रविवार, 26 दिसंबर 2010

क्यों शिव कहलाते हैं नीलकंठ?


हिन्दू धर्म के पांच प्रमुख देवताओं का प्रधान भगवान शिव को माना जाता है। इसलिए शिव को महादेव भी पुकारा जाता है। ऐसे ही अनेक नाम शिव की महिमा से जुड़े हैं। शिव के इन नामों में से ही एक कल्याणकारी नाम है - नीलकंठ।
इस नाम का न केवल पौराणिक महत्व है, बल्कि यह व्यावहारिक जीवन के लिए भी कुछ संदेश देता है। इस नाम से जुड़ी पौराणिक कथा के मुताबिक देव-दानव द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकले हलाहल यानि जहर का असर देव-दानव सहित पूरा जगत सहन नहीं कर पाया। तब सभी ने भगवान शंकर से प्रार्थना की। भगवान शंकर ने पूरे जगत की रक्षा और कल्याण के लिए उस जहर को पीना स्वीकार किया। विष पीकर शंकर नीलकंठ कहलाए।
धार्मिक मान्यता है कि भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान हिन्दू पंचांग के सावन माह में ही किया था और विष पीने से हुई दाह की शांति के लिए समुद्र मंथन से ही निकले चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया।
व्यावहारिक रुप से देखें तो भगवान शंकर द्वारा विष पीकर कंठ में रखना और उससे हुई दाह के शमन के लिए गंगा और चंद्रमा को अपनी जटाओं और सिर पर धारण करना इस बात का संदेश है कि मानव को अपनी वाणी और भाषा पर संयम रखना चाहिए। खास तौर पर कटु वचन से बचना चाहिए, जो कंठ से ही बाहर आते हैं। किंतु कटु वचन पर संयम तभी हो सकता है, जब व्यक्ति मन को काबू में रखने के साथ ही बुद्धि और ज्ञान का सही उपयोग करे। शंकर की जटाओं में बैठी गंगा ज्ञान की सूचक है और चंद्रमा मन और विवेक का।
गंगा और चंद्रमा को भगवान शंकर ने उसी जगह पर रखा है, जहां मानव का भी विचार केन्द्र यानि मस्तिष्क होता है।

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