सुनने में बिल्कुल असम्भव बात लगती है कि खाएं कुछ और स्वाद आए किसी और चीज़ का!! भला ऐसा भी हो सकता है क्या? पर ऐसा होता है और यह आपको मानना ही पड़ेगा। अरे भई, हम कोई ज़िद नहीं कर रहे, हम तो बता रहे हैं। इसे साबित करने के लिए एक प्रयोग भी किया जा सकता है। अगर प्रयोग सफल रहा और आपकी ज़बान स्वाद चखकर भी सही चीज़ के बारे में नहीं बता पाई, तो आपको हमारी बात माननी पड़ेगी।
इस प्रयोग को आप ही करेंगे। हम आपको बताएंगे कि क्या और कैसे करना है, आप तो बस करते जाइए। तो आइए शुरू करते हैं...
ऐसा कीजिए कि एक सेब और एक नाशपाती का इंतज़ाम कीजिए। इन दोनों फलों की पतली-पतली फांकें काट लीजिए। फिर अपने किसी एक दोस्त को बुलाइए। एक ऐसा दोस्त, जिसे इन फलों या इस प्रयोग के बारे में आपने न बताया हो।
इस दोस्त की आंखों पर पट्टी बांध दीजिए। अब उसे अपने हाथों से सेब का एक टुकड़ा खिलाइए। जब आप उसके मुंह में सेब का टुकड़ा डाल रहे हों, तो बड़ी ही सावधानी के साथ नाशपाती के एक टुकड़े को उसकी नाक के ठीक नीचे ले जाइए। ध्यान रखिएगा कि उसे नाशपाती की उपस्थिति का बिल्कुल भी पता न चले। इसके लिए ज़रूरी है कि उसके नाक से नाशपति की कुछ न कुछ दूरी ज़रूर बनी रहे। अब उससे पूछिए कि आपने उसे कौन-सा फल खिलाया है? क्या जवाब दिया उसने?? हम बताते हैं, उसका जवाब होगा नाशपाती, न कि सेब। देखा!!
हमने शुरू में ही कहा था कि ऐसा ही होगा। आपको पता है कि ऐसा क्यों हुआ?? दरअसल, हम जो भी चीज़ खाते हैं, वह खट्टी है, मीठी है या उसका स्वाद कैसा है, इस बारे में हमारी स्वाद ग्रंथियां हमें बताती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भोजन के स्वाद में सिर्फ स्वाद ग्रंथियों का ही महत्व होता है।
इन स्वाद ग्रंथियों को धोखा भी दिया जा सकता है और हमने इस प्रयोग में वही किया है। हमारे मुंह के ठीक ऊपर नाक होने के कारण बहुत-सी चीजों को खाते वक्त हम उनका मज़ा सिर्फ उनसे उठने वाली महक की वजह से ले पाते हैं। नाक न होती तो उनका मज़ा अधूरा ही रह जाता। आपने ध्यान भी दिया होगा कि सर्दी-जुकाम के कारण नाक बंद होने के कारण खाने में उतना स्वाद नहीं आ पाता।
तो अब को मान गए न आप हमारी बात। ध्यान देकर देखिएगा, आप भी समझ जाएंगे कि आपकी जीभ बहुत से खाद्य पदाथों का आनंद तो सिर्फ इस कारण से ले पाती है कि आपकी नाक उसे अपना पूरा सहयोग देती
इस प्रयोग को आप ही करेंगे। हम आपको बताएंगे कि क्या और कैसे करना है, आप तो बस करते जाइए। तो आइए शुरू करते हैं...
ऐसा कीजिए कि एक सेब और एक नाशपाती का इंतज़ाम कीजिए। इन दोनों फलों की पतली-पतली फांकें काट लीजिए। फिर अपने किसी एक दोस्त को बुलाइए। एक ऐसा दोस्त, जिसे इन फलों या इस प्रयोग के बारे में आपने न बताया हो।
इस दोस्त की आंखों पर पट्टी बांध दीजिए। अब उसे अपने हाथों से सेब का एक टुकड़ा खिलाइए। जब आप उसके मुंह में सेब का टुकड़ा डाल रहे हों, तो बड़ी ही सावधानी के साथ नाशपाती के एक टुकड़े को उसकी नाक के ठीक नीचे ले जाइए। ध्यान रखिएगा कि उसे नाशपाती की उपस्थिति का बिल्कुल भी पता न चले। इसके लिए ज़रूरी है कि उसके नाक से नाशपति की कुछ न कुछ दूरी ज़रूर बनी रहे। अब उससे पूछिए कि आपने उसे कौन-सा फल खिलाया है? क्या जवाब दिया उसने?? हम बताते हैं, उसका जवाब होगा नाशपाती, न कि सेब। देखा!!
हमने शुरू में ही कहा था कि ऐसा ही होगा। आपको पता है कि ऐसा क्यों हुआ?? दरअसल, हम जो भी चीज़ खाते हैं, वह खट्टी है, मीठी है या उसका स्वाद कैसा है, इस बारे में हमारी स्वाद ग्रंथियां हमें बताती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भोजन के स्वाद में सिर्फ स्वाद ग्रंथियों का ही महत्व होता है।
इन स्वाद ग्रंथियों को धोखा भी दिया जा सकता है और हमने इस प्रयोग में वही किया है। हमारे मुंह के ठीक ऊपर नाक होने के कारण बहुत-सी चीजों को खाते वक्त हम उनका मज़ा सिर्फ उनसे उठने वाली महक की वजह से ले पाते हैं। नाक न होती तो उनका मज़ा अधूरा ही रह जाता। आपने ध्यान भी दिया होगा कि सर्दी-जुकाम के कारण नाक बंद होने के कारण खाने में उतना स्वाद नहीं आ पाता।
तो अब को मान गए न आप हमारी बात। ध्यान देकर देखिएगा, आप भी समझ जाएंगे कि आपकी जीभ बहुत से खाद्य पदाथों का आनंद तो सिर्फ इस कारण से ले पाती है कि आपकी नाक उसे अपना पूरा सहयोग देती
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