शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

क्रिसमस उपहार

सांता की एंजल
क्रिसमस की रात बच्चों को उपहार देने के लिए सांता अपनी गाड़ी में निकलते हैं। उनकी गाड़ी में उपहार भरे होते हैं। इतने सारे उपहारों को बनाने में सांता की मदद चार जादुई बौने करते हैं। एक क्रिसमस की बात है। उपहार बनाने वाले चारों जादुई बौनों की तबियत गड़बड़ा गई। इनके बदले में सांता ने कुछ नए बौनों को रखा था, ये ट्रेनी बौने तेज़ी से उपहार नहीं बना पा रहे थे। बेचारे सांता क्रिसमस की तैयारियों में उलझे हुए थे। जैसे-तैसे उपहार तैयार करवा कर, सांता अपनी शान की सवारी स्लेज के पास पहुंचे। वहां पहुंच के सांता देखते हैं कि उनकी सवारी को खींचने वाले रेनडियर मतलब बारहसिंगा तो वहां हैं हीं नहीं। वो कहीं भाग गए हैं। कहां भागे, ये तो भगवान ही जानता था।

सांता ने सोचा कि दूसरे रेनडियर का इंतज़ाम बाद में कर लूंगा, पहले स्लेज में उपहार लाद लिए जाएं। पर यह क्या!! उनके थोड़े से उपहारों के बोझ से ही स्लेज टूट गई। स्लेज तो टूटी ही, साथ में उपहार भी टूट गए। सेब का शरबत पीने के इरादे से हताश सांता घर की ओर बढ़े। घर पहुंचकर सांता ने अलमारी खोली, उसमें से शरबत का जग निकाला तो उनके होश उड़ गए। ट्रेनी बौने सारा शरबत पीकर खत्म कर चुके थे। आज का पूरा दिन सांता के लिए गड़बड़भरा था। परेशान सांता के हाथ से शरबत का जग छूटकर ज़मीन पर गिर गया। उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए। अब, कांच किसी के पैर में न लग जाए, इसलिए कांच के टुकड़ों को साफ करना भी ज़रूरी था। इसलिए सांता झाडू लेने गए। वहां का नज़ारा और भी दुखदायी था। दरअसल चूहे झाड़ू खा गए थे।
परेशान और हताश होकर सांता सोच ही रहे थे कि क्या करें, तभी दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी। सांता ने दरवाज़ा खोला और देखा दरवाज़े पर एक छोटी-सी, प्यारी-सी एंजल खड़ी थी। उसके हाथ में एक सुंदर और बड़ा क्रिसमस ट्री था। प्यारी एंजल ने मुस्कुराते हुए सांता से कहा, ‘‘मैरी क्रिसमस सांता!
आज कितना प्यारा दिन है न! मैं आपके लिए यह खूबसूरत क्रिसमस ट्री लाई हूं। क्या आप इस क्रिसमस ट्री पर मुझे भी जगह देंगे?’’ एंजल ने सांता की पूरी दिन की उदासी को पल में छू-मंतर कर दिया। तभी से क्रिसमस ट्री पर सबसे ऊपर प्यारी एंजल को लगाया जाता है।

धन्यवाद सांता

पिछले चार दिनों से बर्फ पड़ रही थी। इसके कारण मारिया का घर से बाहर जाना सम्भव नहीं था। वह पिछले चार दिनों से घर पर ही थी। वह कपड़े समेट रही थी। उसकी दस साल की बेटी खिड़की के पास बैठी बाहर गिर रही बर्फ को देखकर मुस्कुरा रही थी। उस छोटे से घर में केवल दो सदस्य, वह खुद और उसकी बेटी चेल्सी रहती थी। चेल्सी के पिता चार बरस पहले चल बसे थे। मारिया जंगल से सूखी लकड़ियां काटकर बाज़ार में बेचती थी। इससे होने वाली थोड़ी-बहुत आमदनी से उनका घर चलाती थी। उनके घर की स्थिति कभी-कभी ऐसी होती कि उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता था। लकड़ी का टूटा-फूटा घर ही उनकी एकमात्र सम्पदा थी। इतनी तकलीफों के बाद भी मारिया, चेल्सी को पास के स्कूल में पढ़ने भेजती थी। चेल्सी अपनी मां से बहुत प्यार करती थी। और घर के कामों में जितनी होती, मदद भी करती। वे दोनों हर रविवार को चर्च जातीं थीं। शहर के एक अलग-थलग से छोर पर उन्हीं की तरह के दस-पंद्रह परिवार रहते थे।
यहां से कुछ दूरी पर घना जंगल था। मारिया यहीं से प्रतिदिन लकड़ियां काटकर लाती थी। क्रिसमस का पर्व नज़दीक था। चेल्सी के स्कूल की छुट्टियां हो चुकीं थी। आस-पास के लोग क्रिसमस की तैयारियों में लगे थे। कोई नए कपड़े ला रहा था, कोई क्रिसमस ट्री, कोई अपने घर को क्रिसमस पर सबसे सुंदर सजाना चाहता था। वहीं कोई अपने परिवार के लिए अच्छा-सा गिफ्ट खरीदना चाहता था। चेल्सी जब यह देखती, तो उसका बालमन भी यह सब करने को मचलता। वह अपनी मां से कहती, ‘मां क्या हम क्रिसमस पर कुछ नहीं करेंगे, क्या क्रिसमस ट्री हमारे घर नहीं आएगा?’ वह चेल्सी को यह दिलासा देते हुए कहती, ‘क्यों नहीं मनाएंगे, हम क्रिसमस ज़रूर मनाएंगे।’ चेल्सी ने फिर से पूछा, ‘लेकिन ममा, अभी तक न तो हमने क्रिसमस की तैयारियां की हैं और न ही हम क्रिसमस ट्री लाएं हैं!!’ मारिया बात को टालने के लिए उसे किसी और बात में उलझा देती क्योंकि मारिया खुद नहीं जानती थी कि वह अपनी बेटी के साथ क्रिसमस कैसे मनाएगी। उसने सालभर से जो एक-एक करके कुछ पैसे जमा किए थे, वह पूंजी बहुत •यादा तो नहीं है। उसमें से कुछ पैसे उसकी बीमारी में और बाकी पैसे पिछले दिनों खत्म हो गए थे क्योंकि बर्फबारी के कारण वह लकड़ी बेचने नहीं जा पाई थी। इस हाल में क्रिसमस का त्योहार उसके लिए खुशी का नहीं बल्कि चिंता का विषय था।

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