कुछ कथाओं के पीछे सच होता है तो कुछ के पीछे गप। पर जो भी हो कुछ कथाएँ इसी कारण मजेदार बन पड़ती है। 'सच और गप वाली कहानी' में प्रस्तुत है तीसरी कहानी। यह कहानी बर्मा में सुनी-सुनाई जाती है।
एक बार जंगल के राजा शेर ने जंगल में सूचना करवाई कि सभी जानवर आकर उसे सलाम करें। बस फिर क्या था एक-एक करके हाथी, चीता, साँप, छिपकली, भालू, घोड़ा और यहाँ तक कि खरगोश और हिरण भी आए और शेर के सामने सर झुकाकर उसे सलाम किया। जब चींटियोंको इस बात का पता चला तो वे भी शेर को सलाम करने के लिए एक कतार बनाकर निकल पड़ीं। उनकी रफ्तार धीमी थी और उन्हें लंबी दूरी तय करनी थी तो वे देर से पहुँची। तब तक सारा कार्यक्रम पूरा हो चुका था।
जब चींटियों का दल पहुँचा तो सारे जानवर वापस लौटने को थे। चींटियों के पहुँचते ही सभी ने उनकी हँसी उड़ाई कि कितनी तेज चाल है। थोड़ी और देर से पहुँचते तो सारा कार्यक्रम ही पूरा हो जाता। शेर भी गुर्राया और चींटियों का मजाक बनाते हुए बोला- कभी तो जल्दी पहुँचा करो। हमेशा लेटलतीफ ही रहती हो। चींटियों के दल को बहुत दुख हुआ। दल वापस लौट आया। चींटियों के दल में शामिल सदस्यों ने सारी बात चींटियों की रानी को सुनाई। रानी ने जब यह बात सुुनी तो उसे बहुत गुस्सा आया। चींटियों की रानी ने तुरंत अपने मित्र कानखजूरे को बुला भेजा। कानखजूरे को चींटी ने कान में कुछ कहा और फिर दोनों मुस्कुरा दिए।
इधर शेर दिनभर का थका हुआ था तो वह अपनी गुफा में लेट गया। कुछ ही देर में उसे नींद भी लग गई। नींद अभी लगी ही थी कि उसे कान में कुछ सरकता हुआ महसूस हुआ। वह बहुत परेशान हो गया और चिल्लाने लगा। कुछ ही देर में बहुत से जानवर जमा हो गए। शेर ने कान में हो रहे दर्द के मारे जमीन पर लौट लगाना शुरू कर दिया पर दर्द बढ़ता ही जा रहा था।
सारे जानवर कुछ भी मदद नहीं कर सकते थे क्योंकि उनके हाथ में कुछ भी नहीं था। आखिरकर शेर को लगा कि केवल चींटी ही उसकी मदद कर सकती है। शेर ने चींटियों की रानी के पास मदद का संदेश भेजा। चींटियों की रानी ने सोचा कि अब शेर बहुत परेशान हो लिया। बेहतर होगा कि उसे अब कुछ राहत दे दी जाए। यह सोचकर चींटियों की रानी अपने दल के साथ शेर की गुफा पहुँच गई।
चार चींटियों का समूह शेर के कान पर चढ़ा और उन्होंने अपने मित्र कानखजूरे को आवाज दी - मदद के लिए शुक्रिया दोस्त, अब बाहर आ जाओ। कानखजूरा झटपट बाहर आ गया और शेर को दर्द से राहत व तुरंत आराम मिल गया। वह चींटियों की रानी के पास जाकर बोला-आज तुमने मेरी जान बचा ली। मैं अपने कहे पर शर्मिंदा हूँ।
मैं आज यह घोषणा करता हूँ कि अब से तुम जहाँ चाहो वहाँ रह सकती हो। और दोस्तो, यही वजह है कि चींटियाँ कहीं भी रह सकती हैं। क्या रेगिस्तान, क्या जंगल और क्या हमारा घर। उन्हें कोई रोक नहीं सकता।
एक बार जंगल के राजा शेर ने जंगल में सूचना करवाई कि सभी जानवर आकर उसे सलाम करें। बस फिर क्या था एक-एक करके हाथी, चीता, साँप, छिपकली, भालू, घोड़ा और यहाँ तक कि खरगोश और हिरण भी आए और शेर के सामने सर झुकाकर उसे सलाम किया। जब चींटियोंको इस बात का पता चला तो वे भी शेर को सलाम करने के लिए एक कतार बनाकर निकल पड़ीं। उनकी रफ्तार धीमी थी और उन्हें लंबी दूरी तय करनी थी तो वे देर से पहुँची। तब तक सारा कार्यक्रम पूरा हो चुका था।
जब चींटियों का दल पहुँचा तो सारे जानवर वापस लौटने को थे। चींटियों के पहुँचते ही सभी ने उनकी हँसी उड़ाई कि कितनी तेज चाल है। थोड़ी और देर से पहुँचते तो सारा कार्यक्रम ही पूरा हो जाता। शेर भी गुर्राया और चींटियों का मजाक बनाते हुए बोला- कभी तो जल्दी पहुँचा करो। हमेशा लेटलतीफ ही रहती हो। चींटियों के दल को बहुत दुख हुआ। दल वापस लौट आया। चींटियों के दल में शामिल सदस्यों ने सारी बात चींटियों की रानी को सुनाई। रानी ने जब यह बात सुुनी तो उसे बहुत गुस्सा आया। चींटियों की रानी ने तुरंत अपने मित्र कानखजूरे को बुला भेजा। कानखजूरे को चींटी ने कान में कुछ कहा और फिर दोनों मुस्कुरा दिए।
इधर शेर दिनभर का थका हुआ था तो वह अपनी गुफा में लेट गया। कुछ ही देर में उसे नींद भी लग गई। नींद अभी लगी ही थी कि उसे कान में कुछ सरकता हुआ महसूस हुआ। वह बहुत परेशान हो गया और चिल्लाने लगा। कुछ ही देर में बहुत से जानवर जमा हो गए। शेर ने कान में हो रहे दर्द के मारे जमीन पर लौट लगाना शुरू कर दिया पर दर्द बढ़ता ही जा रहा था।
सारे जानवर कुछ भी मदद नहीं कर सकते थे क्योंकि उनके हाथ में कुछ भी नहीं था। आखिरकर शेर को लगा कि केवल चींटी ही उसकी मदद कर सकती है। शेर ने चींटियों की रानी के पास मदद का संदेश भेजा। चींटियों की रानी ने सोचा कि अब शेर बहुत परेशान हो लिया। बेहतर होगा कि उसे अब कुछ राहत दे दी जाए। यह सोचकर चींटियों की रानी अपने दल के साथ शेर की गुफा पहुँच गई।
चार चींटियों का समूह शेर के कान पर चढ़ा और उन्होंने अपने मित्र कानखजूरे को आवाज दी - मदद के लिए शुक्रिया दोस्त, अब बाहर आ जाओ। कानखजूरा झटपट बाहर आ गया और शेर को दर्द से राहत व तुरंत आराम मिल गया। वह चींटियों की रानी के पास जाकर बोला-आज तुमने मेरी जान बचा ली। मैं अपने कहे पर शर्मिंदा हूँ।
मैं आज यह घोषणा करता हूँ कि अब से तुम जहाँ चाहो वहाँ रह सकती हो। और दोस्तो, यही वजह है कि चींटियाँ कहीं भी रह सकती हैं। क्या रेगिस्तान, क्या जंगल और क्या हमारा घर। उन्हें कोई रोक नहीं सकता।
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