सवेरे-सवेरे पांच बजे मेरी आंख खुली। लेकिन नींद पूरी नहीं होने की वजह से नींद अभी भी बोझिल थी। मेरी आंख दुबारा लग गई। लोग कहते हैं कि सुबह-सुबह आया स्वप्न सच होता है। आंख लगते ही एक स्वप्न मेरे दिमाग में स्पष्ट होकर घूमने लगा।
एक कौवा महानगर की सडक के किनारे फुटपाथ पर बैठा कांव कांव कर रहा है। आज पहली बार एक कौए की भाषा मेरी समझ में आई। उसकी कांव-कांव में बडा दर्द है। वह जोर-जोर से चिल्ला रहा है, मुझे पानी दो! कोई मुझे पानी दो!! मैं दूर-दूर तक घूम आया, कहीं पानी नही मिला है। मैंने उसे कहा, तुम यहां फुटपाथ पर क्यों बैठे हो? किसी ऊंचे भवन पर बैठकर पानी देखो। कौवा बोला, ऊंचे भवनों पर बैठकर तो बहुत चिल्ला लिया। अब सोचता हूं कि यहां बैठे को कोई जल दे दे। मैंने कहा, इनमें से तुम्हें कोई जल नहीं देगा। मनुष्य जाति बडी स्वार्थी हो गई है। ये लोग अपने काम के पीछे पागल हो गए हैं कि खुद पानी पीने की फुर्सत मुश्किल से निकाल पाते हैं, तुम्हें क्या पिलायेंगे। इनसे आस मत करो। जाओ उडकर खुद पानी ढूंढो। परिश्रम करो, कहीं ना कहीं जरूर मिल जायेगा। परिश्रम का फल हमेशा मीठा होता है। वह कहने लगा, कब से परिश्रम ही तो कर रहा हूं। पानी की तलाश में उडते-उडते मेरे प्राण सूख चुके हैं। सोचा था आज कहीं दूर की उडान भरूं, और दूर की उडान के चक्कर में उडता-उडता इस महानगर में निकल आया। अब इसमें भटक गया हूं। इन मकानों के जंगल के बीच से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा। और ना ही कहीं पानी है। मैंने कहा, तुम्हारे लिए यहां पानी नहीं है। पानी तो लोगों के मकानों के अंदर बंद है। मगर फिर भी कोशिश करो, कहीं न कहीं थोडा बहुत पानी जरूर मिल जायेगा। कौवा बोला, तुम्हारे मकान में भी तो पानी होगा। तुम मुझे पानी क्यों नहीं देते? मैंने सोचा, हां मैं भी तो इसे पानी दे सकता हूं। लेकिन पता नहीं क्यों मैं खुद को उसकी प्यास बुझाने में असमर्थ पाता हूं। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। और फिर मेरे कहेनुसार वह कौवा वहां से उड चला।
थोडी दूर उडकर वह एक मकान की छत पर जाकर बैठ गया। उससे उडा नहीं जा रहा। मालूम नहीं कैसे मैं भी वहीं पहुंच गया। कौवा फिर कुछ दूर उडकर दूसरे मकान की छत पर बैठ गया। उसकी सांस फूली हुई है। उसका शरीर शिथिल पडता जा रहा है। उसमें चलने की भी हिम्मत नहीं है। पानी की तलाश में घूम-घूमकर थकान के कारण उसने अपनी प्यास और ज्यादा बढा ली है। उस मकान की छत से उसे एक गंदा नाला दिखाई दिया। उस नाले का पानी उस कौए के रंग से भी ज्यादा काला है। शहर के कारखानों के जहरीले रसायन भी उसी नाले से होकर आते हैं। उसकी बदबू दूर तक महसूस की जा सकती है, लेकिन फिर भी उस कौए की प्यास की तडपन उसे उस गंदे नाले की तरफ खींच ले गई। उसने उस नाले से एक चोंच भरी, मगर फिर उस गंदे पानी को वापस उलट दिया। वह सडा हुआ पानी उसके गले नहीं उतरा। मुझे उस तडपते कौए को देखकर बडा तरस आ रहा है। उसकी स्थिति बडी दयनीय है। लेकिन मेरी समझ में ये बात नहीं आ रही कि मैं इसे पानी देने में खुद को असमर्थ क्यों पाता हूं।
