पिछले अंक में हमने पढ़ा कि समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी निकली तो उन्हें कहा गया कि आप जिसे चाहें उसका वरण कर सकती हैं। लक्ष्मी बोलीं कि मैं उसके पास नहीं जाती जो मेरा निवेश करना नहीं जानता। मैं उसके पास जाती हूं जो मेरा निवेश करना जानता हो। जिसको इनवेस्टमेंट का ज्ञान हो। मेरी सुरक्षा करना जानता हो। फिर लक्ष्मीजी ने इधर-उधर देखा तो एक ऐसा भी है जो मेरी तरफ देख ही नहीं रहा है बाकी सब लाइन लगाकर खड़े हैं तो उनके पास गई।
लक्ष्मी ने जाकर देखा तो मुंह ओढ़कर लेटे हुए थे भगवान विष्णु। लक्ष्मी ने पैर पकड़े, चरण हिलाए। विष्णु बोले क्या बात है? वह बोलीं मैं आपको वरना चाहती हूं। विष्णु ने कहा-स्वागत है। लक्ष्मी जानती थीं कि यही मेरी रक्षा करेंगे। तब से लक्ष्मी-नारायण एक हो गए। लक्ष्मी आती है तो छाती पर लात मारती है तो आदमी अहंकार में चौड़ा हो जाता है और जाती हैं तो एक लात पीठ पर मारती करती हैं तो आदमी औंधा हो जाता है। लक्ष्मी की रक्षा कीजिए। उसके सम्मान की रक्षा कीजिए। वो आपके लिए सतत उपलब्ध है।
अब नवें नंबर पर वारूणी निकली। मदिरा जैसे ही निकली तो दैत्य लाइन में लग गए। भगवान ने कहा-ले जाओ। देवताओं को तो लेना भी नहीं था। इसके बाद और मंथन किया तो पारिजात निकला। पारिजात को अपनी जगह भेज दिया। चंद्रमा निकले तो चंद्रमा को अपनी जगह भेज दिया। 12वें नंबर पर सारंगधनु निकला, विष्णुजी सारंगपाणि हैं, अपने धनुष को लेकर चले गए। अब सबसे अंत में निकला अमृत। इतनी देर बाद जीवन में अमृत मिलता है। तेरह सीढ़ी पार करेंगे तब मिलता है ऐसे ही नहीं मिल जाता।
लोग कहते हैं यह 14 का आंकड़ा क्या है? ये है पांच कमेन्द्रियां, पांच जनेन्द्रियां तथा अन्य चार हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। ये चौदह पार करने के बाद ही परमात्मा प्राप्त होते हैं।
लक्ष्मी ने जाकर देखा तो मुंह ओढ़कर लेटे हुए थे भगवान विष्णु। लक्ष्मी ने पैर पकड़े, चरण हिलाए। विष्णु बोले क्या बात है? वह बोलीं मैं आपको वरना चाहती हूं। विष्णु ने कहा-स्वागत है। लक्ष्मी जानती थीं कि यही मेरी रक्षा करेंगे। तब से लक्ष्मी-नारायण एक हो गए। लक्ष्मी आती है तो छाती पर लात मारती है तो आदमी अहंकार में चौड़ा हो जाता है और जाती हैं तो एक लात पीठ पर मारती करती हैं तो आदमी औंधा हो जाता है। लक्ष्मी की रक्षा कीजिए। उसके सम्मान की रक्षा कीजिए। वो आपके लिए सतत उपलब्ध है।
अब नवें नंबर पर वारूणी निकली। मदिरा जैसे ही निकली तो दैत्य लाइन में लग गए। भगवान ने कहा-ले जाओ। देवताओं को तो लेना भी नहीं था। इसके बाद और मंथन किया तो पारिजात निकला। पारिजात को अपनी जगह भेज दिया। चंद्रमा निकले तो चंद्रमा को अपनी जगह भेज दिया। 12वें नंबर पर सारंगधनु निकला, विष्णुजी सारंगपाणि हैं, अपने धनुष को लेकर चले गए। अब सबसे अंत में निकला अमृत। इतनी देर बाद जीवन में अमृत मिलता है। तेरह सीढ़ी पार करेंगे तब मिलता है ऐसे ही नहीं मिल जाता।
लोग कहते हैं यह 14 का आंकड़ा क्या है? ये है पांच कमेन्द्रियां, पांच जनेन्द्रियां तथा अन्य चार हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। ये चौदह पार करने के बाद ही परमात्मा प्राप्त होते हैं।
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