हम जितने अधीर होंगे उतने ही दीन होते जाएंगे। धैर्य की परीक्षा विपरीत समय पर होती है। अधीरता हमारी शक्ति को खा जाती है। यही शक्ति बल्कि इससे आधी ताकत भी हम समस्या को निपटाने में लगा दें तो परिणाम ज्यादा अच्छे मिल जाएंगे।
आदमी सर्वाधिक परेशान तीन तरह की स्थितियों से होता है। मृत्यु, वृद्धावस्था और विपत्ति। फकीरों ने कहा है इन सबको आना ही है, कोई नहीं बचेगा, लेकिन जो ज्ञानी होगा वो इन्हें ज्ञान के सहारे काट देगा और अज्ञानी ऐसे हालात में रोएगा, परेशान रहेगा। यहां ज्ञान का मतलब है कि हमें यह समझ होना चाहिए कि पूर्वजन्म के भोग तो भोगना ही पड़ते हैं। यह शरीर जाति, आयु और भोग के परिणाम पाता ही है। जिन्हें जीवन में धैर्य उतारना हो वे सबसे पहले समय के प्रति जागरुक हो जाएं। जब भी बुरा समय आए महसूस करें कि सुख में समय छोटा और दु:ख में बड़ा लगता है, जबकि समय होता उतना ही है। अध्यात्म ने एक नई स्थिति दी है। न दु:ख, न सुख इन दोनों से पार जाने की कोशिश करें। इसे महासुख कहा गया है। इस स्थिति में समय विलीन ही हो जाता है। यानी थोड़ा ध्यान में उतर जाएं।
जितना ध्यान में उतरेंगे उतना ही धैर्य के निकट जाएंगे। धैर्य यानी थोड़ा रूक जाना। हालात हिला रहे होंगे और धैर्य आपको थोड़ा स्थिर करेगा। फिर स्थितियों में समस्या स्पष्ट दिखने लगती है। उसके समाधान के उत्तर स्वयं से ही प्राप्त होने लगेंगे। जिनका अहंकार प्रबल है उन्हें धैर्य रखने में दिक्कत भी आएगी। ध्यान, अहंकार को गलाता है। अहंकार का एक स्वभाव यह भी होता है कि वह अपने ही सवाल उछालता रहता है। इस कारण सही उत्तर सामने होते हुए भी हम उन्हें पा नहीं पाते। इसलिए जब भी हालात विपरीत हो जीवन में धैर्य साधें और धैर्य पाने के लिए उस समय ध्यान में उतरने का अभ्यास बनाए रखें।
आदमी सर्वाधिक परेशान तीन तरह की स्थितियों से होता है। मृत्यु, वृद्धावस्था और विपत्ति। फकीरों ने कहा है इन सबको आना ही है, कोई नहीं बचेगा, लेकिन जो ज्ञानी होगा वो इन्हें ज्ञान के सहारे काट देगा और अज्ञानी ऐसे हालात में रोएगा, परेशान रहेगा। यहां ज्ञान का मतलब है कि हमें यह समझ होना चाहिए कि पूर्वजन्म के भोग तो भोगना ही पड़ते हैं। यह शरीर जाति, आयु और भोग के परिणाम पाता ही है। जिन्हें जीवन में धैर्य उतारना हो वे सबसे पहले समय के प्रति जागरुक हो जाएं। जब भी बुरा समय आए महसूस करें कि सुख में समय छोटा और दु:ख में बड़ा लगता है, जबकि समय होता उतना ही है। अध्यात्म ने एक नई स्थिति दी है। न दु:ख, न सुख इन दोनों से पार जाने की कोशिश करें। इसे महासुख कहा गया है। इस स्थिति में समय विलीन ही हो जाता है। यानी थोड़ा ध्यान में उतर जाएं।
जितना ध्यान में उतरेंगे उतना ही धैर्य के निकट जाएंगे। धैर्य यानी थोड़ा रूक जाना। हालात हिला रहे होंगे और धैर्य आपको थोड़ा स्थिर करेगा। फिर स्थितियों में समस्या स्पष्ट दिखने लगती है। उसके समाधान के उत्तर स्वयं से ही प्राप्त होने लगेंगे। जिनका अहंकार प्रबल है उन्हें धैर्य रखने में दिक्कत भी आएगी। ध्यान, अहंकार को गलाता है। अहंकार का एक स्वभाव यह भी होता है कि वह अपने ही सवाल उछालता रहता है। इस कारण सही उत्तर सामने होते हुए भी हम उन्हें पा नहीं पाते। इसलिए जब भी हालात विपरीत हो जीवन में धैर्य साधें और धैर्य पाने के लिए उस समय ध्यान में उतरने का अभ्यास बनाए रखें।
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