वह कौवा धीरे-धीरे अपने पंजों से जमीन पर कुछ दूर चला और एक दीवार की छांह में जाकर लेट गया। सूरज की चिलचिलाती धूप में वह दीवार भी उसे जलती हुई प्रतीत हो रही है। लगभग पंद्रह मिनट तक उसने आराम किया। आराम के कारण उसकी थकान को मामूली आराम जरूर मिला, मगर उसका गला लगातार सूखता जा रहा है। उसे आराम की नहीं थोडे से जल की जरूरत है। वह अपनी पूरी ताकत लगाकर फिर से कुछ दूरी तक उडा और एक दीवार पर बैठ गया। वहां उसने देखा कुछ दूरी पर एक सत्संग हो रहा है। वो कौवा गुरु का ज्ञान सुन रहे भक्तजनों से कुछ दूर ही जमीन पर बैठकर कांव-कांव करने लगा। हालांकि उसमें बोलने की ताकत नहीं है। लेकिन फिर भी उसकी प्यास उसे जोर-जोर से बोलने पर मजबूर कर रही है। कोई भी उसकी भाषा नहीं समझ पा रहा, मगर मुझे स्पष्ट सुनाई दे रही है। - पानी दो, मुझे दो घूंट पानी दो। मैं प्यास के मारे मरा जा रहा हूं। क्यों इस गुरु के चक्कर में अपना जीवन व्यर्थ कर रहे हो। मुझे पानी दे दो, तुम्हें देवता जैसा स्थान मिलेगा। मेरी प्यास बुझाओ, प्यास से मेरे प्राण निकले जा रहे हैं। मुझे पानी दो, पीने के लिए दो घूंट पानी दो। कौवा प्यासे हृदय से गिडगिडा रहा है।
सभी को उसकी कांव-कांव ही सुनाई देती है। तभी उनमें से एक व्यक्ति बोला, -अरे भगाओ यार इस कौए को, ये कुछ भी सुनने नहीं देता। इतना आनंद आ रहा था, इसने सारे पे पानी फेर दिया। भगाओ इसको। तभी उनमें से एक व्यक्ति उठा और हाथ हिलाते हुए कौए की तरफ बढने लगा, जाता है कि नहीं यहां से। कौए ने दो पंख मारे और उस आदमी के जाने के बाद दुबारा कांव-कांव करने लगा, अरे दुष्टों दो घूंट पानी दे दो। प्यासे की प्यास बुझाओ, बडा सुख मिलेगा। तभी गुरु जी ने सभी को ध्यान में लीन होने के लिए कहा। सभी ध्यान में लीन हो गए। अब कौए की कांव-कांव की आवाज पहले से तेज सुनाई दे रही है। वही आदमी दुबारा उठकर आया और उसने जोर से कौए की तरफ एक पत्थर फेंका। बडी मुश्किल से उस पत्थर के प्रहार से कौए ने अपना बचाव किया और जैसे-तैसे उडा और कुछ दूर जाकर बैठ गया। उसका गला अधिक बोलने की वजह से हद से ज्यादा सूख चुका है। उसकी आंखें पथराई जा रही हैं। जमीन पर खडा होना भी उसके लिए मुश्किल है। मगर उसकी प्यास उससे उडान भरवा रही है। वो अभी भी चिल्ला रहा है। कुछ देर बाद अपनी पूरी शक्ति लगाकर पानी के लिए फिर उडा। मगर इस बार उसके शरीर ने उसका साथ नहीं दिया। दो चार पंख फडफडाकर वह कौवा बेहोश होकर सडक पर जा गिरा। एक तेज रफ्तार से आती हुई कार उसके ऊपर से निकल गई और उसके खून के छीटे मेरे चेहरे पर आ गिरे। एक झटके के साथ मेरी आंख खुल गई। इस प्रकार उस कौए की प्यास बुझी।
मेरा दिल बहुत दुखी हुआ। उस कौए की वही आवाज मुझे पानी पिलाओ अभी भी मेरे कानों में गूंज रही है। लोग कहते हैं कि सुबह-सुबह आया स्वप्न भविष्य में होने वाली घटनाओं की सच्चाई को बयां करता है। अब मैं अपने बिस्तर पर बैठा सोच रहा हूं, शायद आने वाला वक्त पशु-पक्षियों के लिए ऐसा ही हो। जब इंसान को खुद के लिए पानी की कमी महसूस होगी, तो वो पशु-पक्षियों को पानी क्यों देगा। पशु-पक्षी ऐसे ही प्यास से तडपते-तडपते मर जायेंगे। अगर उन्हें कहीं जल मिलेगा भी तो उन्हें इतना गन्दा जल नसीब होगा जो इंसान की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले कारखानों और फसलों में गिरने वाले रसायनों के कारण जहरीला हो चुका होगा। उस अकेले कौए की हालत ऐसी नहीं होगी। सभी पशु पक्षियों की यही हालत होगी और इसका जिम्मेदार होगा इंसान, केवल इंसान।
