उत्तरी राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में एक दलित ने अपनी पत्नी और चार बेटियों के साथ मौत को गले लगा लिया। स्थानीय पुलिस के एक अधिकारी को लगता है कि चौथी बेटी घर में आने के बाद घर का मुखिया ओमप्रकाश अवसाद में था।
हनुमानगढ़ जिले के रोडावाली गाँव में एक साथ गमगीन माहौल में छह लोगों का अंतिम संस्कार किया गया। उधर राज्य के शेखावाटी अंचल में पिछले तीन माह में नवजात बच्चियों को लावारिस छोड़ने के चौदह मामले सामने आए हैं।
महिला संगठनों को लगता है ये बेटियों के लिए खतरे की घंटी है। रोडावाली गाँव में रविवार को उस समय रुलाई फूट पड़ी जबएक के बाद एक छह शव गिने गए।
पुलिस ने जब 33 वर्षीय ओमप्रकाश नायक के घर का दरवाजा खोला तो वो ओमप्रकाश, उसकी 30 वर्षीय पत्नी चुकली, आठ साल की बेटी पूजा, छह साल की अर्चना, चार साल की नंदिनी एक माह पहले दुनिया में आई मुन्नी मरे हुए पाए गए।
हनुमानगढ़ के पुलिस अधीक्षक का कहना था, ‘इन लोगों ने जहर खा कर अपनी जान दे दी। ऐसा लगता है कि वो चौथी बेटी पैदा होने के बाद से अवसाद में था। परिवार की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं थी।’
पुलिस को ओमप्रकाश के भाई ने तब सूचित किया जब दिन निकलने के बाद भी ओमप्रकाश के घर का दरवाजा नहीं खुला और कोई हरकत नहीं दिखाई दी। ये खबर ऐसे समय आई जब राजस्थान की एक बेटी कृष्णा पुनिया कॉमनवेल्थ खेलो में तमगा लेकर आई और लोग बेटियों पर नाज कर रहे थे।
लावारिस बेटियाँ : सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव कहती है, ‘समाज में बेटों को तरजीह देने का रुझान खतरनाक तरीके से उभरा है। इसमें बेटियों की बेकद्री हो रही है। हमें लगता है जनगणना के आँकड़े आएँगे तो हालात की बहुत ही चिंताजनक तस्वीर सामने होगी। बेटियों की चाहत बुरी तरह घटी है।’
शेखावाटी में सीकर के पुलिस अधीक्षक विकास कुमार ने बीबीसी से कहा, ‘हाँ पिछले कुछ माह में सीकर और झूंझुनु जिलों में नवजात पुत्रियों को लावारिस छोड़ने के एक दर्ज़न मामले सामने आए हैं।’
नू के सामाजिक कार्यकर्ता राजन चौधरी ने पुत्रियों को लावारिस छोड़े जाने की घटनाओं को दर्ज किया है।
उन्होंने बीबीसी को बताया, 'सितंबर माह से लेकर अब तक दो ज़िलों में चौदह नवजात कन्याओं को कहीं कुएँ में फेंका गया, कहीं सड़क पर लावारिस छोड़ा गया। सीकर में रविवार को भी एक नवजात कन्या ने अपनी किलकारी से लावारिस छोड़े जाने की सूचना दी।'
इन चौदह में से चार नवजात बालिकाएँ जिन्दा रह गई। एक नन्ही जान तो इतनी बलवान निकली कि एक सौ पाँच फुट गहरे कुएँ में गिराए जाने के बाद भी जीवित रह गई। लेकिन उसका हाथ टूट गया।
चौधरी कहते हैं, ‘विडम्बना ये है कि अजन्मी और नवजात बालिकाओं को मारे जाने की घटनाएँ उन परिवारों मे ज्यादा हो रही है जो शिक्षित है। झुंझुनू शिक्षा में बहुत आगे है। हमें लगता है इन तीन जिलों में लड़का-लड़की अनुपात बहुत ही खतरनाक मुकाम पर पहुँच रहा है।ये एक हजार लड़कों के मुकाबिले सात सौ से आठ सौ लड़कियों की इत्तिला दे रहा है।’
