओ तो चाहे जिसके साथ चल देना ठीक नहीं। पुलिस या स्काउट की मदद ही लेना चाहिए। ऐसे अपरिचितों के साथ चल देने में खतरे भी हैं। इस तरह नहीं आना चाहिए था।'
नोनू के आगे उस परी का भोलाभाला चेहरा दिखाई दिया। उसके पंख नहीं थे और वह यूनिफॉर्म पहने थी और चल भी रही थी ऑटो रिक्शा में। फिर भी वह साफ दिल की परी थी।
उसने तो साफ कहा कि जो बच्चे दूसरे बच्चों से प्रेम करते हैं, वे उनसे दोस्ती करती है। वह मन ही मन मुस्कुराया। दूसरे बच्चों के साथ सच्ची मित्रता व सहयोग करने वाली दीदियाँ परियाँ ही तो होती हैं, भले ही वे स्वप्न में न आई हों। नोनू फिर से अपने खेलने में लग गया।
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