एक कौवा महानगर की सडक के किनारे फुटपाथ पर बैठा कांव कांव कर रहा है। आज पहली बार एक कौए की भाषा मेरी समझ में आई। उसकी कांव-कांव में बडा दर्द है। वह जोर-जोर से चिल्ला रहा है, मुझे पानी दो! कोई मुझे पानी दो!! मैं दूर-दूर तक घूम आया, कहीं पानी नही मिला है। मैंने उसे कहा, तुम यहां फुटपाथ पर क्यों बैठे हो? किसी ऊंचे भवन पर बैठकर पानी देखो। कौवा बोला, ऊंचे भवनों पर बैठकर तो बहुत चिल्ला लिया। अब सोचता हूं कि यहां बैठे को कोई जल दे दे। मैंने कहा, इनमें से तुम्हें कोई जल नहीं देगा। मनुष्य जाति बडी स्वार्थी हो गई है। ये लोग अपने काम के पीछे पागल हो गए हैं कि खुद पानी पीने की फुर्सत मुश्किल से निकाल पाते हैं, तुम्हें क्या पिलायेंगे। इनसे आस मत करो। जाओ उडकर खुद पानी ढूंढो। परिश्रम करो, कहीं ना कहीं जरूर मिल जायेगा। परिश्रम का फल हमेशा मीठा होता है। वह कहने लगा, कब से परिश्रम ही तो कर रहा हूं। पानी की तलाश में उडते-उडते मेरे प्राण सूख चुके हैं। सोचा था आज कहीं दूर की उडान भरूं, और दूर की उडान के चक्कर में उडता-उडता इस महानगर में निकल आया। अब इसमें भटक गया हूं। इन मकानों के जंगल के बीच से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा। और ना ही कहीं पानी है। मैंने कहा, तुम्हारे लिए यहां पानी नहीं है। पानी तो लोगों के मकानों के अंदर बंद है। मगर फिर भी कोशिश करो, कहीं न कहीं थोडा बहुत पानी जरूर मिल जायेगा। कौवा बोला, तुम्हारे मकान में भी तो पानी होगा। तुम मुझे पानी क्यों नहीं देते? मैंने सोचा, हां मैं भी तो इसे पानी दे सकता हूं। लेकिन पता नहीं क्यों मैं खुद को उसकी प्यास बुझाने में असमर्थ पाता हूं। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। और फिर मेरे कहेनुसार वह कौवा वहां से उड चला।
थोडी दूर उडकर वह एक मकान की छत पर जाकर बैठ गया। उससे उडा नहीं जा रहा। मालूम नहीं कैसे मैं भी वहीं पहुंच गया। कौवा फिर कुछ दूर उडकर दूसरे मकान की छत पर बैठ गया। उसकी सांस फूली हुई है। उसका शरीर शिथिल पडता जा रहा है। उसमें चलने की भी हिम्मत नहीं है। पानी की तलाश में घूम-घूमकर थकान के कारण उसने अपनी प्यास और ज्यादा बढा ली है। उस मकान की छत से उसे एक गंदा नाला दिखाई दिया। उस नाले का पानी उस कौए के रंग से भी ज्यादा काला है। शहर के कारखानों के जहरीले रसायन भी उसी नाले से होकर आते हैं। उसकी बदबू दूर तक महसूस की जा सकती है, लेकिन फिर भी उस कौए की प्यास की तडपन उसे उस गंदे नाले की तरफ खींच ले गई। उसने उस नाले से एक चोंच भरी, मगर फिर उस गंदे पानी को वापस उलट दिया। वह सडा हुआ पानी उसके गले नहीं उतरा। मुझे उस तडपते कौए को देखकर बडा तरस आ रहा है। उसकी स्थिति बडी दयनीय है। लेकिन मेरी समझ में ये बात नहीं आ रही कि मैं इसे पानी देने में खुद को असमर्थ क्यों पाता हूं।
