मंगलवार, 9 नवंबर 2010

भिखारी का धर्म संकठ

. एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल लिए। पूर्णिमा का दिन था, भिखारी सोच रहा था कि आज तो मेरी झोली शाम से पहले ही भर जाएगी। वह कुछ दूर ही चला था कि अचानक सामने से उसे राजा की सवारी आती दिखाई दी। भिखारी ख़ुश हो गया। उसने सोचा, राजा के दर्शन औरउनसे मिलने वाले दान से सारी ग़रीबी दूर हो जाएगी। जैसे ही राजा भिखारी के निकट आया, उसने अपना रथ रुकवाया।
लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले, अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और भीख की याचन करने लगे। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि या करे। ख़ैर, भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला और जैसे-तैसे कर उसने जौ के दो दाने निकाले और राजा की चादर पर डाल दिए।
राज चला गया। भिखारी मन-मसोसकर आगे चल दिया उस दिन उसे और दिनों से Êयादा भीख मिली थी फिर भी उसे ख़ुशी नहीं हो रही थी। दरअसल, उसे राजा को दो दाने भीख देने का मलाल था बहरहाल, शाम को घर आकर जब उसने झोली पलटी, तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। उसके झोले में दो दाने सोने के हो गए थे। वह समझ गया कि यह दान की महिमा के कारण हुआ था बहरहाल, उसे बेहद पछतावा हुआ कि काश! राज को और जौ दान करता।
सबक : अवसर ऐसे ही लुके-छिपे ढंग से सामने आते हैं। समय रहते व्यक्ति उन्हें पहचान नहीं पाता और बाद में पछताता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें