जब कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तब वसुदेवजी ने भगवान् की प्रेरणा से ही अपने पुत्र को लेकर बंदीगृह से बाहर निकलने की इच्छा की। किंतु बाहर कैसे निकला जाए क्योंकि बाहर तो सैनिकों का पहरा था। तब भगवान की लीला से वसुदेव ने जैसे ही बालक रूपी भगवान को टोकरी में लिटाया वैसे ही सारे बंधन टूट गए। जेल के ताले स्वयं खुल गए। पहरेदार भी उस समय निन्द्रामग्न हो गए। भगवान की लीला के अनुसार वसुदेवजी ने उस बालक को उठाया गोकुल जाने लगे तो बीच में यमुना नदी पड़ी।
वसुदेवजी नदी में उतर गए तभी तेज बारिश होने लगी। भगवान भीगे नहीं इसके लिए शेषनाग ने उनके ऊपर छत कर दी। तब वसुदेवजी ने उस बालक को गोकुल में नन्दजी के घर लेजाकर यशोदा के पास लेटा दिया तथा वहां लेटी नवजात बालिका को उठाकर बंदीगृह में लौट आए। जेल में पहुंचकर वसुदेवजी ने उस कन्या को देवकी की शय्या पर सुला दिया और अपने पैरों में बेडिय़ां डाल लीं तथा पहले की तरह वे बंदीगृह में बंद हो गए। भगवान की लीला से देवकी, वसुदेव और यशोदा किसी को भी इस पूरी घटना के बारे में पता ही नहीं चला यहां तक की देवकी व यशोदा को प्रसव पीड़ा का ज्ञान ही नहीं रहा।
उधर थोड़ी देर बात जब यशोदा को चेत हुआ तो उसने देखा कि उसके पास एक सुंदर सा बालक शय्या पर सो रहा है। उसने नन्दजी और वसुदेवजी की दूसरी पत्नी रोहिणी को बताया तो उन्हें भी बड़ा आश्चर्य हुआ कि बिना प्रसव पीड़ा के संतान उत्पन्न हो गई। सबने इसे भगवान का चमत्कार माना। सुबह होते ही शोर मच गया कि नंदजी के घर बालक का जन्म हुआ है। पूरा गांव आनन्द में डूब गया, उत्सव मनाया जाने लगा। नाच-गाना होने लगा। यशोदा और नंदजी की खुशियों का भी ठीकाना नहीं रहा।
वसुदेवजी नदी में उतर गए तभी तेज बारिश होने लगी। भगवान भीगे नहीं इसके लिए शेषनाग ने उनके ऊपर छत कर दी। तब वसुदेवजी ने उस बालक को गोकुल में नन्दजी के घर लेजाकर यशोदा के पास लेटा दिया तथा वहां लेटी नवजात बालिका को उठाकर बंदीगृह में लौट आए। जेल में पहुंचकर वसुदेवजी ने उस कन्या को देवकी की शय्या पर सुला दिया और अपने पैरों में बेडिय़ां डाल लीं तथा पहले की तरह वे बंदीगृह में बंद हो गए। भगवान की लीला से देवकी, वसुदेव और यशोदा किसी को भी इस पूरी घटना के बारे में पता ही नहीं चला यहां तक की देवकी व यशोदा को प्रसव पीड़ा का ज्ञान ही नहीं रहा।
उधर थोड़ी देर बात जब यशोदा को चेत हुआ तो उसने देखा कि उसके पास एक सुंदर सा बालक शय्या पर सो रहा है। उसने नन्दजी और वसुदेवजी की दूसरी पत्नी रोहिणी को बताया तो उन्हें भी बड़ा आश्चर्य हुआ कि बिना प्रसव पीड़ा के संतान उत्पन्न हो गई। सबने इसे भगवान का चमत्कार माना। सुबह होते ही शोर मच गया कि नंदजी के घर बालक का जन्म हुआ है। पूरा गांव आनन्द में डूब गया, उत्सव मनाया जाने लगा। नाच-गाना होने लगा। यशोदा और नंदजी की खुशियों का भी ठीकाना नहीं रहा।
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