वह कौवा धीरे-धीरे अपने पंजों से जमीन पर कुछ दूर चला और एक दीवार की छांह में जाकर लेट गया। सूरज की चिलचिलाती धूप में वह दीवार भी उसे जलती हुई प्रतीत हो रही है। लगभग पंद्रह मिनट तक उसने आराम किया। आराम के कारण उसकी थकान को मामूली आराम जरूर मिला, मगर उसका गला लगातार सूखता जा रहा है। उसे आराम की नहीं थोडे से जल की जरूरत है। वह अपनी पूरी ताकत लगाकर फिर से कुछ दूरी तक उडा और एक दीवार पर बैठ गया। वहां उसने देखा कुछ दूरी पर एक सत्संग हो रहा है। वो कौवा गुरु का ज्ञान सुन रहे भक्तजनों से कुछ दूर ही जमीन पर बैठकर कांव-कांव करने लगा। हालांकि उसमें बोलने की ताकत नहीं है। लेकिन फिर भी उसकी प्यास उसे जोर-जोर से बोलने पर मजबूर कर रही है। कोई भी उसकी भाषा नहीं समझ पा रहा, मगर मुझे स्पष्ट सुनाई दे रही है। - पानी दो, मुझे दो घूंट पानी दो। मैं प्यास के मारे मरा जा रहा हूं। क्यों इस गुरु के चक्कर में अपना जीवन व्यर्थ कर रहे हो। मुझे पानी दे दो, तुम्हें देवता जैसा स्थान मिलेगा। मेरी प्यास बुझाओ, प्यास से मेरे प्राण निकले जा रहे हैं। मुझे पानी दो, पीने के लिए दो घूंट पानी दो। कौवा प्यासे हृदय से गिडगिडा रहा है।
सभी को उसकी कांव-कांव ही सुनाई देती है। तभी उनमें से एक व्यक्ति बोला, -अरे भगाओ यार इस कौए को, ये कुछ भी सुनने नहीं देता। इतना आनंद आ रहा था, इसने सारे पे पानी फेर दिया। भगाओ इसको। तभी उनमें से एक व्यक्ति उठा और हाथ हिलाते हुए कौए की तरफ बढने लगा, जाता है कि नहीं यहां से। कौए ने दो पंख मारे और उस आदमी के जाने के बाद दुबारा कांव-कांव करने लगा, अरे दुष्टों दो घूंट पानी दे दो। प्यासे की प्यास बुझाओ, बडा सुख मिलेगा। तभी गुरु जी ने सभी को ध्यान में लीन होने के लिए कहा। सभी ध्यान में लीन हो गए। अब कौए की कांव-कांव की आवाज पहले से तेज सुनाई दे रही है। वही आदमी दुबारा उठकर आया और उसने जोर से कौए की तरफ एक पत्थर फेंका। बडी मुश्किल से उस पत्थर के प्रहार से कौए ने अपना बचाव किया और जैसे-तैसे उडा और कुछ दूर जाकर बैठ गया। उसका गला अधिक बोलने की वजह से हद से ज्यादा सूख चुका है। उसकी आंखें पथराई जा रही हैं। जमीन पर खडा होना भी उसके लिए मुश्किल है। मगर उसकी प्यास उससे उडान भरवा रही है। वो अभी भी चिल्ला रहा है। कुछ देर बाद अपनी पूरी शक्ति लगाकर पानी के लिए फिर उडा। मगर इस बार उसके शरीर ने उसका साथ नहीं दिया। दो चार पंख फडफडाकर वह कौवा बेहोश होकर सडक पर जा गिरा। एक तेज रफ्तार से आती हुई कार उसके ऊपर से निकल गई और उसके खून के छीटे मेरे चेहरे पर आ गिरे। एक झटके के साथ मेरी आंख खुल गई। इस प्रकार उस कौए की प्यास बुझी।
मेरा दिल बहुत दुखी हुआ। उस कौए की वही आवाज मुझे पानी पिलाओ अभी भी मेरे कानों में गूंज रही है। लोग कहते हैं कि सुबह-सुबह आया स्वप्न भविष्य में होने वाली घटनाओं की सच्चाई को बयां करता है। अब मैं अपने बिस्तर पर बैठा सोच रहा हूं, शायद आने वाला वक्त पशु-पक्षियों के लिए ऐसा ही हो। जब इंसान को खुद के लिए पानी की कमी महसूस होगी, तो वो पशु-पक्षियों को पानी क्यों देगा। पशु-पक्षी ऐसे ही प्यास से तडपते-तडपते मर जायेंगे। अगर उन्हें कहीं जल मिलेगा भी तो उन्हें इतना गन्दा जल नसीब होगा जो इंसान की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले कारखानों और फसलों में गिरने वाले रसायनों के कारण जहरीला हो चुका होगा। उस अकेले कौए की हालत ऐसी नहीं होगी। सभी पशु पक्षियों की यही हालत होगी और इसका जिम्मेदार होगा इंसान, केवल इंसान।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें