जीवनदान
कई दिनों से बीमार चल रहे सदानंद बाबू ग्रहदशा सुधारने के इरादे से पंडित जी के घर जा पहुंचे। आजकल आपके ग्रह प्रतिकूल हैं। यदि आप रविवार के दिन सात जिंदा गरई नस्ल की मछलियां बाजार से खरीद कर उन्हें वापस नदी में छोड के जीवनदान दें तो आपकी बीमारी ठीक हो जायेगी। पंडित जी ने एक उपाय बताया। वह रविवार का ही दिन था। सदानंद बाबू सीधे मछली मार्केट चले गये। भैया जरा सात जिंदा गरई देना। एक दुकान पर जिंदा मछली देख उन्होंने कहा बाबूजी इहां सात का कौनो हिसाब नहीं है। छोटी मछली है, दरजन से बिकती है। या तो छ: लो या बारह।
मछली वाले ने सदानंद बाबू को दुविधा में डाल दिया। नहीं छ: तो कम पडेंगी। ऐसा करो तुम बारह ही दे दो। बारह मछलियां लेकर वे घर आ गये। सात मछलियां एक पालीथीन में डालकर वे नदी की तरफ रवाना होने ही वाले थे कि पत्नी की आवाज कान में पडी। ई बाकी की मछलियन का, का करना है जी? वे असमंजस में पड गये। पंडिज्जी तो सात ही मछलियां नदी में डाले को बोले हैं अब आ गयी हैं बारह तो.. उन्होंने कुछ देर सोचा। अंत में उन्हें एक उपाय मिल गया। अरे करना का है। बाकी रात को चावल के साथ पका देना अब ये किस काम की। का करें मजबूरी जो है। संतुष्टि सदानंद ने अपने काम की मछलियां उठायीं और उन्हें जीवनदान देने निकल गये। (sabhar-dainik jagran)
भय
सास फोन पर बहू से अपना दुखडा रो रही थी, महीना पन्द्रह दिन की छुट्टी लेकर आ जाओ मैं बहुत बीमार हूं, तुम्हारे पापा भी बीमार हैं। क्या करूं! खाना बनाने वाला भी घर में कोई नहीं है, ऊपर से पडोसिनें मजाक बनाती हैं और कहती हैं- दो-दो बहुओं के होते हुए भी आप कितनी असहाय हैं। बहू ने कहा- मम्मी आप तो जानती हैं कितनी कम छुट्टियां मिलती हैं हमें? और फिर बच्ची का भी तो स्कूल चल रहा है। क्यों न तनु दीदी (ननद) को फोन करके कुछ दिनों के लिए बुला लिया जाये। काफी दिन से नहीं आई हैं। तो उनका आना भी हो जायेगा और आपकी देखभाल भी।
अरे नहीं-नहीं, तनु को इस समय यहां आने के लिए मत कहना क्योंकि डाक्टर ने बताया है कि बीमारी संक्रामक है। सास घबराकर बोलीं।
बहू अवाक् रह गई।
(sabhar-dainik jagran)
कई दिनों से बीमार चल रहे सदानंद बाबू ग्रहदशा सुधारने के इरादे से पंडित जी के घर जा पहुंचे। आजकल आपके ग्रह प्रतिकूल हैं। यदि आप रविवार के दिन सात जिंदा गरई नस्ल की मछलियां बाजार से खरीद कर उन्हें वापस नदी में छोड के जीवनदान दें तो आपकी बीमारी ठीक हो जायेगी। पंडित जी ने एक उपाय बताया। वह रविवार का ही दिन था। सदानंद बाबू सीधे मछली मार्केट चले गये। भैया जरा सात जिंदा गरई देना। एक दुकान पर जिंदा मछली देख उन्होंने कहा बाबूजी इहां सात का कौनो हिसाब नहीं है। छोटी मछली है, दरजन से बिकती है। या तो छ: लो या बारह।
मछली वाले ने सदानंद बाबू को दुविधा में डाल दिया। नहीं छ: तो कम पडेंगी। ऐसा करो तुम बारह ही दे दो। बारह मछलियां लेकर वे घर आ गये। सात मछलियां एक पालीथीन में डालकर वे नदी की तरफ रवाना होने ही वाले थे कि पत्नी की आवाज कान में पडी। ई बाकी की मछलियन का, का करना है जी? वे असमंजस में पड गये। पंडिज्जी तो सात ही मछलियां नदी में डाले को बोले हैं अब आ गयी हैं बारह तो.. उन्होंने कुछ देर सोचा। अंत में उन्हें एक उपाय मिल गया। अरे करना का है। बाकी रात को चावल के साथ पका देना अब ये किस काम की। का करें मजबूरी जो है। संतुष्टि सदानंद ने अपने काम की मछलियां उठायीं और उन्हें जीवनदान देने निकल गये। (sabhar-dainik jagran)
भय
सास फोन पर बहू से अपना दुखडा रो रही थी, महीना पन्द्रह दिन की छुट्टी लेकर आ जाओ मैं बहुत बीमार हूं, तुम्हारे पापा भी बीमार हैं। क्या करूं! खाना बनाने वाला भी घर में कोई नहीं है, ऊपर से पडोसिनें मजाक बनाती हैं और कहती हैं- दो-दो बहुओं के होते हुए भी आप कितनी असहाय हैं। बहू ने कहा- मम्मी आप तो जानती हैं कितनी कम छुट्टियां मिलती हैं हमें? और फिर बच्ची का भी तो स्कूल चल रहा है। क्यों न तनु दीदी (ननद) को फोन करके कुछ दिनों के लिए बुला लिया जाये। काफी दिन से नहीं आई हैं। तो उनका आना भी हो जायेगा और आपकी देखभाल भी।
अरे नहीं-नहीं, तनु को इस समय यहां आने के लिए मत कहना क्योंकि डाक्टर ने बताया है कि बीमारी संक्रामक है। सास घबराकर बोलीं।
बहू अवाक् रह गई।
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