नवजात बेटियों को निर्जन स्थान पर बिसरा देने की घटनाएँ ऐसे मौसम और माहौल में आई है जब वो कहीं तमगे ला रही है, अन्तरिक्ष में जा रही है और फलक पर सितारों की मानिंद चमक रही है।
हनुमानगढ़ जिले के रोडावाली गाँव में एक साथ गमगीन माहौल में छह लोगों का अंतिम संस्कार किया गया। उधर राज्य के शेखावाटी अंचल में पिछले तीन माह में नवजात बच्चियों को लावारिस छोड़ने के चौदह मामले सामने आए हैं।
महिला संगठनों को लगता है ये बेटियों के लिए खतरे की घंटी है। रोडावाली गाँव में रविवार को उस समय रुलाई फूट पड़ी जबएक के बाद एक छह शव गिने गए।
पुलिस ने जब 33 वर्षीय ओमप्रकाश नायक के घर का दरवाजा खोला तो वो ओमप्रकाश, उसकी 30 वर्षीय पत्नी चुकली, आठ साल की बेटी पूजा, छह साल की अर्चना, चार साल की नंदिनी एक माह पहले दुनिया में आई मुन्नी मरे हुए पाए गए।
हनुमानगढ़ के पुलिस अधीक्षक का कहना था, ‘इन लोगों ने जहर खा कर अपनी जान दे दी। ऐसा लगता है कि वो चौथी बेटी पैदा होने के बाद से अवसाद में था। परिवार की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं थी।’
पुलिस को ओमप्रकाश के भाई ने तब सूचित किया जब दिन निकलने के बाद भी ओमप्रकाश के घर का दरवाजा नहीं खुला और कोई हरकत नहीं दिखाई दी। ये खबर ऐसे समय आई जब राजस्थान की एक बेटी कृष्णा पुनिया कॉमनवेल्थ खेलो में तमगा लेकर आई और लोग बेटियों पर नाज कर रहे थे।
लावारिस बेटियाँ : सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव कहती है, ‘समाज में बेटों को तरजीह देने का रुझान खतरनाक तरीके से उभरा है। इसमें बेटियों की बेकद्री हो रही है। हमें लगता है जनगणना के आँकड़े आएँगे तो हालात की बहुत ही चिंताजनक तस्वीर सामने होगी। बेटियों की चाहत बुरी तरह घटी है।’
शेखावाटी में सीकर के पुलिस अधीक्षक विकास कुमार ने बीबीसी से कहा, ‘हाँ पिछले कुछ माह में सीकर और झूंझुनु जिलों में नवजात पुत्रियों को लावारिस छोड़ने के एक दर्ज़न मामले सामने आए हैं।’
नू के सामाजिक कार्यकर्ता राजन चौधरी ने पुत्रियों को लावारिस छोड़े जाने की घटनाओं को दर्ज किया है।
उन्होंने बीबीसी को बताया, 'सितंबर माह से लेकर अब तक दो ज़िलों में चौदह नवजात कन्याओं को कहीं कुएँ में फेंका गया, कहीं सड़क पर लावारिस छोड़ा गया। सीकर में रविवार को भी एक नवजात कन्या ने अपनी किलकारी से लावारिस छोड़े जाने की सूचना दी।'
इन चौदह में से चार नवजात बालिकाएँ जिन्दा रह गई। एक नन्ही जान तो इतनी बलवान निकली कि एक सौ पाँच फुट गहरे कुएँ में गिराए जाने के बाद भी जीवित रह गई। लेकिन उसका हाथ टूट गया।
चौधरी कहते हैं, ‘विडम्बना ये है कि अजन्मी और नवजात बालिकाओं को मारे जाने की घटनाएँ उन परिवारों मे ज्यादा हो रही है जो शिक्षित है। झुंझुनू शिक्षा में बहुत आगे है। हमें लगता है इन तीन जिलों में लड़का-लड़की अनुपात बहुत ही खतरनाक मुकाम पर पहुँच रहा है।ये एक हजार लड़कों के मुकाबिले सात सौ से आठ सौ लड़कियों की इत्तिला दे रहा है।’
नवजात बेटियों को निर्जन स्थान पर बिसरा देने की घटनाएँ ऐसे मौसम और माहौल में आई है जब वो कहीं तमगे ला रही है, अन्तरिक्ष में जा रही है और फलक पर सितारों की मानिंद चमक रही है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें