ऋषि किंदम की मृत्यु का प्रायश्चित करने के लिए जब पाण्डु कुंती व माद्री के साथ वन में रहने लगे तो उन्हें संतान न होने की चिंता सताने लगी। जब यह बात कुंती को पता चली तो उन्होंने पाण्डु को ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए मंत्र की बात बताई। यह जानकर पाण्डु अत्यंत प्रसन्न हुए।तब पाण्डु ने कुंती से कहा कि तुम धर्मराज (यमराज) का आवाहन करो। कुंती ने धर्मराज का आवाहन किया। मंत्र के प्रभाव से धर्मराज तुरंत वहां उपस्थित हुए और उनके आशीर्वाद से कुंती को गर्भ रहा। समय आने पर कुंती ने युधिष्ठिर को जन्म दिया।
इसके बाद कुंती ने पाण्डु की इच्छानुसार वायुदेव का स्मरण किया। वायुदेव की कृपा से महाबली भीम का जन्म हुआ। इसके बाद कुंती ने देवराज इंद्र का आवाहन किया। इंद्र की कृपा से अर्जुन का जन्म हुआ। तभी आकाशवाणी हुई कि यह बालक भगवान शंकर व इंद्र के समान पराक्रमी होगा। यह अनेक राजाओं को पराजित कर तीन अश्वमेध यज्ञ करेगा। तब एक दिन पाण्डु ने कुंती से कहा कि तुम वह मंत्र जो तुम्हें ऋषि दुर्वासा ने दिया है, माद्री को भी बताओ जिससे यह भी पुत्रवती हो सके।
कुंती ने माद्री को वह मंत्र बताया। तब माद्री ने अश्विनकुमारों का चिंतन किया। अश्विनकुमारों ने आकर माद्री को गर्भस्थापन किया, जिससे माद्री को जुड़वा पुत्र नकुल व सहदेव हुए। इस प्रकार कुंती के गर्भ से युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन तथा माद्री से गर्भ से नकुल व सहदेव का जन्म हुआ। तब पाण्डु अपने पुत्रों व पत्नियों के साथ वन में प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे।
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